विष्णु गुप्त का लेख : दुश्मनों का काल राफेल

विष्णु गुप्त
राफेल की कई विशेषताएं हैं जो दुश्मनों में भय पैदा करती है। पहली विशेषता यह है कि दुनिया की सबसे घातक मिसाइलों से और सेमी स्टील्थ तकनीक से भी लैस है। दूसरी विशेषता यह है कि 24500 किलोग्राम का भार आसानी से उठा सकता है। तीसरी विशेषता, मात्र एक मिनट में ही 60 हजार फीट की उंचाई पर जा सकता है। चौथी विशेषता यह है कि हवा से जमीन पर मार करने के लिए स्केल्प मिसाइल से लैस है। पांचवीं विशेषता 17000 हजार किलोग्राम फ्यूल क्षमता की है। छठी विशेषता यह है कि इसमें हवा से हवा मार करने वाली मीटिवोर मिसाइल लगी है। सातवीं विशेषता यह है कि इसकी अधिकतम 2222 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड है। आठवीं विशेषता परमाणु हथियारों को सुरक्षित ले जाने की क्षमता रखता है। नौवीं विशेषता, इसमें इजरायल का हेलमेट माउंट डिस्प्ले लगा हुआ है। इसकी दसवीं विशेषता यह है कि यह किसी भी मौसम मे उड़ान भरने और अपने निशाने को हिट करने की क्षमता रखता है।
देश को पांच राफेल विमान मिल गए। भारतीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से राफेल की शक्ति बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने और दुश्मन देशों के नापाक इरादों तथा कारस्तानियों को विफल करने की गारंटी भी देता है। पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन भी राफेल की इस शक्ति के सामने भयभीत है और भारत की इस शक्ति का तोड़ खोजने में जुटा है। राफेल की शक्ति जुड़ने से नरेन्द्र मोदी की छवि और पराक्रम में भी वृद्धि हुई है। दुश्मन देश, दुश्मन शक्तियां वर्षों से राफेल हासिल करने में रोड़ा बनी हुई थी, वे नहीं चाहती थी कि भारत राफेल जैसा कोई लड़ाकू विमान हासिल करे। राफेल डील को निलंबित रखने के लिए बहुत सारी अड़चने डाली गईं। झूठ यह परोसा गया कि राफेल भारत की सुरक्षा चुनौतियों को पूरा नहीं करता है। कुछ दुश्मन देशों के पैसों पर पलने वाले बुद्धिजीवियों ने अफवाह फैलाई थी कि राफेल खरीद पर चीन जैसे देश नाराज हो जाएंगे और सीमा पर युद्ध की स्थिति उत्पन्ा होगी। ऐसी अफवाहों और धमकियाें ने रंग दिखाया और मनमोहन सिंह के 10 सालों के शासन काल के दौरान राफेल डील को निलंबित कर रखा गया।
चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों से निपटने लिए राफेल जैसे लड़ाकू विमानों की खरीद जरूरी थी। नरेंद्र मोदी जब सत्ता में आए तो उनके सामने यह यक्ष प्रश्न था। चीन और पाकिस्तान बार-बार भारतीय सीमा का उल्लंघन कर रहे थे। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कूटनीतिक तौर पर भारत को ब्लैकमेल कर रहे थे। भारत जब तक सुरक्षा के दृष्टिकोण पर कमजोर रहेगा चीन की ब्लैकमैंलिंग चलेगी। चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपमानित करता रहेगा और भारत के जवाब देने पर सीमा पर युद्ध की स्थिति खड़ी कर भयभीत करेगा। इसका उदाहरण जानना जरूरी है। भारत और अमेरिकी सैनिकों के बीच अभ्यास का कार्यक्रम निश्चित था। चीन को यह स्वीकार नहीं हुआ और उसकी धमकी के बाद मनमोहन सरकार ने अभ्यास रद कर दिया। नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद विदेशी दुश्मन देशों से आंखों में आंख डाल कर बात करने की नीति अपनाई। मोदी ने यह तय किया था कि चीन से रोज-रोज डरने से अच्छा है, उसका सामना किया जाए और उसे जवाब उसकी भाषा में ही दिया जाए। इसके लिए सबसे जरूरी था अपनी सुरक्षा की चुनौतियों को पूरा करना। हमारी सेना पहले से ही जर्जर थी। मनमोहन सरकार ने दस सालों तक सेना की जरूरत को पूरी करने में नाकाम रही। नरेंद्र मोदी ने अड़चनों को दूर करने में कामयाब हुए, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का प्रबंधन किया, अमेरिका की डर और धमकी का भी प्रबंधन किया। इसके उपरांत राफेल खरीदने के पराक्रम को सच कर दिखाया।
बोफोर्स की तरह राफेल सत्ता खोर नहीं बना। बोफोर्स ने राजीव गांधी की सत्ता खाई थी, वीपी सिंह की सत्ता बनाई थी। विपक्षी पार्टियां राफेल को बोफार्स बनाने की बहुत कोशिश कीं। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और अन्य राजनीतिक पार्टियां कहती थी कि नरेन्द्र मोदी के लिए सफेल बोफोर्स साबित होगा। राहुल गांधी तो राफेल खरीद पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर चौकीदार चोर है का नारा दिया था। राहुल को उम्मीद थी कि यह नारा काम आएगा। 2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी की पराजय होगी। पर जनता ने विश्वास नहीं किया। नरेंद मोदी ने राफेल को देश की अस्मिता के साथ जोड़ दिया। भारतीय सेना की शक्ति से जोड़ दिया। संसद के अंदर राफेल डील पर उठे प्रश्नों पर जवाब देते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा था कि राफेल नरेन्द्र मोदी की सत्ता में वापसी का मंत्र है और गारंटी भी। यह बात सच साबित हुई। सुप्रीम कोर्ट ने भी राफेल की खरीद पर क्लिन चीट देकर नरेंद्र मोदी के काम को आसान कर दिया। जनता ने भी यह समझा कि सीमाओं की रक्षा करने और दुश्मन देशों के नापाक इरादों को तोडड़े के लिए राफेल की शक्ति का होना जरूरी है।
जब-जब भारत परमाणु विस्फोट करता है, अपनी रक्षा बजट बढ़ाता है, राफेल जैसे खतरनाक लड़ाकू विमान की खरीदता है तब-तब देश के गद्दार और जयचन्दों के पेट मे मरोड़ होती है। ये कुर्तकों का पहाड़ खड़ा कर देते हैं, दुश्मन देश की तरफदारी करने से भी नहीं चूकते हैं। कहते हैं कि देश में इतनी गरीबी है तब रक्षा बजट क्यों बढ़ाया जा रहा है, खतरनाक हथियारों की होड़ गैर जरूरी है, इससे पड़ोसी देशों की अस्मिता का हनन होता हैं। इसी मानसिकता की भारत ने कीमत चुकाई है। तिब्बत पर कब्जा जमाने के साथ ही तय हो गया था कि चीन एक न एक दिन भारत पर भी हमला करेगा। पर जवाहरलाल नेहरू ने अपनी सेना मजबूत नहीं की थी। दुष्पिरणाम यह हुआ कि 1962 में भारत बुरी तरह पराजित हुआ है। चीन आज भी हमारी सीमा भूमि पर कब्जा जमाए बैठा है।
निश्चित तौर पर चीन और पाक के लिए राफेल लड़ाकू विमान गंभीर संदेश है। भारत अब अपनी सेना की चुनौतियों को पूरी करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। फ्रांस ही नहीं बल्कि अमेरिका, इजरायल और रूस के साथ लगातार रक्षा डील कर कर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस इसलिए शक्तिमान हैं क्योकि उसके पास आर्थिक शक्ति के साथ सामरिक शक्ति भी है। भारत को भी अगर दुनिया में सम्मान के साथ रहना है तो फिर अपनी सामरिक शक्ति भी मजबूत करना होगा। चीन ने लद्दाख में जो कारस्तानी की है उससे निपटने के लिए राफेल अचूक साबित होगा।
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