Ravi Shankar का लेख : बढ़ती आबादी, बढ़ती चुनौतियां

Ravi Shankar का लेख : बढ़ती आबादी, बढ़ती चुनौतियां
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संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के आंकड़ों के मुताबिक भारत 142.86 करोड़ लोगों के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने के लिए चीन से आगे निकल गया है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की सामाजिक आर्थिक समस्याओं की जननी बनकर देश के सामने खतरे की घंटी बन सकती है।

United Nations जनसंख्या कोष के आंकड़ों के मुताबिक भारत 142.86 करोड़ लोगों के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने के लिए चीन से आगे निकल गया है। जनसंख्या का संसाधनों पर दबाव बढ़ने से देश में आर्थिक, सामाजिक समस्याओं पर प्रभाव और बढ़ेगा। तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की सामाजिक आर्थिक समस्याओं की जननी बनकर देश के सामने खतरे की घंटी बन सकती है। जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा एवं गरीबी हैं। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। भारत के समक्ष बढ़ती जनसंख्या बड़ी चुनौती है।

सबसे ज्यादा जनसंख्या के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत 142.86 करोड़ लोगों के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने के लिए चीन से आगे निकल गया है। चीन (China) की जनसंख्या 142.57 करोड़ है। भारत में अब चीन के मुकाबले करीब 30 लाख ज्यादा लोग हैं। यूएनएफपीए की ‘दि स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट-2023’, जिसका शीर्षक ‘आठ बिलियन लाइव्स, इनफिनिट पॉसिबिलिटीज-दि केस फॉर राइट्स एंड चॉइस’ है, ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट जारी की है।

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रिपोर्ट में ताजा आंकड़े ‘डेमोग्राफिक इंडिकेटर्स’ की श्रेणी में दिए गए हैं, जिनमें कहा गया है कि अब दुनिया की आबादी आठ अरब हो गई है। यूएनएफपीए 1950 से दुनिया में आबादी से जुड़ा डाटा जारी कर रहा है। तब से यह पहला मौका है, जब भारत ने जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ा है। इस रिपोर्ट में यह साफ है कि चीन की आबादी पिछले साल अपने चरम पर पहुंच गई और अब इसमें गिरावट आने लगी है। वहीं भारत की आबादी फिलहाल बढ़ रही है। हालांकि भारत की आबादी के ग्रोथ रेट में भी 1980 के बाद से गिरावट देखी जा रही है। इसका मतलब यह है कि भारत की आबादी बढ़ रही है, लेकिन इसकी दर पहले के मुकाबले अब कम हो गई है।

यूएनएफपीए की नई रिपोर्ट के अनुसार भारत की 25 प्रतिशत जनसंख्या 0 से 14 वर्ष के आयु वर्ग में है। 18 प्रतिशत 10 से 19 आयु वर्ग में, 26 प्रतिशत 10 से 24 वर्ष की आयु वर्ग में, 68 प्रतिशत 15 से 64 वर्ष आयु वर्ग में और 65 वर्ष से ऊपर सात प्रतिशत है। वहीं चीन में 0 से 14 साल के बीच 17 प्रतिशत, 10 से 19 के बीच 12 प्रतिशत, 10 से 24 साल 18 प्रतिशत, 15 से 64 साल 69 प्रतिशत और 65 से ऊपर के लोगों की संख्या 14 प्रतिशत है। फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 18 फीसदी है। भूभाग के लिहाज के हमारे पास 2.5 फीसदी जमीन है। 4 फीसदी जल संसाधन है, इसलिए जनसंख्या का संसाधनों पर दबाव बढ़ने से देश में आर्थिक, सामाजिक समस्याओं पर प्रभाव और बढ़ेगा। तेजी से बढ़ती जनसंख्या (population) देश की सामाजिक आर्थिक समस्याओं की जननी बनकर देश के सामने खतरे की घंटी बन सकती है।

एक अनुमान के अनुसार देश में कामकाजी लोगों की संख्या अगले दो दशक में 30 फीसदी तक बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं विश्व में बीमारियों का जितना बोझ है उसका 20 फीसदी बोझ अकेले भारत पर है। वर्तमान में जिस तेज दर से विश्व की आबादी बढ़ रही है, उसके हिसाब से विश्व की आबादी में प्रत्येक साल तकरीबन आठ करोड़ लोगों की वृद्धि हो रही है और इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है। चिंता की बात यह है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे हों, परन्तु उनकी जनसंख्या विश्व के कई देशों की जनसंख्या से अधिक है। उदाहरणार्थ तमिलनाडु की जनसंख्या फ्रांस की जनसंख्या से अधिक है तो वहीं उड़ीसा अर्जेंटीना से आगे है। मध्यप्रदेश की जनसंख्या थाईलैंड से ज्यादा है तो महाराष्ट्र मैक्सिको को टक्कर दे रहा है। उत्तर प्रदेश ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो राजस्थान ने इटली को पछाड़ा है। गुजरात ने साउथ अफ्रीका को मात दे दी तो पश्चिम बंगाल वियतनाम से आगे बढ़ गया। अपनी इस उपलब्धि के साथ हम यह कह सकते है कि भारत में जनसंख्या के आधार पर विश्व के कई देश बसते हैं।

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जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा एवं गरीबी हैं। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। भारत के समक्ष तेजी से बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। इस स्थिति में जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय अभिशाप में बदलता जा रहा है। ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस ने ‘प्रिंसिपल ऑफ पॉपुलेशन’ में जनसंख्या वृद्धि और इसके प्रभावों की व्याख्या की है। माल्थस के अनुसार,‘जनसंख्या दोगुनी रफ्तार (1, 2, 4, 8, 16, 32) से बढ़ती है, जबकि संसाधनों में सामान्य गति (1, 2, 3, 4, 5) से ही वृद्धि होती है। परिणामतः प्रत्येक 25 वर्ष बाद जनसंख्या दोगुनी हो जाती है।

हालांकि माल्थस के विचारों से शब्दशः सहमत नहीं हुआ जा सकता, किंतु यह सत्य है कि जनसंख्या की वृद्धि दर संसाधनों की वृद्धि दर से अधिक होती है। भलें पिछले दो दशकों में भारत ने काफी तरक्की की है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि से बेरोजगारी स्वास्थ्य, परिवार, गरीबी, भुखमरी और पोषण से संबंधित कई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। भारत में अभी भी जागरूकता और शिक्षा की कमी है। लोग जनसंख्या की भयावहता को समझ नहीं पा रहे हैं। हाल ही में दुनिया में बढ़ते खाद्यान्न संकट के लिए एशिया को जिम्मेदार ठहराया गया था। तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने प्रदूषण की दर को भी धधका दिया है। जिससे जमीन की उर्वरता तेजी से घट रही है साथ ही पानी का स्तर भी तेजी से घट रहा है। ऐसे में आने वाली पीढ़ियों के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है।

जनसंख्या वृद्धि के कारणों में अन्य प्रमुख कारण है कम उम्र में विवाह होना। कानून बनने के बाद बाल विवाहों में तो कुछ कमी अवश्य आई है परन्तु अभी तक पर्याप्त सुधार नहीं हुआ है। भारतीय समाज में लड़के की चाहत भी जनसंख्या वृद्धि के लिए काफी कुछ जिम्मेदार है। यदि हमें देश को जनसंख्या वृद्धि के विस्फोट से बचाना है तो परिवार नियोजन जैसी योजनाएं बनानी पड़ेंगी जो देश के आम लोगों को आर्थिक रूप से सम्पन्न बना सकें। साथ ही साक्षरता के लिए भी प्रयास करना होगा। परिवार कल्याण कार्यक्रम में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही, हमें कुछ ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिनसे जनता स्वयं इसमें रुचि ले। देश में एक मत का निर्माण होना चाहिए कि कैसे देश में सीमित संसाधनों के बीच बढ़ती जनसंख्या पर नकेल कसी जाए, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बढ़ती जनसंख्या को धार्मिक रंग देने की कोशिश करते हैं।

निश्चित रूप से भारत में जनसंख्या वृद्धि को रोकना एक कठिन चुनौती है, जिसे हमें स्वीकारना होगा और इसके लिए उत्तरदायी कारणों का समूल नाश करना होगा। साथ ही, देश के प्रत्येक नागरिक को निजी स्वार्थ त्याग कर देशहित में परिवार का स्वरूप निधर्रित करना होगा और यथा सामर्थ्य समाज को जागरूक करने का प्रयास करना होगा। यदि सभी नागरिक ईमानदारी पूर्वक अपना सहयोग दें तो निश्चय ही देश की बढ़ती आबादी को रोका जा सकता है। तभी आबादी से उत्पन्न तमाम संकट दूर होंगे और देश खुशहाल हो सकेगा।

रवि शंकर (लेखक पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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