प्रभात कुमार रॉय का लेख : जिद छोड़ें रूस और यूक्रेन

प्रभात कुमार रॉय
इस वर्ष 23 फरवरी को रूस की सेना ने यूक्रेन पर धावा बोल दिया था। 24 अगस्त को यूक्रेन द्वारा अपना को स्वातंत्रय दिवस अत्यंत उत्साह के साथ आयोजित किया गया। इस तरह से अभी तक जारी युद्ध को छह महीने व्यतीत हो चुके हैं। तकरीबन साढ़े चार करोड़ यूक्रेनी नागरिक अपने राष्ट्रपति जेलेंस्की के नेतृत्व में रूस के आक्रमण के विरुद्ध एकजुट होकर युद्धरत हैं। एक बड़ी सैन्य शक्ति होने को बावजूद रूस को यूक्रेन पर निर्णायक फतह हासिल नहीं हो सकी है। पश्चिम के नॉटो राष्ट्रों को विगत वर्ष अगस्त माह से ही अपनी खुफिया ऐजेंसियों के माध्यम से इस तथ्य की जानकारी बाकायदा उपलब्ध थी कि यूक्रेन पर रूस का आक्रमण किसी भी वक्त संभव हो सकता है। अमेरिका के नेतृत्व में नॉटों राष्ट्रों वस्तुतः यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को भरोसा दिलाते रहे कि रूस द्वारा सैन्य आक्रमण अंजाम दिए जाने की किसी भी स्थिति में नॉटो सैन्य संठगन यूक्रेन के साथ सन्नद होकर खड़ा होगा। नॉटो सैन्य संगठन में शामिल होने की यूक्रेन की प्रबल महत्वाकांक्षा ने ही वस्तुतः रूस और यूक्रेन के मध्य वर्तमान सैन्य संघर्ष की पृष्ठभूमि का निर्माण किया। यूक्रेन की जेलेंस्की हुकूमत अपने इस फैसले पर बाकायदा अडिग बनी रही कि उसको हर हाल में नॉटो सैन्य संगठन का सदस्य देश बनना ही है। रशिया को कदापि नहीं स्वीकार्य नहीं है कि यूक्रेन के माध्यम से नॉटो सैन्य शक्ति उसके द्वार पर आकर सन्नद हो जाए। यही वह प्रस्थान बिंदु है, जहां से राष्ट्रपति पुतिन द्वारा आखिरकार यूक्रेन पर सैन्य आक्रमण अंजाम देने का कठोर निर्णय ले लिया गया। विश्वपटल पटल दो शक्तिशाली सैन्य गुटों में विभक्त हो चुके देशों के मध्य यूक्रेन युद्ध पहली बड़ी सैन्य भिड़त है, जिसका खामियाजा साढ़े चार करोड़ आबादी वाले यूक्रेन को विनाशकारी तौर पर भुगतना पड़ रहा है। यूक्रेन युद्ध में एक तरफ अमेरिका के नेतृत्व में नॉटो राष्ट्र खड़े हैं तो दूसरी तरफ रूस, चीन, ईरान आदि अनेक देश एकजुट हैं। नॉटो राष्ट्रों के सैन्य सलाहकार जनरल जिम हॉकनहुल ने कहा है कि रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध इस स्थिति में पहुंच गया है कि राष्ट्रपति पुतिन अपनी सेना को यूक्रेन के विरुद्ध न्यूक्लियर अस्त्र को इस्तेमाल की इजाजत दे सकते हैं।
अभी हाल ही में यूक्रेन पर रशिया के सैन्य आक्रमण के दौरान ज़ापोरिज़िया न्यूक्लियर पॉवर प्लांट पर आधिपत्य स्थापित करने के संघर्ष में न्यूक्लियर विस्फोट हो जाने का खतना उत्पन्न हो गया था। विगत अनेक दिनों से यूक्रेन की राजधानी कीव से 550 किलोमीटर दूर यूक्रेन के दक्षिण में ज़ापोरिज़िया न्यूक्लियर पॉवर प्लांट के आसपास निरंतर युद्ध चल रहा है। रूस और यूक्रेन दोनों ने ही दावा किया है कि परमाणु प्लांट के दफ्तर और फायर स्टेशन पर 10 आक्रमण किए गए। दोनों ही देशों ने आक्रमण का आरोप एक-दूसरे पर थोप दिया है। इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहन गंभीर चिंता उत्पन्न हो गई है। संयुक्त राष्ट्र ने सुझाव प्रदान किया है कि ज़ापोरिज़िया परमाणु प्लांट के आसपास के समस्त क्षेत्र को डीमिलिटराइज़्ड ज़ोन घोषित किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि अगर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट क्षतिग्रस्त हुआ तो इसका नतीजा अत्यंत विनाशकारी सिद्ध होगा। वहीं अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने कहा है कि वह स्थिति को लेकर बेहद चिंतित और गंभीर हैं। उल्लेखनीय है कि 26 अप्रैल 1986 को चेरनोबिल में अचानक न्यूक्लियर विस्फोट हो जाने के कारण हजारों लोग मारे गए थे।
राष्ट्रपति पुतिन को यह कल्पना कतई नहीं रही होगी कि यूक्रेन इतने दीर्घकाल तक शक्तिशाली रूस की सेना का अत्यंत कामयाबी के साथ मुकाबला कर सकेगा। सैन्य इतिहास के जानकार बखूबी बयान करते हैं कि छोटे से साम्यवादी देश वियतनाम ने क्रमशः फ्रांस, अमेरिका और चीन को जबरदस्त सैन्य शिकस्त दे डाली। अफ़गानिस्तान तो सोवियत रशिया और अमेरिका दोनों की सेनाओं के लिए कब्रगाह बन गया।
यूक्रेन युद्ध में रूस के राष्ट्रपति पुतिन का सैन्य दंभ चकनाचूर हो चुका है। यूक्रेन के देशभक्त जांबाज लड़ाकों ने रूसी सेना को अविस्मरणीय सैन्य चुनौती दी है। नॉटो राष्ट्रों ने यूक्रेन युद्ध में आधुनिकतम अस्त्र शस्त्रों की भरपूर आपूर्ति जारी रखी है। पूर्वी यूक्रेन में मोर्चे पर लड़ रहे जवानों का कहना है कि पश्चिमी देशों से मिले आधुनिक हथियारों ने रूस की ओर से जारी भारी बमबारी पर लगाम सा लगा दिया है, लेकिन क्या ये महज एक अस्थायी ठहराव है या तूफ़ान से पहले वाली शांति का संकेत है? यह सत्य है कि कि यूक्रेन एक विशाल इलाका रूसी सेना के हाथों तबाह हो चुका है, उत्तर में तबाह हो चुके, स्लोवयांस्क क्षेत्र से अगर कोई पूर्वी यूक्रेन के घुमावदार डोनबास क्षेत्र में युद्ध के मोर्चे तक जाए या दक्षिण में दोनेत्स्क में ख़ाली पड़े खेतीहर गांवों तक पहुंचें तो दिखाई देगा कि किस नृशंसता के साथ रूस ने तमाम इलाकों में बम-गोले बरसाए हैं और ये भयानक बमबारी आजकल भी निरंतर जारी है, किंतु यूक्रेन के लड़ाके भी रूस के सैन्य ठिकानों को जबरदस्त क्षति पहुंचा रहे हैं। अपेक्षा से कहीं अधिक आगे बढ़कर यूक्रेन ने रुसी आक्रमण का प्रबल प्रतिरोध किया है।
अत्याधिक सैन्य क्षति हो जाने के कारणवश राष्ट्रपति पुतिन बड़ी तादाद में अपनी सैन्य शक्ति को यूक्रेन युद्ध में अब झोंक रहे हैं। यूक्रेन युद्ध के दौर में सैन्य रणनीति के प्रश्न पर रूसी राष्ट्रपति और रूसी सैन्य जनरलों के मध्य तीखे मतभेद भी उभर कर सामने आ रहे हैं। यूक्रेन वस्तुतः युद्ध में रूस के हाथों अपने विजित हुए इलाकों पर पुनः आधिपत्य करने की जोरदार कोशिश कर रहा है। कुछ इलाकों में तो यूक्रेन को विस्मयकारी फतह भी हासिल हो रही है। भारत ने पहली दफ़ा राष्ट्रपति जेलेंस्की द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करने के प्रश्न पर रशिया के विरुद्ध मतदान किया है, किंतु भारत के इस कदम से ऐसा अंदाजा लगाना उचित नहीं है कि रुस के प्रति भारतीय विदेशनीति परिवर्तित हो रही है।
रूस द्वारा यूक्रेन के विरुद्ध अख्त्यार की गई, आक्रमक रणनीति से प्रेरित होकर ताइवान पर चीन निकट भविष्य में आक्रमण अंजाम दे सकता है। साम्यवादी चीन के नेता वस्तुतः सन 1949 से ही ताइवान पर आधिपत्य स्थापित करने की महत्वाकांक्षा निरंतर प्रकट करते रहे हैं, किंतु जिस शानदार हौसले और परम शौर्य के साथ यूक्रेन, युद्ध के मैदान में रूसी सेना के आक्रमण का कड़ा मुकाबला कर रहा है और उसने रूस की निर्णायक फतह पर कड़ी लगाम कस दी है, इस ज्वलंत तथ्य से चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग को गंभीर सबक लेना चाहिए। ढाई करोड़ आबादी वाला ताइवान भी यूक्रेन की तरह से ही चीन का निर्णायक तौर पर मुकाबला अंजाम देगा। आज जिस तरह तकरीबन आधी दुनिया यूक्रेन के साथ खड़ी हो गई है, इसी तरह से ताइवान के साथ भी खड़ी हो जाएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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