प्रभात कुमार रॉय का लेख : रूस-यूक्रेन तनाव का हो अंत

प्रभात कुमार रॉय
पश्चिमी मुल्कों की खुफिया एजेंसियां यह चेतावनी निरंतर प्रदान कर रही हैं कि रूस की फौज़ किसी भी वक्त यूक्रेन पर आक्रमण अंजाम दे सकती है। यूक्रेन और रूस की सरहद पर रशिया की तकरीबन एक लाख फौज़ विगत अनेक हफ्तों से तैनात रही है। प्रबल आशंका है कि आगामी वक्त में रशियन फौज यह तादाद दो लाख तक पंहुच सकती है। अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन को सैन्य इमदाद प्रदान करने का हुक्म जारी कर दिया है। अतः इसी सप्ताह अमेरिकन सैन्य सामग्री की प्रथम खेप यूक्रेन पहुंच चुकी है। ब्रिटिश विदेश मंत्रालय का कहना है ब्रिटिश सरकार यूक्रेन को टैंक रोधी हथियार और बख़्तरबंद गाड़ियां भी मुहैया करा रही है। ऐसा भी दावा पेश किया गया है कि अगर रशिया का फौज़ यूक्रेन की सरहद के अंदर घुसती है तो ब्रिटेन भी नॉटो सैन्य फ्रंट के लिए अपनी फौज़ भेजेगा। हालांकि रूसी हुकूमत ने यूक्रेन पर आक्रमण अंजाम देने के नीयत और रणनीति से बाकायदा इंकार किया है।
अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडन ने फरमाया है कि उनको प्रतीत होता है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी फौज़ को यूक्रेन में सैन्य दखंलदाजी अंजाम देने का हुक्म दे सकते हैं। राष्ट्रपति जो बाइडन के मुताबिक रूस की सैन्य दखंलदाजी को भी यूक्रेन पर आक्रमण ही समझा जाएगा। राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को आधिकारिक तौर पर आश्वासन प्रदान किया है कि अमेरिका की कयादत में नॉटो सैन्य फ्रंट राष्ट्र आक्रमण की स्थिति में यूक्रेन के साथ सैन्य तौर से सन्नद खड़े हैं। अमेरिकन राष्ट्रपति का कहना है कि यूक्रेन संकट के समुचित निदान करने की खातिर रूसी हुकूमत के साथ अमेरिकन सरकार की कूटनीतिक बातचीत को निरंतर जारी रखा जाएगा।
नॉटो सैन्य फ्रंट के यूरोपीयन देशों ने गंभीर आशंका व्यक्त की है कि युद्ध के कगार पर खड़े हुए रूस और यूक्रेन के मध्य एक भी गोली चल गई, तो वह विस्फोटक चिंगारी बनकर, वस्तुतः समस्त यूरोप को युद्ध की भीषण विभीषिका में झोंक सकती है। अंतराष्ट्रीय संबधों के प्रख्यात विश्लेषकों के मुताबिक द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात यह यूरोप में उत्पन्न हुआ सबसे विकट सैन्य तनाव का दौर है। रूस द्वारा क्रिमिया पर सैन्य आधिपत्य स्थापित कर लिए जाने के तत्पश्चात यूक्रेन आत्मरक्षा के लिए नॉटो सैन्य फ्रंट का सदस्य देश बन जाने के लिए लालायित हो उठा है। रशियन हुकूमत कदापि नहीं चाहती कि कम्युनिस्ट हुकूमत के ऐतिहासिक दौर में पूर्व सोवियत रूस का बाकायदा हिस्सा बना रहा, यूक्रेन किसी भी तौर पर नॉटो सैन्य फ्रंट में शामिल होने पाए। यूक्रेन को नाटो सैन्य फ्रंट का सदस्य देश बन जाने से रोकने के लिए, रशिया द्वारा यूक्रेन पर जबरदस्त तौर पर सैन्य दबाव कायम किया गया है।
रूस की पुतिन हुकूमत चाहती है कि पूर्वी यूरोप के तमाम पूर्व कम्युनिस्ट मुल्कों में नॉटो सैन्य संगठन को अपनी सैन्य गतिविधियों का तत्काल परित्याग कर देना चाहिए। रूसी हुकूमत चाहती है कि पूर्वी यूरोप के समस्त पूर्व कम्युनिस्ट देशों को जोकि ऩाटो सैन्य फ्रंट के सदस्य देश बन चुके हैं, उन तमाम देशों की फौज की तादाद और नॉटो से प्राप्त होने वाले हथियारों की तादाद तय कर दी जाए। रूसी हुकूमत यह भी चाहती है कि 1997 के पश्चात पूर्वी यूरोप में नॉटो द्वारा स्थापित किया गया सैन्य ढांचा समाप्त किया जाए। इंटरनेशनल फ़ॉरेनसाइट ऐंड एनालिसिस फ़र्म जियोपॉलिटिकल फ़्यूचर्स के चैयरमैन जॉर्ज फ़्राइडमैन रूस की मांग को संक्षेप में बयान करते हैं कि रशियन हुकुमत चाहती है कि शीत युद्ध के दौर में जो पूर्वी यूरोप की सैन्य स्थिति कायम रही थी, वही स्थित फिर से बहाल कर दी जाए। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के कुछ जानकार यूक्रेन संकट को राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की सैन्य सनकों का परिणाम क़रार दे रहे हैं। अंतराष्ट्रीय कूटनीति के अनेक प्रख्यात जानकारों को कहना है कि वस्तुतः विश्व अब बाकायदा शीतयुद्ध के एक नए दौर में अपने कदम रख चुका है।स ्मरण कीजिए 25 दिसंबर 1991 को जबकि सोवियत रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बोचोव ने अपना त्यागपत्र पेश किया और क्रेमलिन पर फहराते हुए सोवियत रशिया के लाला झंडे का स्थान रशिया के तिरगे झंडे ने ले लिया। तत्कालीन राष्ट्रपति गोर्बोचोव ने अपनी समस्त शक्तियों को निर्वाचित राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के हवाले कर दिया। सोवियत रूस के परम पराभव के पश्चात शीतयुद्ध का संपूर्ण समापन संपन्न हो गया। दुनिया एक एकध्रुवीय शक्ति बन गई और इस एकध्रुवीय दुनिया का अमेरिका बेताज बादशाह बन बैठा।
शीतयुद्ध के वर्तमान नए दौर में प्रायः निरुपित किया गया कि अमेरिका का सीधा मुकाबला अब चीन से होगा, किंतु आज की वस्तु स्थिति में तो शीतयुद्ध के नए दौर में रूस द्वारा अमेरिका को सीधे सैन्य चुनौती पेश की जा रही है और चीन यक़ीनन रूस के साथ एकजुट होकर खड़ा हो गया। यदि रूस यूक्रेन पर सैन्य हमला कर देता है तो फिर अमेरिकन सेना की सीधी टक्कर रूस के सैनिकों के साथ होगी। पुतिन के नेतृत्व में रूस विश्व पटल पर एक महाशक्ति के तौर पर उभर कर सामने आया है। चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत द्वारा दोनों शक्तियों से शांति बनाए रखने की अपील की है और युद्ध की मानसिकता का तत्काल परित्याग कर देने की पेशकश की है। चीन के विदेशमंत्री वांग यी ने यह भी फरमाया कि चाइना की हुकूमत रशिया के साथ हर हाल में खड़ी रहेगी, उन्होने पूर्वी यूरोप के विषय में रूस की मांगों को न्यायपूर्ण बताया। संयुक्त राष्ट्र में रूस को अमेरिका द्वारा अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए खतरा करार दिए जाने को चीन के राजदूत ने बेबुनियाद और बेहूदा इल्जाम बताया। अमेरिका में चीन के राजदूत क़िन गांग ने कहा कि यदि कोई नया शीत युद्ध प्रारम्भ हो गया है तो चीन निश्चित तौर पर सोवियत यूनियन नहीं है कि वह अमेरिका से पराजित हो जाएगा। ताइवान के मामले में अमेरिका को अत्यंत एहतियात से काम लेना चाहिए क्योंकि ताइवान का प्रश्न दोनों देशों को टकराने करने के लिए काफ़ी है।
यूक्रेन सैन्य संकट में अमेरिका वस्तुतः भारत को नॉटो सैन्य फ्रंट के पक्ष में देखना चाहता है। वस्तु स्थिति यह है कि भारत रूस के अधिक निकट रहा है। विगत सत्तर वर्षों से भारत का रूस से सामरिक संबंध है। भारत ने यूएस व रूस के मध्य कूटनीतिक संतुलन को कायम रखा है। 31 जनवरी को यूक्रेन सैन्य संकट पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मीटिंग में होने वाली वोटिंग में भारत ने शिकरत नहीं की। भारतीय प्रतिनिधि ने यूरोप में स्थिरता और शांति स्थापित करने की अपील की। रूस के साथ कायम रहे हैं, ऐसी स्थिति में भारत को यूक्रेन संकट का निदान निकालने की पहल अंजाम देनी चाहिए।
लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं। ये उनके अपने विचार हैं।
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