सतीश सिंह का लेख : संकट में भरोसा जीत रहा सोना

भू-राजनीतिक संकट और महंगाई की वजह से डॉलर सूचकांक में भी गिरावट देखने को मिल रही है, जिससे सोने की मांग में अभी तेजी बने रहने का अनुमान है, क्योंकि डॉलर की कीमत में कमी आने से लोग सोने में निवेश करना बेहतर विकल्प समझते हैं। दुनिया के सभी केंद्रीय बैंक कम या ज्यादा सोने में निवेश करते हैं। फिलवक्त, बढ़ती महंगाई, ऋण ब्याज दर के उच्च स्तर पर बने रहने, भू-राजनैतिक संकट, वैश्विक मंदी की आशंका आदि की वजह से लोगों का निवेश के दूसरे माध्यमों पर भरोसा कम हो गया है। लोगों को लग रहा है कि सोने में निवेश करके वे पैसे को सुरक्षित रख सकते हैं साथ ही साथ उन्हें अच्छा प्रतिफल भी मिल सकता है।
ब्याज दरों में तेजी और बॉन्ड प्रतिफल में भारी बढ़ोतरी के बावजूद 2023 में सोने की चमक और भी चमकीली हो रही है। इस साल सितंबर महीने तक सोने ने 10.6 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है, जबकि 1 साल के अंदर इसने 20 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है। एक तरफ हमास और इजराइल के बीच चल रहे युद्ध की वजह से मिडिल ईस्ट में तनाव बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ रूस और यूक्रेन के बीच एक लंबे समय से युद्ध चल रहा है। भू-राजनीतिक संकट की वजह से वैश्विक स्तर पर महंगाई उच्च स्तर पर बनी हुई है, जिसे काबू करने के लिए फेडरल रिजर्व बैंक आगामी मौद्रिक समीक्षाओं में ब्याज दर में कटौती कर सकता है। अमूमन, दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व बैंक के नक्शे कदम पर चलते हैं, इसलिए, माना जा रहा है कि जब फेडरल बैंक ब्याज दर में कटौती करेगा तो दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक भी ब्याज दरों में कटौती करेंगे, जिससे ऋण और जमा दोनों ब्याज दरों में कमी आएगी। जब जमा ब्याज दर में कमी आएगी तो बेहतर प्रतिफल के लिए लोग सोने में निवेश करेंगे।
भू-राजनीतिक संकट और महंगाई की वजह से डॉलर सूचकांक में भी गिरावट देखने को मिल रही है, जिससे सोने की मांग में अभी तेजी बने रहने का अनुमान है, क्योंकि डॉलर की कीमत में कमी आने से लोग सोने में निवेश करना बेहतर विकल्प समझते हैं। दुनिया के सभी केंद्रीय बैंक कम या ज्यादा सोने में निवेश करते हैं। रिजर्व बैंक ने 2022 के सितंबर तिमाही में 158.6 टन सोना खरीदा था, जबकि 2022 के दिसंबर तिमाही में 458.8 टन सोना खरीदा था। वहीं, 2023 की मार्च, जून और सितंबर तिमाही में क्रमशः 381.8 टन, 284 टन और 103 टन सोना खरीदाथा। वहीं,विश्व के कुछ देशों के केंद्रीय बैंकों ने कैलेंडर वर्ष 2022 में 1136 टन से अधिक सोना खरीदा था, जो किसी भी कैलेंडर वर्ष में सबसे अधिक था। इस साल भी केंद्रीय बैंक अपने जमा आधार के फलक को विस्तृत करने के लिए और भी सोना खरीद सकते हैं। जब सोने की खरीददारी ज्यादा होगी तो उसकी कीमत में भी इजाफा होगा।
जून 2008 में 10 ग्राम सोने की कीमत 11,901 रुपये थी, जबकि जून 2014 में 10 ग्राम सोने की कीमत 25,924 रुपये थी, वहीं, जून 2017 में 10 ग्राम सोने की कीमत 29,499 रुपये थी। अगस्त 2020 में सोने की कीमत में अभूतपूर्व इजाफा हुआ और यह 56,499 रुपये के स्तर पर पहुंच गई और अक्तूबर 2023 में इसकी कीमत 60,382 रुपये पर पहुंच गई थी,जिसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जोड़ने पर इसकी कीमत 62,193 रुपये हो गई। विगत 10 सालों में सोने ने 105 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है, जबकि वैश्विक बाजार में सोने की कीमत में 63 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जानकारों के अनुसार 2024 के अंत तक 10 ग्राम सोने की कीमत 70,000 रुपये के स्तर को छू सकती है। दशहरा में पिछले साल के मुक़ाबले सोने की बिक्री में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि दीपावली का त्योहार का अभी आना बाकी है। वैसे, त्योहारी मौसम के समाप्त होने के बाद भी सोने की चमक बरकरार रहेगी, क्योंकि दिसंबर से विवाह का मौसम शुरू हो जाएगा और शादी में लोग अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार कम या ज्यादा सोने की खरीददारी जरूर करते हैं।
यह भी देखा गया है कि जैसे ही अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ने लगती है, वैसे ही, निवेशक सोने में निवेश करने लगते हैं, क्योंकि दूसरे निवेश के माध्यमों में प्रतिफल कम मिलने लगता है और वह सुरक्षित भी नहीं रहता है। वैसे, भारत मामले में अपवाद है, क्योंकि यहां मंदी में भी लोग सोने में निवेश करते हैं, क्योंकि भारत में यह अनादि काल से निवेश का सबसे बेहतर माध्यम माना गया है। सोने की कीमत के उतार-चढ़ाव के 50 सालों के इतिहास को देखने से पता चलता है कि सोने की कीमत में बड़े उतार-चढ़ाव 4 से 5 सालों तक चलते रहते हैं। ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि सोने की कीमत आने वाले कुछ सालों तक उच्च स्तर पर बनी रह सकती है।
भारत में सोना हमेशा से सोणा रहा है, क्योंकि भारत में महिलाएं सोने के प्रति दीवानी हैं और यह दीवानगी अनादिकाल से है। प्राचीनकाल में तो स्त्रियों के साथ-साथ पुरुष भी सोने के गहने पहना करते थे। मई 2022 में हड़प्पाकालीन राखीगढ़ी में हुई खुदाई में भी सोने के कड़े, बाली आदि आभूषण मिले थे, जिन्हें पुरुष पहना करते थे। खुदाई में स्त्रियों द्वारा पहनी जाने वाली चूड़ियां, हार, अंगूठी, झुमके आदि भी मिले हैं। इस तरह, भारतीयों के रहन-सहन, सभ्यता-संस्कृति आदि में सोना इस तरह से रचा-बसा है कि इसके बिना उनका जीवन अधूरा है। ऋग्वेद जैसे प्राचीनतम ग्रन्थ में सृष्टि की उत्पत्ति हिरण्यगर्भ नामक सोने के अंडे रूपी बीज से होना माना गया है, जो इस बात का सबूत है कि भारतीयों का जीवन सोने के बिना अधूरा है। भारतीय स्त्रियों के लिए सोना उनके लिए सिर्फ गहना नहीं है, बल्कि उनके सुहाग, स्वाभिमान और गौरव का प्रतीक है। हिंदू धर्म के 16 संस्कारों अर्थात जन्म से मृत्यु तक में सोने का लेनदेन किया जाता है।
दक्षिण भारत के राज्यों की देश के कुल गहने की खरीदारी में 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, जिसमें से अकेले तमिलनाडु की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत है। भारत के मंदिरों में भी अकूत सोना जमा है। इस संबंध में डब्ल्यूजीसी ने वर्ष 2020 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके अनुसार लगभग 4 हजार टन से अधिक सोना भारत के मंदिरों में जमा है। उदहारण के तौर पर केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर में 1,300 टन सोना जमा है, जबकि आंध्रप्रदेश के तिरुपति मंदिर में लगभग 300 टन सोना जमा है। चूंकि, भारत सोने की मांग की घरेलू आपूर्ति खुद से करने में असमर्थ है, इसलिए भारत को घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
आज के दौर में भारत अपनी सोने की घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए स्विट्जरलैंड से 45.8 प्रतिशत, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से 12.7 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका और गिनी से 7.3 प्रतिशत और पेरू से 5 प्रतिशत सोने का आयात करता है। सोना खरीदने के मामले में दुनिया में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर आता है। फिलवक्त, बढ़ती महंगाई, ऋण ब्याज दर के उच्च स्तर पर बने रहने, भू-राजनैतिक संकट, वैश्विक मंदी की आशंका आदि की वजह से लोगों का निवेश के दूसरे माध्यमों पर भरोसा कम हो गया है। लोगों को लग रहा है कि सोने में निवेश करके वे अपने पैसे को सुरक्षित रख सकते हैं साथ ही साथ उन्हें अच्छा प्रतिफल भी मिल सकता है।
सतीश सिंह (लेखक अर्थशास्त्र के जानकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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