डाॅ. एलएस यादव का लेख : पूर्वोत्तर में घटेगा अफस्पा का दायरा

डाॅ. एलएस यादव
केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर के तीन और राज्यों असम, मणिपुर और नागालैंड के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (अाफस्पा) के दायरे को घटाने का फैसला लिया है। उल्लेखनीय है कि इन इलाकों से आफस्पा हटाए जाने की मांग पिछले काफी दिनों से चली आ रही थी। इस हिसाब से सरकार ने सही दिशा में यह कदम उठाया है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। सरकार के इस फैसले के बाद अब यह कानून केवल 31 जिलों में पूरी तरह तथा 12 जिलों में आंशिक रूप से प्रभावी रह गया है। इन जिलों को एक अप्रैल से छह महीने के लिए अशान्त घोषित किया गया है। असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश्ा और नागालैंड में कुल 90 जिले हैं। गौरतलब है कि आफस्पा के तहत किसी भी क्ष़्ोत्र में होने वाले उपद्रव को शान्त करने के लिए सैन्य बलों को विशेष अधिकार हासिल होते हैं और उनके द्वारा की गई कार्रवाई कानूनी जवाबदेही से मुक्त होती है, इसीलिए आफस्पा को केवल अशान्त क्षेत्रों में लागू किया जाता है।
इससे पहले वर्ष 2015 में त्रिपुरा और वर्ष 2018 में मेघालय से आफस्पा को पूरी तरह से हटा लिया गया था जबकि मिजोरम से 1980 के दशक से ही इसे पूरी तरह से हटा लिया गया था। देश के कुछ बु़िद्धजीवी और नागर समाज के लोग इस कानून की आलोचना करते रहे हैं। मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला आफस्पा को हटाने के लिए 16 वर्षों से हड़ताल कर रहीं है। इरोम शर्मीला ने केन्द्र सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि विद्रोह से लड़ाई के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए गए। यदि इस रकम का इस्तेमाल पूर्वोत्तर के विकास पर होता तो आज पूर्वोत्तर की तस्वीर अलग होती। दरअसल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना रहा है कि इस कानून से नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर कुठाराघात होता है। वहीं दूसरी तरफ यह भी सच है कि उत्तर पूर्व के राज्य अधिकांश रूप में उग्रवाद एवं अलगाववादी हिंसा से प्रभावित रहे हैं, इसीलिए इन इलाकों में आफस्पा को विस्तार मिलता रहा है। यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि हिंसा से पीड़ित उत्तर पूर्व का शेष भारत के साथ एकीकरण बनाए रखने में आफस्पा की ही प्रमुख भूमिका भी रही है। दरअसल इस कानून के अंतर्गत सुरक्षा बलों को बिना वारंट किसी भी नागरिक को गिरफ्तार करने का अधिकार है और यदि किसी संदिग्ध व्यक्ति की सुरक्षा बलों की गोलीबारी से मौत हो जाए तो यह कानून उन्हें अभियोजन से सुरक्षा भी प्रदान करता है। सेना का मानना है कि आंतरिक सुरक्षा या फिर किसी राज्य में कानून व्यवस्था सुधारने के लिए सेना के पास पुलिस जैसे आईपीएस व सीआरपीसी जैसे कानून नहीं हैं। ऐसे में शान्ति बहाली के लिए सेना के लिए आफस्पा का होना बहुत जरूरी है।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पूर्वोत्तर के राज्यों में आफस्पा के तहत घोषित अशान्त क्षेत्रों में कटौती की घोषणा की है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई दो अधिसूचनाओं के मुताबिक नगालैंड के दीमापुर, चूमोकेदिमा, मोन, किफिरे, नोकलाक, फेक, पेरेन और जुंबोटो जिलों को एक अप्रैल से छह महीने के लिए अशान्त घोषित कर दिया है। इसके अलावा कोहिमा, मोकोकचुंग, लोंगलेंग और वोखा जिले के कुछ हिस्सों को अशान्त घोषित किया है। पूरे नगालैंड में वर्ष 1995 से अशांत क्षेत्र अधिसूचना लागू थी। इस तरह अब केन्द्र सरकार ने चरणबद्ध तरीके से आफस्पा हटाने के लिए गठित समिति की सिफारिशों को मान लिया है। असम प्रान्त की अधिसूचना के मुताबिक वहां के 23 जिलों को पूरी तरह से और एक उप-संभाग से आंशिक रूप से आफस्पा को हटा लिया गया है। वहीं तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चराईदेव, शिवसागर, जोरहाट, गोलाघाट, कार्बी आंगलोंग, पश्चिमी कार्बी आंगलोंग, दिमा हसाओ और कछार जिले के लखीमपुरउप-संभाग में आफस्पा पहले की तरह लागू रहेगा। इंफाल नगरपालिका के क्षेत्र को छोड़कर पूरे मणिपुर में वर्ष 2004 से आफस्पा लागू था। अब नई अधिसूचना के बाद मणिपुर राज्य में पूर्वी इंफाल जिले के चारथाना क्षेत्रों, पश्िचमी इंफाल जिले के सात पुलिस थाना क्षेत्रों एवं जिरीबाम, काकचिंग, धुवल और विष्णुपुर जिले के एक-एक पुलिस थाना क्षेत्र अशान्त नहीं रहेंगे, जबकि अरुणाचल प्रदेश के कुल 23 जिलों में से तिरप, चांगलांग और लोंिगंग तथा नामसाई में नामसाई एवं महादेवूर थाना क्षेत्रों को छह महीने के लिए अशान्त घोषित किया है।
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के दायरे को घटाए जाने संबंधी केन्द्र सरकार के फैसले का अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने भी स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में शान्ति की बहाली हुई है और यह क्षेत्र अब देश की मुख्यधारा का हिस्सा बन गया है और शान्तिपूर्ण पूर्वोत्तर देशभर के लोगों की प्रतीक्षा कर रहा है। उन्होंने लागों से यहां पर निवेश की अपील की। विदित हो कि आफस्पा कानून 2015 में अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों की असम से लगती 20 किलोमीटर की पट्टी पर तथा नौ जिलों के 16 थाना क्ष़्ोत्रों में लागू था। इसका दायरा धीरे-धीरे कम किया गया और अब अरुणाचल प्रदेश के सिर्फ तीन जिलो ंतथा एक अन्य जिले के दो थाना क्षेत्रों में ही आफस्पा कानून लागू है।
आफस्पा हटाए जाने फैसला पूरी तरह से सुरक्षा आकलन पर आधारित होता है। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पूर्वोत्तर में वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2021 में हुई उग्रवादी घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी आई है। इसी तरह इस अवधि में सुरक्षाकर्मियों और आम लोगों की मौत होने की घटनाएं भी क्रमशः 60 और 40 फीसदी कम हुई हैं। पूर्वोत्तर में उग्रवाद समाप्त करने और स्थायी शान्ति के लिए कई समझौते भी हुए हैं। तभी पिछले कुछ वर्षों में लगभग 70000 उग्रवादियों ने सरेंडर किया है। त्रिपुरा में उग्रवादियों को मुख्यधारा में लाने के लिए 2019 में एनएलएफटी समझौता हुआ। जनवरी 2020 में बोडो समझौते ने पांच दशक पुरानी समस्या का हल किया। वर्ष 2021 में कार्बी आंगलोंग समझौता किया गया। पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद से संबंधित घटनाएं वर्ष 2014 में 824, वर्ष 2015 में 574, सन 2016 में 484, 2017 में 308, 2018 में 252 और वर्ष 2019 में 223 घटनाएं हुईं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब आफस्पा के हटाए जाने का निर्णय पूर्वोत्तर के समग्र विकास में सहायक सिद्ध होगा। पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा जम्मू कश्मीर से इसे हटाए जाने के लिए प्रदर्शन होते रहे हैं। अब वहां पर आतंकवाद में आहिस्ता-आहिस्ता कमी आ रही है और शान्ति आने पर वहां भी आफस्पा का दायरा घटाया जा सकेगा।
( ये लेखक के अपने विचार हैं। )
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