शिंजो की मृत्यु संपूर्ण विश्व के लिए क्षति

अवधेश कुमार
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या से विश्व स्तब्ध है। भारतीय समय के अनुसार सुबह 8 बजे के आसपास जब वह नारा शहर में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे तभी हमलावर ने नजदीक आकर पीछे से गोली मार दी। नारा पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है और प्रसिद्ध ओसाका शहर से सड़क मार्ग से 1 घंटे की दूरी पर स्थित है। हमलावर ने 2 गोलियां मारी थी। इसमें एक गोली पीछे से सीने तक आ गई और उसी समय लग गया था कि उनका बचना मुश्किल है। बताने की आवश्यकता नहीं कि जापान जैसे विकसित देश में चिकित्सा की प्रणाली उन्नत है और पूरी कोशिश उनको बचाने की की गई। हालांकि जापान में कोई यह कल्पना नहीं कर सकता कि ऐसी घटना भी हो सकती है। जो दृश्य हमने देखा व जितनी खबरें हैं उनके अनुसार एक छोटी सी जगह पर सड़क पर लगे रैलिंगों के बीच में रविवार को होने वाले उच्च सदन के चुनाव के लिए भाषण दे रहे थे और करीब एक सौ लोग उनके आसपास थे। उनकी सुरक्षा में केवल चार गार्ड थे। जाहिर है, सुरक्षा गार्ड भी निश्चिंत रहे होंगे क्योंकि इस तरह की घटना जापान में तो हुई ही नहीं तो ज्यादा सतर्क और चौकन्ना होने की आवश्यकता है, कोई महसूस भी नहीं करता। हमलावर ने इसी का लाभ उठाया और जापान के इस समय के सर्वाधिक लोकप्रिय तथा पूरे इतिहास के सफलतम प्रधानमंत्रियों में से एक को मौत की नींद सुला दिया।
जापान के वर्तमान प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने इसे बर्बर बताते हुए कहा है कि सहन नहीं किया जाएगा। दुनिया में जिन नेताओं के जीवन पर गंभीर खतरे की आशंका थी उनमें शिंजो आबे शामिल नहीं थे। गोली मारने वाला 41 साल का यामागामी तेत्सुया पूर्व नौसैनिक है। वह मैरिटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स का सदस्य था। हमलावर के हाथ की बंदूक कैमरे की तरह लग रहा थी क्योंकि उसने उस काले कपड़े में लपेट रखा था। इस कारण लोगों ने उसे पत्रकार समझा और उसने नृशंसता से हत्या कर दी । जापान में हथियार खरीदने या रखने के इतने कड़े नियम हैं कि सामान्य आदमी उसे नहीं ले सकता। हमलावर ने घर में बनाए हुए हथियार का उपयोग किया। साफ है कि उसने काफी पहले से इसकी तैयारी की होगी। कहा जाता है कि वह उनकी सुरक्षा संबंधी नीतियों के विरुद्ध था, लेकिन कोई नीतियों से इतना विरोधी हो जाए और गोली मार दे यह सामान्यतः गले के नीचे नहीं उतरता, लेकिन अभी तक की सूचना इतनी है तो तत्काल यही मानकर चलना होगा।
वास्तव में शिंजो आबे की मृत्यु केवल जापान ही नहीं संपूर्ण विश्व के लिए क्षति है और भारत के लिए तो यह बहुत बड़ी क्षति है। भारत ने शिंजो आबे के निधन पर एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया। अपना सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान कर भारत ने शिंजो आबे के दोनों देशों के द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में योगदान को स्वीकार किया था। शिंजो आबे ने अगर जापान में सबसे लंबे समय यानी 9 साल तक प्रधानमंत्री पर रहने का रिकॉर्ड बनाया तो साफ है कि वे कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। 67 साल के शिंजो आबे ने अपनी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को विखंडन से उबारते हुए जापान की सबसे शक्तिशाली और प्रमुख पार्टी के रूप में स्थापित किया।
शिंजो आबे जापान के सफलतम प्रधानमंत्रियों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने जापान को राजनीतिक अस्थिरता से उबारकर स्थिरता प्रदान की, अर्थव्यवस्था को सुधारा और इन सब के साथ वैश्विक स्तर पर एक सक्रिय राष्ट्र की भूमिका निभाते हुए अंतरराष्ट्रीय राजनीति को नई दिशा देने की पहल की। चीन की आक्रामकता का उन्होंने न सिर्फ मुखर विरोध किया बल्कि उसकी विस्तारवादी नीति का सामना करने के लिए अपनी रक्षा नीति में बदलाव किया और उसके अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामान्य एवं रक्षा संबंध विकसित किया। जापान के संविधान की धारा 19 उसे अन्य देशों की तरह सैनिक बनाने और दूसरे देशों के साथ युद्धाभ्यास करने पर निषेध लगाता था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान प्रतिबंधित था और इसलिए उसे अपनी सेना बनाने की इजाजत नहीं मिली। बाद में सेल्फ डिफेंस फोर्स जरूर गठित हुआ, लेकिन वह अत्यंत ही छोटे स्तर पर तथा उसकी भूमिका केवल आंतरिक सुरक्षा तक ही सीमित हो सकती थी। उन्होंने इस धारा में संशोधन किया और जापान की सेना दूसरे देशों के साथ युद्धाभ्यास कर सकती है। इसी के साथ जापान के भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि के युद्धाभ्यास आरंभ हुए। मालाबार युद्धाभ्यास उन्हीं में से एक है। आबे ने आर्थिक सुधार से लेकर निवेश आदि से संबंधित अपने देश के वर्ण क्रम में काफी बदलाव किया। वर्तमान सरकार उसी नीति को आगे बढ़ा रही है। हालांकि उनकी सुरक्षा नीति को लेकर जापान में मतभेद थे और इस पर बहस हो रही थी, लेकिन अगर देश में उनकी लोकप्रियता सर्वाधिक थी तो इसका अर्थ यही है कि उनकी नीतियों से बहुसंख्यक जापानी सहमत हैं। वास्तव में उन्होंने लोगों के बीच, सभाओं में, संसद में, मीडिया में बार-बार जापान के समक्ष उत्पन्न खतरे, वैश्विक स्थिति तथा भविष्य के जापान को रक्षा दृष्टि से सशक्त बनाने की अपनी अवधारणा को लगातार इस तरह प्रस्तुत किया कि लोगों ने उसे सही माना। जापान अपने में सिमटे हुए देश के रूप में ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से विकसित हुआ था और यही मानसिकता वहां हावी थी। उनके कार्यकाल में जापान अंतरराष्ट्रीय संबंधों की दृष्टि से व्यापक रूप से बदल चुका है। जापान ने एक दिशा पकड़ ली है।
क्वाड पूरी तरह शिंजो आबे के मस्तिष्क की ही उपज है। 2007 में वे उसे मूर्त रूप नहीं दे सके, लेकिन आज क्वाड अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक महत्वपूर्ण गठबंधन बना है तो इसके पीछे उनकी ही भूमिका है। चीन आबे को लेकर कितना चौकन्ना रहता यह बताने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह निर्णय कर लिया था कि पूरा एशिया प्रशांत क्षेत्र में उसको वृहत्तर भूमिका निभानी है और इसके लिए उसे अपने रक्षा क्षेत्र का विस्तार करना होगा। उन्होंने इसी कारण दूरगामी दृष्टि से भारत की सक्रिय भागीदारी को महसूस किया तथा उसे धरातल पर लाने की शुरुआत कर दी। यह उन्हीं की अवधारणा थी कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर दोनों को मिलाकर सामरिक नीति बनाई जानी चाहिए। 2006 में जब भारत आए थे तो उन्होंने संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया था जिसमें हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को एक साथ मिलाकर सामरिक व्यापारिक नीति की विस्तृत अवधारणा थी। आज अगर हिंद प्रशांत की सम्मिलित नीतियां हमारे सामने है तो इसके पीछे शिंजो आबे की ही प्रबल भूमिका थी। वास्तव में हिंद प्रशांत की पूरी अवधारणा उनकी है जिसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया,भारत, ब्रिटेन सहित अनेक देशों ने स्वीकार किया। चीन को उन्होंने हमेशा एशिया ही नहीं संपूर्ण विश्व के खतरे के रूप में देखा और उनकी सोच से ज्यादातर देश धीरे-धीरे सहमत हुए। आबे के रूप में भारत ने अपना एक गहरा मित्र खो दिया है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS