पेगासस पर बयानबाजी बंद हों, रिपोर्ट का करें इंतजार

Haribhoomi Editorial : पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी का गठन कर दिया है। कमेटी में अध्यक्ष जस्टिस आरवी रवींद्रन के साथ पूर्व आईएएस अधिकारी आलोक जोशी और डॉक्टर संदीप ओबेरॉय पूरे मामले की जांच करके रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेंगे। अब इस मामले में आरोप प्रत्यारोप बंद हो जाने चाहिए। पक्ष विपक्ष दोनों को ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए कमेटी की जांच रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए, लेकिन दु:खद है कि एक तरफ जहां सर्वोच्च अदालत कमेटी गठन का आदेश दे रही थी, वहीं दूसरी तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी पेगासस मामले पर सरकार को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहे थे। यह सही है कि संविधान हर आदमी को निजता का अधिकार देता है, साथ में संविधान यह भी कहता है कि जब तक सिद्ध न हो किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते।
बीते जुलाई में खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय ग्रुप ने ये दावा किया कि दुनियाभर में इजराइली कंपनी एनएसओ के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से 10 देशों में 50 हजार लोगों की जासूसी हुई। इसमें भारत के भी 500 से ज्यादा नाम थे, जिनके फोन की निगरानी की गई, लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है। किसी एक रिपोर्ट पर, जिसकी सत्यत्ता का पता लगाना अभी शेष है, उसे लेकर सरकार पर निशाना साधना कहां तक उचित है। वो भी तब, जब सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि आरोप निराधार हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने साफ शब्दों में कहा कि भारत एक मजबूत लोकतंत्र है और अपने नागरिकों के निजता के अधिकार के लिए पूरी तरह समर्पित है। अब इस मामले में जांच कमेटी भी बन गई है, तो कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार किया जाना चाहिए। कमेटी देखेगी कि क्या भारत के लोगों के फोन या किसी दूसरी डिवाइस में पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल हुआ है। अगर हां, तो वो लोग कौन हैं जो इस स्पाइवेयर के हमले का शिकार हुए हैं।
2019 में पेगासस स्पाइवेयर से व्हाट्सऐप अकाउंट हैक करने की जानकारी सामने आने के बाद सरकार की ओर से क्या कदम उठाए गए। क्या केंद्र या किसी राज्य सरकार या फिर किसी सेंट्रल या स्टेट एजेंसी ने देश के लोगों की जासूसी के लिए पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया। अगर किसी एजेंसी ने लोगों की जासूसी में इसका इस्तेमाल किया है तो किस कानून, नियम, गाइडलाइन, प्रोटोकॉल या कानूनी प्रक्रिया के तहत ऐसा किया गया। अगर किसी अन्य व्यक्ति या संस्था ने इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है तो क्या वो इसके लिए अधिकृत है। असल में पेगासस एक स्पाइवेयर है। इसके जरिए किसी फोन को हैक किया जा सकता है। हैक करने के बाद उस फोन का कैमरा, माइक, मैसेजेस और कॉल्स समेत तमाम जानकारी हैकर के पास चली जाती है। पेगासस इतना फेमस इसलिए है क्योंकि इंस्टॉल होने के बाद पेगासस फोन में किसी तरह के फुटप्रिंट नहीं छोड़ता। यानी आपका फोन हैक होगा तो भी आपको पता नहीं चलेगा। ये कम बैंडविड्थ पर भी काम कर सकता है। साथ ही फोन की बैटरी, मेमोरी और डेटा का भी कम इस्तेमाल करता है, जिससे कि फोन हैक होने शक न हो। एंड्रॉयड के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित माने जाने वाले आईफोन के आईओएस को भी हैक कर सकता है। फोन लॉक होने पर भी पेगासस अपना काम करता रहता है।
इस मामले में सरकार निशाने पर इसलिए आई क्योंकि पेगासस ने इस खुलासे के बाद कहा कि वो किसी निजी कंपनी को यह सॉफ्टवेयर नहीं बेचती है, बल्कि इसे केवल सरकार और सरकारी एजेंसियों को ही इस्तेमाल के लिए देती है। इसका मतलब है कि अगर भारत में इसका इस्तेमाल हुआ है, तो कहीं न कहीं सरकार या सरकारी एजेंसियां इसमें शामिल हैं, लेकिन अभी तो यह भी पुष्ट नहीं है कि देश में पेगासस का इस्तेमाल हुआ है या नहीं। ऐसे में सरकार को कोसना कहां तक सही नहीं है। उचित यही होगा कि वे सभी लोग जो प्रभावित बताए जा रहे हैं, रिपोर्ट का इंतजार करें। वैसे भी हमारी राजनीतिक मर्यादा रही है कि अगर कोई मामला सर्वोच्च अदालत में होता है तो उस पर टिप्पणी नहीं की जाती। सभी पक्ष रिपोर्ट का इंतजार करें और बयानबाजी की बजाय अदालत में अपना पक्ष रखें।
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