सुशील राजेश का लेख : अंतिम जन का प्रोग्रेसिव बजट

सुशील राजेश का लेख : अंतिम जन का प्रोग्रेसिव बजट
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वित्त मंत्री ने अपने 5वें बजट में सबसे बड़ी, उत्पादक, समावेशी, प्रगतिशील और मेहनतकश, नौकरीपेशा वर्ग से जुड़ी यह घोषणा की है कि अब 7 लाख रुपये तक कोई आयकर नहीं देना होगा। इस दायरे को एकदम 2 लाख रुपये बढ़ाया गया है। आम करदाता को 33,800 रुपए का सीधा फायदा होगा। इसी के मद्देनजर माना जा रहा है कि यह 45 करोड़ लोगों के मध्यवर्ग का बजट है। भारत पर करीब 152 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। जीडीपी का करीब 20 फीसदी हर साल ब्याज के भुगतान में खर्च किया जाता है। बजट में प्रति व्यक्ति आय 1.97 लाख रुपये बताई गई है।

बीती 1 फरवरी का दिन बेहद महत्वपूर्ण रहा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार का 10वां और मौजूदा कार्यकाल का अंतिम पूर्ण बजट संसद में पेश किया। अब 2024 में आम चुनाव के जनादेश के बाद ही अगला संपूर्ण बजट पेश किया जा सकता है। सारांश रूप में इसे अंतिम पंक्ति में खड़े आम आदमी, महिला, युवा, नौकरीपेशा, दलित, पिछड़े, आदिवासी से लेकर किसान, कृषि, सेना और सैनिक, सूक्ष्म-लघु उद्योगों का बजट कहा जा सकता है। यह रेलवे, सड़क परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास से लेकर स्टार्टअप तक का बजट है। प्रधानमंत्री मोदी बजट को लेकर इतने सरोकारी हैं कि उन्होंने पार्टी कार्यकारिणी और कैबिनेट के स्तर पर दो बार गंभीरता से निर्देश दिए कि बजट को घर-घर प्रचारित किया जाए। बांटने वाले और भटकाने वाले मुद्दों को छोड़िए, अब नीतिगत कार्यों और बजट को लोगों तक पहुंचाइए कि सरकार सभी के लिए क्या कर रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भाजपा-एनडीए सांसदों को बजट की बारीकियां समझाई। ये कवायदें ही 2024 के आम चुनाव की तैयारियां हैं, लिहाजा बजट को प्रथमद्रष्ट्या ‘चुनावी’ कहा जा सकता है।

विकसित भारत का लक्ष्य

फिलहाल भारत का जीडीपी 286 लाख करोड़ रुपये का है। बजट 45.03 लाख करोड़ रुपये का पेश किया गया है। विभिन्न करों, उपकरों, अधिभारों, उत्पाद शुल्क आदि से हमारी कुल आय 27.2 लाख करोड़ रुपये की है। जाहिर है कि यह 17 लाख करोड़ रुपये घाटे का बजट है। भारत पर करीब 152 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। जीडीपी का करीब 20 फीसदी हर साल ब्याज के भुगतान में खर्च किया जाता है। बजट में प्रति व्यक्ति आय 1.97 लाख रुपये बताई गई है, लेकिन ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य हासिल करना है, तो यह आय 4.45 लाख होनी चाहिए। भारत 2027 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन सकता है और 2031-32 तक हम 7.5 ट्रिलियन डाॅलर तक पहुंच सकते हैं। तब जापान और जर्मनी सरीखे देश भी हमसे पीछे होंगे। मोदी सरकार और सांसद इन आंकड़ों के आधार पर प्रचार करेंगे। चित्रित किया जाएगा कि भारत जल्द ही 8-9 फीसदी विकास दर को छू लेगा। बजट को समझने से पहले यह जानना अनिवार्य है कि महंगाई दर 6.8 फीसदी और बेरोज़गारी दर 7.14 फीसदी हैं। यानी तय हदबंदियों से अधिक है। ‘नेशनल करियर सर्विस पोर्टल’ से स्पष्ट है कि जनवरी, 2023 तक 2.75 करोड़ से अधिक बेरोज़गारों को नौकरी चाहिए। यह आंकड़ा 3.5 करोड़ भी बताया जाता है। बहरहाल महंगाई, बेरोज़गारी, कम उत्पादन, कम निर्यात, कृषि और गरीबी आदि गंभीर चुनौतियां हैं, जिन्हें बजट में संबोधित किया गया है। लेकिन इनसे कैसे उबरेंगे, उसका रास्ता नहीं दिखाया गया।

वित्त मंत्री ने अपने 5वें बजट में सबसे बड़ी, उत्पादक, समावेशी, प्रगतिशील और मेहनतकश, नौकरीपेशा वर्ग से जुड़ी यह घोषणा की है कि अब 7 लाख रुपये तक कोई आयकर नहीं देना होगा। इस दायरे को एकदम 2 लाख रुपये बढ़ाया गया है। आम करदाता को 33,800 रुपए का सीधा फायदा होगा। इसी के मद्देनजर माना जा रहा है कि यह 45 करोड़ लोगों के मध्यवर्ग का बजट है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसे एक और ताकतवर वर्ग माना है, लेकिन तथ्य यह भी है कि देश में 8 करोड़ से कुछ ज्यादा लोग ही आयकर रिटर्न भरते हैं, लेकिन औसतन 1.5 से 2 करोड़ भारतीय ही आयकर का भुगतान करते हैं। लिहाजा इसका व्यापक असर नहीं होगा, क्योंकि 98 फीसदी नागरिक पहले भी आयकर नहीं देते थे और अब तो कर का दायरा ही बढ़कर 7 लाख रुपये कर दिया गया है। इस व्यवस्था का देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ सकता है, क्योंकि मध्यवर्ग की परिधि में बड़ी आबादी आती है, बेशक वह करदाता नहीं है, लेकिन वह उपभोक्ता जरूर है, लिहाजा आम मांग और खपत बढ़ेगी। क्रयशक्ति में विस्तार होगा। जीएसटी संग्रह भी बढ़ेगा और अंततः अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

कृषि, किसान पर फोकस

दरअसल बजट का फोकस किसान, कृषि, गरीब, सूक्ष्म-लघु उद्योग, युवा शक्ति, स्टार्ट अप, महिलाओं आदि पर ज्यादा रहा है। किसानों के लिए 20 लाख करोड़ रुपए की ऋण योजना तैयार की गई है, तो प्राकृतिक खेती के लिए 1 करोड़ किसानों की आर्थिक मदद और प्रोत्साहन, सूक्ष्म-लघु उद्योगों के लिए 2 लाख करोड़ के अतिरिक्त व्यय का प्रावधान किया गया है। इन उद्योगों को 9000 करोड़ के विशेष पैकेज के साथ करों में भी छूट दी जाएगी। सरकार इन उद्योगों की 95 फीसदी पूंजी लौटाएगी, जिसे कोरोना-काल में इन्होंने गंवा दिया था। किसानों की सम्मान राशि का सिलसिला जारी रहेगा। कुछ भ्रम फैलाए जा रहे हैं कि बजट में एमएसपी के कानूनी दर्जे की घोषणा नहीं की गई। दरअसल एमएसपी बजट का मुद्दा नहीं है। बजट में कृषि क्षेत्र के लिए स्टार्टअप को बढ़ावा देने का प्रावधान किया गया है। स्टार्टअप के लिए करों में विशेष छूट की भी घोषणा की गई है। किसानों और कृषि के लिए हर वह प्रावधान किया गया है, जो पहले से ही चलन में है।

बुनियादी ढांचे पर नजर

दरअसल मोदी सरकार ने किसी भी बजट में सभी वर्गों को इतना खुश और संतुष्ट नहीं किया, जितना इस बार किया है, लिहाजा इसे चुनावी दृष्टि करार दे सकते हैं। देश के 10 लाख करोड़ रुपये के बुनियादी ढांचे, शिक्षा, 5.94 लाख करोड़ रक्षा के लिए, हरित पर्यावरण, स्वास्थ्य, डिजिटल प्रक्रिया, प्रौद्योगिकी, गरीबों के लिए 79,000 करोड़ रुपये के घर, रेलवे पर 2.4 लाख करोड़ रुपये का व्यय आदि के कई प्रस्ताव रखे गए हैं। रेलवे और हवाई अड्डों पर 100 योजनाएं निजी क्षेत्र की मदद से शुरू की जाएंगी। सड़क परिवहन का बजट भी 2.70 लाख करोड़ रुपये रखा गया है।

राजमार्ग बनाने का लक्ष्य

वित्त मंत्री ने 25,000 किलोमीटर राजमार्ग और सड़कें बनाने का लक्ष्य तय किया है। सरकार का दावा है कि 2014 के बाद 7 लाख किमी सड़क और राजमार्ग के निर्माण कराए गए हैं। गौरतलब यह है कि महिलाओं पर मोदी सरकार और भाजपा की खास नज़र है। 2019 के आम चुनाव और 2022 के उप्र चुनाव में करीब 50 फीसदी गृहिणियों ने भाजपा को वोट दिए थे। इस वर्ग को विस्तार देने के मद्देनजर बजट में करीब 81 लाख महिला स्व सहायता समूहों के सहकारी ग्रुप बनाकर आर्थिक मदद दी जाएगी।

महिला सम्मान बचत

‘महिला सम्मान बचत पत्र’ की दो साला योजना शुरू की गई है, जिसके तहत 2 लाख की बचत पर 7.5 फीसदी ब्याज दिया जाएगा। सरकार औसतन हर रोज़ जो 11,000 मकान बनवा रही है, वे भी महिला के नाम पर ही पंजीकृत किए जाते रहे हैं। प्रधानमंत्री गरीब अन्न योजना के तहत 81.5 करोड़ गरीबों को अभी 2024 तक निःशुल्क अनाज मिलता रहेगा। यह बुनियादी तौर पर महिलाओं के मद्देनजर कार्यक्रम जारी रखा गया है। 2023-24 में इस योजना पर 2 लाख करोड़ रुपए और खर्च होंगे। सरकार इस तरह 3.5 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी। निश्चित तौर पर यह कल्याण का निर्णय तो हैं, लेकिन मोदी सरकार अपना वोट बैंक भी पुख्ता कर रही है। पूंजीगत व्यय भी 13.7 लाख करोड़ रुपए तय किया गया है। हमारी अर्थव्यवस्था में चालू खाता घाटे, मुद्रास्फीति, राजकोषीय और व्यापार घाटे आदि की आशंकाएं अब भी बरकरार हैं। यदि ‘विकसित भारत’ का सपना साकार करना है, तो देश की 40 फीसदी आबादी के हाथों में काम होना चाहिए। बजट में 47 लाख युवाओं को भत्ता देने की घोषणा की गई है। ये युवा कौन हैं? बहरहाल युवा-शक्ति को हुनरमंद बनाने के लिए कौशल विकास 4.0 योजना का प्रावधान रखा गया है। उसके तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर का कौशल सिखाया जाएगा।

ये सवाल भी

बजट में सभी के लिए कुछ न कुछ जरूर है, लेकिन कुछ सवाल भी हैं कि मनरेगा का बजट 73,000 करोड़ से घटाकर 60,000 करोड़ रुपए क्यों किया गया? ग्रामीण विकास से लेकर इसरो तक के बजट पर कटौती क्यों की गई? खाद्य सब्सिडी का बजट 31 फीसदी कम क्यों किया गया? एम्स के बजट में 266 करोड़ रुपए की कमी की गई है, तो साफ है कि सरकार का जल-स्वास्थ्य के प्रति नज़रिया क्या है? बहरहाल बजट में विसंगतियां भी सामने आती रहेंगी, लेकिन मोदी सरकार की जो ‘चुनावी-दृष्टि’ रही है, क्या वह पूरी तरह कामयाब रहेगी? भविष्य बताएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।) लेख पर अपनी प्रतिक्रिया [email protected] पर दे सकते हैं।

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