टैक्स : नई कर व्यवस्था से बिगड़ेगी बचत

टैक्स : नई कर व्यवस्था से बिगड़ेगी बचत
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सरकार का दावा है कि 80 प्रतिशत करदाता नए विकल्प के साथ चले जाएंगे। यह दावा शायद सही भी है क्योंकि नए विकल्प के साथ जाना ही अधिकांश करदाताओं के लिए फायदेमंद होगा। लेकिन यह प्रस्ताव बचत संस्कृति, अर्थव्यवस्था में समग्र बचत और अर्थव्यवस्था में जीडीपी ग्रोथ पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020-21 के बजट में नई वैकल्पिक वैयक्तिक आयकर व्यवस्था का प्रस्ताव किया है, जिसमें नए विकल्प में आयकर की दरों को घटाया गया है, लेकिन इस विकल्प के साथ शर्त यह है कि करदाताओं को इससे पहले मिलने वाली कटौतियों और छूट का त्याग करना होगा। वैयक्तिक आयकर की प्रस्तावित दरें 2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक की आय के बीच 5 प्रतिशत, 5 लाख 7.5 लाख रुपये की बीच की आय पर 10 प्रतिशत, 7.5 लाख से 10 लाख के बीच की आय पर 15 प्रतिशत, 10 लाख से 12.5 लाख के बीच की आय पर 20 प्रतिशत, 12.5 लाख से 15 लाख रुपये के बीच की आय पर 25 प्रतिशत और 15 लाख रुपये से अधिक सभी आय पर 30 प्रतिशत की दर से आयकर लगेगा।

गौरतलब है इससे पहले केवल एक ही विकल्प उपलब्ध था, जिसके अनुसार विभिन्न छूटों के साथ 2.5 लाख से 5 लाख रुपये के बीच की आय पर आयकर 5 प्रतिशत था, जबकि 5 लाख से 10 लाख रुपये के बीच की आय पर यह आयकर 20 प्रतिशत और 10 लाख रुपये और उससे अधिक की आय पर 30 प्रतिशत की दर से आयकर का प्रावधान था। नई वैकल्पिक व्यवस्था में आयकर की दरों को इस प्रकार से रखा गया है कि वेतनभोगी आयकर दाता जो आमतौर पर सालाना 1.5 लाख रुपये की बचत कर रहे हैं और 50 हजार रुपये की मानक कटौती का लाभ उठा रहे हैं और किसी अन्य रियायत अथवा छूट का लाभ नहीं ले रहे, वे पूर्व के मुकाबले कम कर का भुगतान करेंगे और उन्हें कोई बचत भी नहीं करनी पड़ेगी। उदाहरण के लिए 20 लाख रुपये की आय वाले वेतनभोगी आयकर दाताओं को नए व्यवस्था के तहत केवल 3,37,500 रुपये का आयकर देना होगा, जबकि इससे पूर्व वे निर्दिष्ट स्कीमों में निवेश के रूप में बचत की छूट का लाभ उठाने के बाद भी 3,45,000 रुपये का भुगतान करते थे।

सरकार का दावा है कि 80 प्रतिशत करदाता नए विकल्प के साथ चले जाएंगे, और यह दावा शायद सही भी है क्योंकि नए विकल्प के साथ जाना ही अधिकांश करदाताओं के लिए फायदेमंद होगा। इस प्रकार से नई या वैकल्पिक कर व्यवस्था को आयकर दाताओं के लिए एक राहत के रूप में चित्रित किया जा सकता है। लेकिन हमें समझना होगा कि नए प्रस्तावों में जहां आयकर दाताओं को आयकर से राहत दी जा रही है, लेकिन यह प्रस्ताव बचत संस्कृति, अर्थव्यवस्था में समग्र बचत और अर्थव्यवस्था में जीडीपी ग्रोथ पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है।

भारतीय लोगों के मूलस्वभाव में है बचत करना

भारतीयों में बचत की प्रवृत्ति काफी प्रबल है। आमतौर पर लोग अपने भविष्य को सुरक्षित करने हेतु अचल संपत्ति और सोने की खरीद के साथ-साथ अपने भविष्य की जरूरतों जैसे, संतानों के विवाह और उनके भविष्य की आवश्यकताओं के लिए बचत करते हैं। पिछले कई दशकों से सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की रियायतें देकर विशिष्ट प्रकार की बचतों को प्रोत्साहित किया जाता रहा है, जैसे, जीवन बीमा प्रीमियम, भविष्य निधि एवं सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) इत्यादि। इन बचतों के अलावा पिछले कुछ सालों से सरकार राष्ट्रीय पेंशन योजना में 50 हजार रुपये तक के सालाना के अंशदान पर भी आयकर में छूट दे रही है। इन उपायों से देश में बचत तो बढ़ती ही है, इनसे सरकार अपने राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण हेतु उधार तो लेती ही है, इन संसाधनों से हमारे इन्फ्रास्ट्रक्चर और पूंजी निवेश के निर्माण में भी काफी मदद मिली है। सरकार की यह कार्यवाही देश में बचत को हतोत्साहित कर सकती है। उल्लेखनीय है कि देश में पूंजी निर्माण की दर समय के साथ-साथ बढ़ती रही है। इस पूंजी निर्माण को काफी हद तक घरेलू बचत द्वारा ही वित्त पोषित किया गया।

लगता है कि वित्तमंत्री कर व्यवस्था को सरल बनाना चाहती हैं और साथ ही मंदी का ध्यान रखते हुए मांग बढ़ाने के लिए आयकर को कम करने के अलावा बचत को भी घटाना चाहती हैं, लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि हाल ही का धीमापन एक अल्पकालिक स्थिति है, जिसे अन्य तरीकों से निपटना चाहिए। बचत को हतोत्साहित करने से अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। समझ सकते हैं कि नई कर प्रणाली न केवल हमारी बचत संस्कृति पर हमला करती है, बल्कि सरकार के राजस्व और उधारी पर भी प्रतिकूल असर डालती है। इससे राजकोषीय आवश्यकताओं को पूरा करने में कठिनाई हो सकती है और इससे अप्रत्यक्ष रूप से देश में विदेशी पूंजी का प्रभुत्व भी बढ़ सकता है। यह सब हमारी विकास की आकांक्षाओं के विपरीत होगा।

(कर विशेषज्ञ डॉ. अिश्वनी महाजन की कलम से)

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