रहीस सिंह का लेख : इसलिए बढ़ रहा यूएस का पाक प्रेम

रहीस सिंह
आप इस प्रकार की बातें कहकर किसी को मूर्ख नहीं बना सकते। हर कोई जानता है कि एफ-16 का कहां और किसके खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यह बात अमेरिकी धरती पर खड़े होकर कही। दरअसल बीती 25 तारीख को भारतीय अमेरिकी समुदाय की ओर से वाशिंगटन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कुछ लोगों ने उनसे पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के लिए अमेरिका के रखरखाव पैकेज के संबंध में सवाल पूछा था। यह उसी का जवाब था। यद्यपि इससे जो बाइडेन प्रशासन नैतिक आधार पर कठघरे में खड़ा दिख रहा है, लेकिन एकपक्षीय दृष्टिकोण है। अमेरिका या तो निर्मम तानाशाह है अथवा विशुद्ध व्यापारी, इसलिए नैतिकता जैसी कोई बात उसके लिए कोई मायने नहीं रखती विशेषकर अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों में। यही कारण है कि भारत द्वारा आपत्ति दर्ज काराए जाने पर उसकी तरफ से जवाब आया कि यह मदद पाकिस्तान की काउंटर-टेररिज्म क्षमता में वृद्धि के लिए दी जा रही है।
अब सवाल यह है कि क्या वास्तव में पाकिस्तान 450 मिलियन डॉलर की मदद से एफ-16 लड़ाकू विमानों को अपग्रेड कर अपनी काउंटर-टेरेरिज्म क्षमता में वृद्धि करेगा या फिर भारत के साथ छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) को प्रभावी बनाने में? एक बात और, वर्ष 2018 में ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 2 अरब डॉलर की सुरक्षा सहायता यह कहते हुए स्थगित कर दी थी कि पाकिस्तान अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी समूहों पर कारगर कार्रवाई करने में पूरी तरह से विफल रहा है। तो क्या अब बात गलत साबित हो चुकी है? क्या पाकिस्तान का आतंकवाद कनेक्शन अब नहीं रहा? यदि हां तो फिर जवाहिरी का पता पाक को कैसे मालूम था? यदि हां तो आज भी पाक में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से लेकर दर्जनों आतंकवादी संगठन सीना फुलाए क्यों घूम रहे हैं? आखिर बाइडेन प्रशासन पाक पर इतना मेहरबान क्यों हो रहा है?
अमेरिकी प्रशासन की तरफ से दिया जा रहा तर्क पूरी तरह से आधारहीन है, यह पूरी दुनिया जानती है और अमेरिका के लोग भी। ऐसा लगता है कि बाइडेन तो 9/11 से लेकर अब तक अफगानिस्तान-पाकिस्तान समीकरण को भी याद नहीं रख पा रहे हैं। या फिर वे ऐसा करना नहीं चाहते। फिर तो अमेरिका को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को समाप्त घोषित कर देना चाहिए, क्योंकि 450 मिलियन डॉलर की मदद पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को नई ऊर्जा ही नहीं नई टैक्टिस भी प्रदान कर सकता है। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि अमेरिका ने ऐसा फैसला लेते समय भारतीय हितों की चिंता क्यों नहीं की जबकि भारत अमेरिका का 'मेजर डिफेंस पार्टनर' है। कुछ विश्लेषक यह कह सकते हैं कि अमेरिका पाकिस्तान को अल जवाहिरी को मरवाने के बदले में पुरस्कार दे रहा है, लेकिन अमेरिकी प्रशासन क्या इससे यह साबित नहीं कर रहा है कि अमेरिका ने अब आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की दिशा मोड़ दी है। ऐसा लगता है कि बाइडेन ने भारत को देखने वाला चश्मा बदला नहीं है। भारत आज एक कांटीनेंटल और मैरीटाइम पॉवर है। जो बाइडेन शायद यह भी भूल गए हैं कि दोनों देशों का रक्षा सहयोग एक ठोस सामरिक आधार पर विकसित हुआ है। दरअसल पोकरण 2 के बाद भारत-अमेरिका सम्बंधों की खाई चौड़ी होने के बाद बिल क्लिंटन की यात्रा के साथ दोनों के बीच संबंधों का सामान्यीकरण शुरू हुआ। इसी दौर में अमेरिका ने भारत के सामने 4 फाउंडेशनल समझौतों की पेशकश की जो अटल बिहारी वाजपेयी रेजीम से शुरू हुए और नरेन्द्र मोदी रेजमी में '2 प्लस 2 वार्ता' के बाद ('बेसिक एक्सचेंज एंड कोआपरेशन एग्रीमेंट फॉर जियो-स्पैशियल कोआपरेशन; बेका) तक पहुंचे। यह अटल रेजीम के भारत-अमेरिका के स्वाभाविक सहयोगी से मोदी-ट्रंप रेजमी में प्रमुख रणनीतिक साझीदार तक की यात्रा थी जिसे 21वीं सदी की दुनिया में नई विश्वव्यवस्था के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभानी थी।
ध्यान रहे कि भारत-अमेरिका संबंधों में फाउंडेशनल एग्रीमेंट्स बहुआयामी और रणनीतिक सहकार विकसित करने वाले रहे। इनमें पहला एग्रीमेंट था-'जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फर्मेशन एग्रीमेंट जिस पर भारत ने 2002 में हस्ताक्षर किए थे। दूसरा था- लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेण्डम ऑफ एग्रीमेंट, जिसमें वर्ष 2016 में हस्ताक्षर हुए। तीसरा-कॉमकासा यानी कम्युनिकेशंस कांपेटिबिलिटी ऐंड सिक्युरिटी एग्रीमेंट और चौथा बेका है, जिन पर क्रमशः 2018 और 2020 में हस्ताक्षर हुए। पहला समझौता सैन्य सूचनाओं से जुड़ा है। यह दोनों तरफ से एकत्रित खुफिया जानकारी को सेनाओं को साझा करने की अनुमति देता है। दूसरा डिफेंस लॉजिस्ट्क्सि के एक्सचेंज की अनुमति देता है। इस समझौते के बाद अमेरिका ने भारत को अपना 'मेजर डिफेंस पार्टनर' घोषित कर दिया और कहा था कि अब 99 प्रतिशत अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकियों तक भारत की पहुंच होगी।
कामकासा (कॉमकासा यानि कम्युनिकेशंस कांपेटिबिलिटी ऐंड सिक्युरिटी एग्रीमेंट) के तहत भारत को अति सुरक्षित कोड युक्त संचार प्रणाली हासिल होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह प्रौद्योगिकी कम से कम उस दौर में सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है जब चीन ने अपनी रक्षा-रणनीति की गोटियां हिन्द महासागर में इस तरह से बिछा रखी हों। अंतिम फाउंडेशनल एग्रीमेंट बेका के प्रमुख रूप से दो आयाम थे। पहला- भारत और अमेरिका भविष्य में महत्वपूर्ण और संवेदनशील खुफिया जानकारी साझा करेंगे और दूसरा, भारत अमेरिका से सबसे उन्नत हथियार और उपकरण खरीद सकेगा। कूटनीति के इस उदविकास क्रम में रक्षा पर विशेष फोकस की कुछ वजहंे रहीं जिनमें प्रमुख थी-बदल रही विश्व व्यवस्था। इन्हें रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने, सीरिया में चल रहे संघर्ष और प्रशांत महासागर में चीनी आक्रामकता अथवा इंडो-प्रशांत में भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया के बीच बन रहे रणनीतिक चतुर्भुज (क्वैड) में देखा जा सकता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध को भी इसी श्रृंखला में एक कड़ी माना जा सकता है। ऐसी स्थिति में आवश्यक हो जाता है कि दो देशों के बीच स्थापित संबंधों को मुख्य रूप से रक्षा और सामरिक रणनीति की तैयारियों की ओर मोड़ दिया जाए। भारत और अमेरिका ने यही किया भी। निःसंदेह इससे भारत काे लाभ मिला। अमेरिका भारत को एसटीए-1 की श्रेणी प्रदान कर चुका है जो पहली बार किसी गैर नाटो देश के रूप में भारत को दी गई है। कुल मिलाकर जो बाइडेन प्रशासन का पाकिस्तान प्रेम कुछ और ही संकेत कर रहा है। वह भूल रहा है कि उसके इस पाकिस्तान प्रेम से 9/11 के बाद शुरू हुए 'वॉर इंड्यूरिंग फ्रीडम' की हवा निकल जाएगी। यह शायद यह भी भूल रहा है कि आज की बहुध्रुवीय दुनिया अमेरिकी वर्चस्ववाद को समाप्त करने में सफल रही है। आगे उसके लिए हर कदम पर कांटे होंगे और सबसे पहला कांटा पाकिस्तान नाम का चुभेगा।
( ये लेखक के अपने विचार हैं। )
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