वादा निभाने की होगी चुनौती

वादा निभाने की होगी चुनौती
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2024 के चुनाव परिणाम के बाद तस्वीर धीरे-धीरे ज्यादा साफ होगी। अगर भाजपा लोकसभा चुनाव में बहुमत प्राप्त कर लेती है तो संभव है धीरे-धीरे योगी को केंद्र में भूमिका दिया जाए। प्रधानमंत्री ने 75 साल की उम्र सीमा निर्धारित की है। यह अमल में रहा तो धीरे-धीरे केंद्र में बदलाव होना चाहिए। उम्र के अनुसार योगी की राजनीतिक आयु लंबी है। उन्होंने अगर बड़ी गलती कर दी तभी उनके उत्थान पर ब्रेक लगेगा। उन्होंने गलती नहीं की, पिछली सरकार में हुई गलतियों से सीख लेकर सुधार किया और कार्यकर्ताओं तथा लोगों से सीधे जुड़ाव का ढांचा विकसित कर सरकार के एजेंडे पर काम किया तो आने वाले समय में केंद्रीय नेतृत्व में योगी आदित्यनाथ लंबे समय तक बने रहेंगे।

अवधेश कुमार

आज योगी 2.0 शुरू हो रहा है। दूसरे कार्यकाल के लिए योगी आदित्यनाथ के साथ चालीस से पचास मंत्री भी शपथ ले सकते हैं। भाजपा ने चुनाव से पहले जारी संकल्प पत्र में जो जनकल्याण के वादे किए थे, उन्हें पूरा करने की तस्वीर मंत्रिमंडल में दिखाई दे सकती है। साथ ही जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर मंत्रिमंडल बनाया जा सकता है। दूसरी पारी में योगी के सामने उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की महती चुनौती है। भारतीय राजनीति, संघ परिवार एवं भाजपा की सामान्य जानकारी रखने वाले भी स्वीकार करेंगे कि दूसरा कार्यकाल शुरू करने तक योगी आदित्यनाथ राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित हो गए हैं। स्वयं को राजनीति का महापंडित मानने वालों की बड़ी संख्या है जो पिछले दो वर्षों से अभियान चला रहे थे कि आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह कभी भी मुख्यमंत्री पद से हटा सकते हैं। उप्र चुनाव अभियान के दौरान भी ऐसी टिप्पणियां आतीं रहीं कि परिणाम आने के बाद वे मुख्यमंत्री नहीं भी रह सकते हैं। एक ओर नरेंद्र मोदी सभाओं में योगी बहुत ही उपयोगी का नारा दे रहे थे, बता रहे थे कि उनके कार्यकाल में कैसे माफियाओं के विरुद्ध कार्रवाइयां हुई हैं और दूसरी ओर इस तरह की खबरें चलाई जा रही थी। आश्चर्य कि अभी भी ऐसे लोग हैं जिनके मन में यह भाव बैठा हुआ है कि मोदी और शाह से योगी का रिश्ता ठीक नहीं है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के राजनीतिक उत्थान की याद दिलाते हुए कहा जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व उनको हटाना चाहता था लेकिन कद इतना बढ़ गया था कि हटा नहीं सका। ये लोग स्थापित करना चाहते हैं कि आदित्यनाथ का कद बड़ा होने से भाजपा में नेतृत्व के बीच द्वंद्व बढ़ जाएगा। इस पर कुछ भी कहना समय जाया करना होगा।

इसमें दो राय नहीं कि उप्र में अनेक विधायकों के विरुद्ध आम जनता के साथ भाजपा के अंदर भी व्याप्त असंतोष के बावजूद लोगों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया तो उसमें नरेंद्र मोदी के साथ योगी के व्यक्तित्व की भी भूमिका है। अलग-अलग सामाजिक समीकरणों में केशव प्रसाद मौर्या से लेकर दूसरे लोगों का भी असर हुआ, किंतु राज्य स्तर पर आप कहीं भी जाते तो यह स्वर सुनाई पड़ता कि हम मोदी और योगी के नाम पर वोट दे रहे हैं। सुनने में यह सामान्य लगता हो लेकिन यह स्थिति असाधारण है। कार्यकर्ताओं में पुलिस व प्रशासन के व्यवहारों को लेकर नाराजगी, विधायकों के विरुद्ध गुस्सा आदि होते हुए भी बहुमत की चाहत यह हो कि योगी ही दोबारा मुख्यमंत्री बनें तो इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता। लोगों का ऐसा समर्थन यूं ही पैदा नहीं हो जाता। व्यक्ति की सोच और व्यवहार आदि सबको मिलाकर किसी नेता की छवि स्थापित होती है। एक राज्य का मुख्यमंत्री प्रायः अपनी भौगोलिक सीमा के अंदर लोकप्रियता प्राप्त कर सकता है, लेकिन योगी के प्रति राष्ट्रव्यापी आकर्षण साफ दिखाई देता है। उप्र चुनाव में अलग-अलग राज्यों से ऐसे लोग, जिनका सीधा भाजपा या संघ से लेना-देना नहीं, यह जानकर कि सारी विरोधी शक्तियां मोदी-योगी को हराने में लगी हैं, चुनाव में काम करने आ गए। चुनाव प्रबंधन की भाजपा मशीनरी उनको न पूछ रही थी, न महत्व दे रही थी और इसके विरोध में गुस्सा पैदा भी होता था लेकिन वे काम से नहीं हटे। क्यों?

इसी क्यों में योगी आदित्यनाथ की वर्तमान स्थिति, भाजपा एवं संघ के नेतृत्व के साथ उनके रिश्ते, उसमें उनका स्थान तथा भावी राजनीति में उनकी भूमिका का उत्तर निहित है। पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व विचारधारा के प्रति जिस ढंग की प्रखरता और मुखरता देश और विदेश में बड़े समूह के अंदर देखा गया है, योगी उसकी अभिव्यक्ति के बड़े प्रतीक बन गए हैं। मोदी प्रधानमंत्री होने के कारण जो कुछ खुलकर नहीं बोल सकते उसे योगी मुखर होकर बोलते हैं। एक संन्यासी इस समय हर दृष्टि से भाजपा और संघ परिवार के नेतृत्व के लिए अनुकूल है, इसीलिए सभी चुनावों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद संपूर्ण भारत में बड़े नेताओं में सबसे ज्यादा चुनावी सभा योगी की होती हैं। पिछली कार्यकारिणी बैठक में उन्हीं के द्वारा राजनीतिक प्रस्ताव पेश करा कर नरेंद्र मोदी ने बता दिया कि पार्टी में उनकी हैसियत क्या रहने वाली है। स्पष्ट है कि अनेक कमियों के बावजूद योगी आदित्यनाथ संघ एवं भाजपा नेतृत्व की सोच को विचार एवं व्यवहार में परिणत करने वाले नेताओं में सबसे आगे हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमंता विश्व शर्मा दूसरे नेता हैं, जिनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है और वो भी नेतृत्व के प्रिय पात्र हैं। भाजपा नेतृत्व अपने एजेंडे पर खुलकर आगे बढ़ने की छूट नहीं देती तो योगी आदित्यनाथ की हैसियत इतनी बड़ी नहीं होती। उनका कद इसीलिए बढ़ा क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व एजेंडा पर काम करने लगा था और इसके अनुरूप वह राज्यों का नेतृत्व तलाश रहा था। विधायक न होते हुए भी योगी को मुख्यमंत्री बनाया गया।

कोई यह मान ले कि योगी स्वायत्त होकर हिंदुत्व और राष्ट्रीयता संबंधी मुद्दों पर मुखर होकर बोलते हैं तो यह नासमझी होगी। यह भाजपा और संघ का एजेंडा है। यही एजेंडा अन्य मुख्यमंत्रियों के समक्ष भी है। उन सबसे तुलना करें तो निष्कर्ष निकालना आसान हो जाएगा कि योगी क्यों इस समय मोदी, शाह के बाद सबसे मजबूत नेता बनकर उभर रहे हैं। ऐसा कौन नेता है जो यह पूछने पर कि विरोधी पार्टियों के अलावा दुनिया भर के विरोधी आपको चुनाव में हराना चाहते हैं, आप कैसे जीतेंगे तो जवाब दे कि चुनाव 80 बनाम 20 प्रतिशत का होगा और 20 प्रतिशत की हम परवाह नहीं करते? मुख्यमंत्री होते हुए भी मुस्लिम आक्रांता शब्द का प्रयोग और इतिहास की गलतियों को ठीक करने का संकल्प व्यक्त करने वाला भाजपा के राज्य नेतृत्व में कोई दूसरा नेता नहीं है। इसी कारण इस समय योगी के प्रति हिंदुओं में व्यापक आकर्षण है। चुनाव में जीत से यह आकर्षण और सुदृढ़ और विस्तारित हुआ है। इससे साफ है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर दोबारा आसीन होने के साथ योगी भाजपा और संघ परिवार के राष्ट्रीय नेताओं की कतार में स्थापित हो चुके हैं। इस समय इसकी बिल्कुल निश्चित रूप रेखा बनाना कठिन है कि योगी की मुख्यमंत्री के परे राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा में क्या भूमिका होगी? योगी धीरे- धीरे भाजपा नेतृत्व की कतार में निर्णय लेते दिखाई देंगे। 2024 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से योगी की लोकप्रियता का व्यापक महत्व है। लोकसभा चुनाव में लोकप्रियता का लाभ लेने के लिए उनकी सभाएं कराई जाएंगी तो वह अपने अनुसार कुछ लोगों को उम्मीदवार भी बनाना चाहेंगे। 2024 के चुनाव परिणाम के बाद तस्वीर ज्यादा साफ होगी। अगर भाजपा लोकसभा चुनाव में बहुमत प्राप्त कर लेती है तो संभव है धीरे-धीरे योगी को केंद्र में भूमिका दिया जाए। प्रधानमंत्री ने 75 साल की उम्र सीमा निर्धारित की है। यह अमल में रहा तो धीरे-धीरे केंद्र में बदलाव होना चाहिए। योगी की राजनीतिक आयु लंबी है। उन्होंने अगर बड़ी गलती कर दी तभी उनके उत्थान पर ब्रेक लगेगा। उन्होंने एजेंडे पर काम किया तो आने वाले समय में केंद्रीय नेतृत्व के प्रमुख चेहरे के रूप में योगी लंबे समय तक बने रहेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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