डॉ. चन्द्र त्रिखा का लेख : 30 जनवरी के वो अंतिम लम्हे

डॉ. चन्द्र त्रिखा का लेख :  30 जनवरी के वो अंतिम लम्हे
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पटेल को विदा कर बापू प्रार्थना सभा की ओर चल दिए। उस दिन भी वहां लगभग ढाई सौ लोग पहुंचे हुए थे। देरी के अहसास से ग्रस्त बापू तेज़ कदमों से मंच की ओर बढ़ने लगे। वह प्रार्थना मंच की सीढ़ियां चढ़ने लगे। तभी एक आवाज़ सुनाई दी, ‘बापू जी’।

डॉ. चन्द्र त्रिखा

उनतीस जनवरी 1948 बिरला हाउस: उस दिन गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल ज़्यादा ही बेचैन थे। किसी अनजाने अनिष्ट की आशंका सरीखा बोझ था मन पर। बापू में उनकी गहन श्रद्धा थी। कार्यशैली में थोड़े मतभेदों के बावजूद वह जवाहर लाल नेहरू को बेहद सम्मान देते थे। कभी-कभी व्यापक राष्ट्रहित में पटेल को कुछ संवेदनशील फैसले, नेहरू की पूर्वानुमति के बिना भी लेने पड़ते थे, मगर ऐसा नहीं था कि पटेल अपने अधिकार क्षेत्र से जानबूझकर बाहर चले जाते थे, लेकिन पटेल उस दिन बेचैन थे। कश्मीर-संबंधी नीति को लेकर नेहरू कुछ मान्यताओं पर अड़ गए थे, जबकि पटेल ज़मीनी हकीकतों के मद्देनज़र तात्कालिक कड़ी कार्यवाही के पक्षधर थे। एक बार तो पटेल ने मन बना ही लिया था कि वह केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे देंगे, लेकिन वह कोई भी निर्णय बापू की सहमति के बिना कभी नहीं लेते थे। उस दिन पटेल को अनजानी आशंकाओं ने घेर रखा था। पटेल बापू की दिनचर्या जानते थे। उन्हें मालूम था कि प्रार्थना सभा में जाने से पहले का समय अनुकूल रहेगा। पटेल ने अपने त्यागपत्र का प्रारूप बापू की चौकी पर रख दिया। बापू ने पूरा नहीं पढ़ा, बोले, 'मैं जानता हूं इसमें क्या लिखा होगा, मगर इसे भूल जाओ। हम तीनों एक बार फिर उसी तरह बैठकर इस मामले को निपटा लेंगे, जैसे आज़ादी की लड़ाई के दिनों में मिलकर बैठा करते थे।' पटेल ने अनमने भाव से पत्र उठाया और उसे मोड़कर कुर्ते की जेब में ठोस लिया। प्रार्थना सभा में जाने से पहले बापू अपना शाम का खाना ले लेते थे। दोनों बातचीत जारी रखे हुए थे तभी आभा बापू का खाना ले आई। पटेल से बातें करते-करते ही बापू ने खाना समाप्त किया। बीच-बीच में बोल देते, 'अरे भाई। बिना मेहनत मिली रोटी, चोरी की रोटी होती है।' पटेल को कोई अनजानी शंका तो उस समय भी घेरे हुई थी, मगर वह अनुमान भी नहीं लगा सकते थे कि चंद घंटों बाद उनका 'रोल मॉडल' सदा के लिए खामोश हो जाएगा।

30 जनवरी को बापू सुबह 3.30 बजे ही उठ गए थे। वह थोड़ा अशांत थे। सांप्रदायिक दंगे, शरणार्थियों की पीड़ा, कांग्रेस के बीच बढ़ता हुआ भीतरी असंतोष और तिस पर पाकिस्तान के प्रति उनका थोड़ा सहानुभूतिपूर्ण रुख, उनके ज़ेहन में खलबली मचाए हुए था, जिस समय बापू यह सब कर रहे थे, उसी समय नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे के नाम एक पत्र लिख रहा था, जिसमें अन्य बातों के अलावा वह अपनी अंतिम इच्छा भी लिख रहा था। बापू ने उस दिन भी सुबह की प्रार्थना बरामदे में की। नियमानुसार उनका वज़न भी लिया गया। उस दिन बापू का वजन 109.5 पौंड था। स्नान के बाद बापू ने नाश्ता लिया। वही बकरी का 12 औंस दूध, एक कप उबली हुई सब्जियां, थोड़े पके लाल टमाटर और बाद में संतरे व गाजर के जूस का एक-एक गिलास। उसके बाद प्राय: वह एक काढ़ा लिया करते, जिसमें अदरक, खट्टा नींबू व ऐलोवीरा मिला होता था। फिर थोड़ा आराम करने के बाद बापू उठे और बिना सहारा लिए बाथरूम की ओर जाने लगे। मनु ने अचम्भा जताया तो बापू गुनगुनाए 'एकला चालो, एकला चालो, एकला चालो रे'। उधर, बिरला हाऊस से कुछ किलोमीटर की दूरी पर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के 'रिटायरिंग रूम' नम्बर 6 में तीन व्यक्ति चाय की चुस्कियों के साथ अपनी बातचीत में व्यस्त थे। तीनों में नत्थू राम गोडसे, आप्टे और करकरे शामिल थे। गोडसे ने उस दिन का अपना संकल्प बिता दिया था। मगर गत 20 जनवरी को बिरला हाउस के बाहर हुए विस्फोट के बाद हथियार छिपाकर प्रार्थना सभा में प्रवेश आसान नहीं था। अनेक तरकीबें सोची गई और आखिर यही तय हुआ कि एक ढीली ढाली कमीज़ पतलून पहनकर वह वहां प्रवेश करेगा। कमीज़ पतलून के बाहर रहेगी ताकि कमर से बंधी पिस्तौल छिपी रहे। उसके पीछे-पीछे आप्टे और करकरे का प्रवेश तय हुआ। नाथू राम ने पिस्तौल में सात गोलियां भरीं और तीनों वहां से बाहर निकले। वे तीनों तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार पहले बिरला मंदिर गए। गोडसे बाहर ही छत्रपति शिवाजी की मूर्ति के पास एक पल के लिए रुक गया। वहां से तीनों एक तांगे में सवार होकर बिरला हाऊस पहुंच गए। इधर, 5.20 हो गए तो मनु और आभा बेचैन होने लगीं। बापू समय की पाबंदी के बारे में भी सदा सचेत रहते। मनु ने अपनी कलाई में बंधी घड़ी की ओर इशारा किया, बापू ने देख लिया और वह चटाई से तत्काल उठ खड़े हुए। बोले, 'अब मैं चलता हूं, मुझे जाने दो, अब भगवान से मिलने का वक्त हो चला है।' पटेल को विदा कर बापू प्रार्थना सभा की ओर चल दिए। उस दिन भी वहां लगभग ढाई सौ लोग पहुंचे हुए थे। देरी के अहसास से ग्रस्त बापू तेज़ कदमों से मंच की ओर बढ़ने लगे। वह प्रार्थना मंच की सीढ़ियां चढ़ने लगे। तभी एक आवाज़ सुनाई दी, 'बापू जी'। तभी गांधीजी उस ओर मुड़े, नाथूराम ने पिस्तौल जेब से निकालकर अपनी दोनों हथेलियों में छिपा लिया था। वह पहले कमर तक, हाथ जोड़े झुका, बोला, 'नमस्ते गांधी जी।' ऐसा लगा कि वह बापू के पांव छूना चाहता था। मनु ने उसे धीरे से दूर हटाने का प्रयास किया, 'भाई साहब। पीछे हटें, बापू को पहले ही दस मिनट की दूरी हो चुकी है।'

बस वही क्षण था जब इतिहास स्तब्ध हो गया। नाथू राम ने दाहिने हाथ में पिस्तौल ऊपर उठाया। तीन बार पिस्तौल का घोड़ा दबाया। ज़ोर की आवाज़ हुई। बापू के बदन की सफेद खादी पर रक्त के धब्बे फैलने लगे। तभी उस महामानव के मुख से निकला 'हे राम' और उनका निर्जीव शरीर मनु के बिल्कुल पास ही गिर गया। बापू के हाथ अब भी जुड़े थे। उस समय बापू की घड़ी में 5.27 बजे थे। आल इंडिया रेडियो ने ठीक 6बजे घोषणा की, 'आज शाम को 5 बजकर 20 मिनट पर नई दिल्ली में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई।' पूरा देश स्तब्ध था। नेहरू के मुंह से यही निकल पाया, 'रोशनी बुझ गई है।' माउंटबेटन तत्काल वहां पहुंचे। वैयक्तिक रूप से सर्वाधिक आहत थे सरदार पटेल। उन्हें लगा कि उनके गृहमंत्री होते यह सब घटा। पहली बार यह लौहपुरुष हताश हुआ।

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