अवधेश कुमार का लेख : संपूर्ण देश के लिए शोक की घड़ी

अवधेश कुमार
यह पूरे देश के लिए अत्यंत दुख की घड़ी है। हमने देश के प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को हेलीकॉप्टर दुर्घटना में खो दिया। उनके साथ एक ब्रिगेडियर सहित 12 अन्य जवान भी विशेष रहे होंगे तभी उनके साथ यात्रा में थे। इस क्षति को वही समझ सकते हैं, जो कल्पना करेंगे कि एक सैनिक को तैयार करने में कितना परिश्रम पड़ता है। अलग-अलग क्षेत्रों और भौगोलिक परिस्थितियों में संघर्ष, रणनीति, व्यूह रचना आदि का अनुभव प्राप्त करने के बाद हमारे लिए ऐसे हर जवान बेशकीमती हो जाते हैं। जनरल बिपिन रावत का पूरा कैरियर बहादुरी से भरा रहा। उनके सहित जान गंवाने वाले सारे सैनिक वीर, बहादुर, देशभक्त एवं परम साहसी थे। इसलिए भारत की रक्षा-सुरक्षा की चिंता करने वाले हर व्यक्ति की आंखों में आंसू हैं। तमिलनाडु के कुन्नूर के निकट हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर आते ही लोग इन सबकी जीवन रक्षा की प्रार्थना करने लगे। लेकिन तब तक दुर्भाग्य घटित हो चुका था ।
यह सामान्य क्षति नहीं है। जनरल बिपिन रावत को पाकिस्तान , चीन जैसी संवेदनशील सीमाओं के अलावा हर भौगोलिक क्षेत्र व परिस्थितियों में संघर्ष तथा चुनौतियों का व्यावहारिक अनुभव था। वे भारत के इर्द-गिर्द तथा विश्व की बदलती सामरिक परिस्थितियों का गहराई से अन्वेषण करते थे। जाहिर है, हमारी सैन्य और विदेश नीति निर्धारित करने में उनके सुझावों एवं विचारों का गहरा योगदान था। हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए वायु सेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दे दिया है और जांच आरंभ भी हो गई है। तो हम जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करेंगे। अगर मामला सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील हुआ तो शायद रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो।
भारतीय सेना का एमआई 17वी 5 सबसे सुरक्षित हेलीकॉप्टरों में से एक है। वीवीआईपी दौरे में इसका उपयोग किया जाता है। इस हेलीकॉप्टर में बैकअप इंजन और ईंधन, दोनों की सुविधा रहती है। यह डबल इंजन का हेलीकॉप्टर है। इसकी तुलना चिनूक हेलीकॉप्टर से की जाती है। यह आधुनिक तकनीक से लैस हेलीकॉप्टर है। सेना को इस हेलीकॉप्टर की तकनीक पर भरोसा रहा है। कई बार कुछ उपकरण ऐसे होते हैं, जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध रहती है, लेकिन एमआई 17वी 5 ऐसा नहीं था। सबसे अनुभवी पायलटों को इन हेलीकॉप्टर को उड़ाने का मौका दिया जाता है। क्रू के चयन का भी ध्यान रखा जाता है। दो पायलट इस हेलीकॉप्टर को उड़ाते हैं। एक इंजीनियर भी रहता है। प्रशिक्षित क्रू मेंबर होते हैं। इस चॉपर को उड़ाने के लिए पायलट को एक विशेष प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। हेलीकॉप्टर पर बैठने से पहले सुरक्षाकर्मी जनरल रावत के साथ रहते थे और हेलीकॉप्टर से उतरने के बाद (जहां वे पहुंचते हैं) वहां के सुरक्षाकर्मी साथ होते थे। इसमें सामान्य परिस्थिति में ऐसी दुर्घटना हो नहीं सकती है।
तो क्या परिस्थिति रही होगी इसका कुछ अंदाजा ब्लैक बॉक्स से लगेगा तथा जांच कमेटी इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकती हैं। केवल हेलीकॉप्टर के और उसके उड़ाने वालों एवं क्रू मेंबरों के ही विशिष्ट होने का विषय नहीं है। जनरल रावत भारतीय सेना के सबसे बड़े सुरक्षा अधिकारी थे। उनके लिए बहुत सख्त प्रोटोकॉल का पालन किया जाता था। वे कहीं भी जाते थे तो इसकी सूचना पहले रक्षा मंत्रालय को दी जाती थी। जब कोई भी वीवीआईपी जैसे प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री या सीडीएस हेलिकॉप्टर से यात्रा करते हैं तो वायुसेना सुरक्षा के मापदंडों का कड़ाई से पालन किया जाता है। सामान्य तौर पर भी चॉपर से आधिकारिक यात्रा पर जाते पर उनके साथ दो पायलट और स्टाफ ऑफिसर्स होते हैं। कई विशेष प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है। तो फिर? कारण खराब मौसम को माना जा रहा है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि खराब मौसम में हेलीकॉप्टर फंस गया हो। अगर कोई दूसरी बात नहीं है तो फिर विशेषज्ञों की यह बात माननी पड़ेगी कि घने जंगल, पहाड़ी इलाका और लो विजिबिलिटी की वजह से ही हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ।
वेलिंगटन का हेलिपैड जंगल और पहाड़ी इलाके के तुरंत बाद पड़ता है, इसलिए पायलट के लिए इसे दूर से देख पाना मुश्किल होता है। वेलिंगटन का हेलिपैड लैंडिंग के लिए आसान नहीं है। वहां पहाड़ और जंगल, दोनों हैं। इनकी वजह से पायलट को हेलिपैड दूर से दिखाई नहीं देता। काफी नजदीक आने पर ही हेलिपैड नजर आता है। ऐसे में जब खराब मौसम के दौरान पायलट ने लैंडिग की कोशिश की होगी तो बादलों की वजह से विजिबिलिटी कम हो गई होगी। उसे हेलिपैड सही तरह नजर नहीं आया होगा और हादसा हो गया। चूंकि इस हेलिकॉप्टर के पायलट ग्रुप कैप्टन रैंक के अधिकारी थे। ऐसे में मानवीय भूल की आशंका न के बराबर है। हो सकता है कि कोई बड़ा पक्षी इस हेलीकॉप्टर से टकरा गया हो। छोटा पक्षी यदि टकराता है, तो उससे हेलीकॉप्टर का संतुलन नहीं बिगड़ता। जो भी हो ऐसे कठिन समय में जब एक और चीन भारत को विदेश और रक्षा के स्तर पर हर दृष्टि से परेशान करने, तनाव में लाने की कोशिश कर रहा है तथा उसके उकसावे पर पाकिस्तान भी षड्यंत्रों में लगा है, जनरल रावत का जाना कई प्रकार की चिंताएं पैदा करता है। वैसे तो जनरल रावत के कैरियर में कई बड़ी उपलब्धियां हैं, लेकिन दो बड़े सर्जिकल स्ट्राइक तथा पाकिस्तान के विरुद्ध एक बड़ी कार्रवाई का पूरा श्रेय उन्हें जाता है।
जून, 2015 में मणिपुर में एक आतंकी हमले में असम राइफल्स के 18 सैनिक शहीद हो गए थे। इसके बाद 21 पैरा कमांडो सीमा पार म्यांमार में प्रवेश किया। वहां खाने जंगलों के बीच आतंकी संगठन एनएससीएन-के आतंकियों को ढेर किया था। तब 21 पैरा थर्ड कॉर्प्स के अधीन थी जिसके कमांडर बिपिन रावत ही थे। यह भीषण इतिहास का एक महत्वपूर्ण अभियान था जिसे इतिहास में जगह मिल गई। इसे भी तब सैनिक भाषा में सर्जिकल स्ट्राइक ही माना गया। पूरी दुनिया जानती है कि 29 सितंबर, 2016 को भारतीय सेना के जवानों ने अंधेरी रात में सीमा पार कर पाक अधिकृत में सर्जिकल स्ट्राइक कर कई आतंकी शिविरों को ध्वस्त करते हुए भारी संख्या में आतंकियों को मार गिरा कर वापस सुरक्षित लौट आने का साहसिक कार्य किया था। या विश्व के शाइन इतिहास का एक प्रमुख अध्याय है। इसने संपूर्ण भारत में रात की प्रखरता का ऐसा भाव प्रज्ज्वलित किया जो आतंकवादी घटनाओं के संदर्भ में निराशा और कुछ न कर पाने की मलाल से दबा हुआ था । इसके बाद उरी में सेना के कैंप और पुलवामा में सीआरपीएफ पर हुए हमले में कई जवान शहीद हो जाने के बाद भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की थी। उस समय भी पाकिस्तान के सैनिक भारी संख्या में मारे गए थे। जनरल रावत की भाषा सैनिकों में जोश और उत्साह भरती थी। उन्हें देश के लिए मर मिटने को संकल्पित करता था। बाहरी और देश के अंदर के दुश्मनों को लेकर उनकी दृष्टि बिल्कुल साफ थी तथा इन्हें खत्म करने को लेकर सेना के कर्तव्यों के प्रति वे पूरी तरह दृढ़ संकल्पित थे। ऐसे वीर सपूत को खोकर कौन देश दुखी नहीं होगा।
( ये लेखक के अपने विचार हैं। )
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS