संपादकीय लेख : प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का समय

संपादकीय लेख : प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का समय
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा है कि ‘भले ही रसायन और उर्वरकों ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो लेकिन अब खेती को रसायन की प्रयोगशाला से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ने का समय आ गया है और इस दिशा में कृषि से जुड़े प्राचीन ज्ञान को न सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी आवश्यकता है।’

Haribhoomi Editorial : हमारी खेती को सुरक्षित बनाने की जरूरत है। अधिक पैदावार के नाम पर शुरू हुए हरित क्रांति ने हमारी खेती को रसायनयुक्त बना दिया, जिससे हमारे अनाज ही दूषित होने लगे। आज जीवनशैली व खानपान संबंधित सैकड़ों बीमारियां केवल और केवल खेती में प्रयोग हो रहे जहरीले रसायन की वजह से है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा है कि 'भले ही रसायन और उर्वरकों ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो लेकिन अब खेती को रसायन की प्रयोगशाला से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ने का समय आ गया है और इस दिशा में कृषि से जुड़े प्राचीन ज्ञान को न सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी आवश्यकता है।' हालात यह है कि आज कोई भी खाद्यान्न नहीं है, जो जहरीले नहीं हैं।

अधिक पैदावार के लिए जीन परिवर्तित बीज से लेकर खेती में रासायनिक खाद व कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते अनाज, सब्जियां, फल आदि सब दूषित हो गए हैं, फूड इंडस्ट्री ने पैक्ड फूड में अत्यधिक प्रिजरवेटिव रसायन व स्वाद के लिए सोडियम साल्ट, सेलेनियम व बेंजीन ऑयल, ट्रांस फैट, सूअर चर्बी समेत न जाने कितने अखाद्य चीजें मिलाए जाते हैं। आज के समय में चाहे खेत से उगाए गए अनाज, सब्जियां या फल हों या प्रसंस्कृत खाद्य व पेय हो, सब स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। दूषित रासायन युक्त खानपान की वजह से बच्चे से लेकर युवा-वयस्क-प्रौढ़ तक वृद्धावस्था में होने वाली बीमारियों से ग्रसित हैं, हार्मोनल असंतुलन के शिकार हैं। आज इसी वजह से युवाओं नपुंसकता व बांझपन की समस्या बढ़ रही है। खेती में अत्यधिक रासायन के प्रयोग से उपजाऊ जमीन की उर्वरा शक्ति घटती गई है। हरित क्रांति से भारत के मोटे अनाज, दलहन व तिहलन की फसल छीन ली है और भारत अधिक पानी प्रयोग होने वाली फसलें-धान व गेहूं को उत्पादक बना दिया है। इन फसलों की वजह से भारत का भूजल स्तर लगातार घटता गया है। गेहूं पर शोध हो चुका है कि इसमें ग्लूटेन होने की वजह से इसका लंबे समय तक सेवन करने से शूगर, बीपी जैसे जीवनशैली रोग हो जाते हैं।

आज जरूरत खेती के समूचे पैटर्न को बदलने की है। अब यह मिथक भी टूट गया है कि बिना रासायन खेती से पैदावार कम होती है। हाल में कई शोध व प्रयोग हुए हैं, जिसमें प्रमाणित हुआ है बिना रसायन की खेती या जैविक खेती करने से भी उच्च पैदावार होती है। फर्टिलाइजर व पेस्टिसाइड व जेनेटिक बीज इंडस्ट्री की लॉबी अक्सर भारत को बड़ी जनसंख्या का डर दिखाकर रासायनिक खेती को मजबूर करती रही है, लेकिन केंद्र मौजूदा मोदी सरकार लगातार जीरो बजट खेती, जैविक खेती और भारत की परंपरागत खेती को अपनाने पर जोर दे रही है। देश में जैविक सब्जी, फल आदि के प्रति जागरूकता भी आई है। कुछ किसान जैविक खेती को अपना भी रहे हैं और स्वास्थ्य के प्रति सजग लोग जैविक उत्पाद का प्रयोग भी कर रहे हैं। जरूरत इसे बढ़ाने की है। प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन का आयोजित होना दर्शाता है कि देश में रसायनमुक्त खेती से निकलने की चाहत बढ़ी है। जैविक खोती से न केवल अनाज, सब्जियां व फल स्वास्थ्यवर्धक होंगे, बल्कि जमीन की उर्वरता भी बची रहेगी और लोग जीवनशैली संबंधित रोगों से बचे रहेंगे। रसायन के प्रयोग के चलते खेती की लागत भी बढ़ती है और अप्रत्यक्ष रूप से यह स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च भी बढ़ाता है, इसलिए आज जरूरत प्राकृतिक खेती को अपनाने की है। इस दिशा में नए सिरे से शोध करने होंगे और प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक सांचे में ढालना होगा। इसी माध्यम से लाभकारी खेती का सपना साकार हो सकता है।

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