विष्णु गुप्त का लेख : पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री की राह कठिन

विष्णुगुप्त
पाकिस्तान में इमरान सरकार का पतन हो गया और नई सरकार भी आ गयी। अब नया नेतृत्व पाकिस्तान का भाग्य विधाता बनेगा। पाकिस्तान के नये नेतृत्व की अमेरिकी नीति क्या होगी, चीन-रूस नीति क्या होगी, भारत की नीति क्या होगी, आतंकवादी नीति क्या होगी,कश्मीर नीति क्या होगी, बलूच नीति क्या होगी, अफगानिस्तान नीति क्या होगी, आर्थिक नीति क्या होगी? ये सभी प्रश्न अति महत्वपूर्ण हैं। पाकिस्तान के लोग खुश हैं और उन्हें हर्ष भी मनाना चाहिए कि इमरान खान की अलोकतांत्रिक नीति नहीं चली और सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान के संविधान की रक्षा की और पाकिस्तान को राजनीतिक तौर पर अराजकता की ओर जाने से बचा लिया। इसके साथ ही साथ मार्शल लॉ की संभावनाएं भी समाप्त हो गयी। अगर राजनीतिक अस्थिरता और टकराहट ज्यादा होता तो निश्चित तौर पर पाकिस्तान के अंदर एक बार फिर लोकतंत्र कुचला जाता और पाकिस्तान में लोकतंत्र की जगह मार्शल लॉ लागू हो जाता, यानी की सेना सत्ता संभाल लेती।
पाकिस्तान में सैनिक सत्ता का लंबा-चौड़ा इतिहास भी है, मुशर्रफ और जिया जैसे सैनिक शासकों ने लंबे समय तक शासन किये हैं और लोकतंत्र को कुचले थे। पाकिस्तान की जनता भी अब सैनिक शासन नहीं चाहती थी। पाकिस्तान का नया नेतृत्व ने सुझ-बूझ नहीं दिखाया तो निश्चित मानिये कि पाकिस्तान का भविष्य भी बदत्तर हो सकती है। पाकिस्तान के सामने समस्याएं अनेक हैं, समस्याएं गंभीर और खतरनाक भी हैं। पाकिस्तान कहीं श्रीलंका की तरह कंगाल न हो जाये, इसके खतरे हैं। पाकिस्तान के पास अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए न तो पैसे हैं और न ही आर्थिक संसाधन हैं, आतंकवादी नीति के कारण पाकिस्तान को अंतर्राष्टीय संस्थाएं कर्ज भी नहीं देना चाहती हैं।
इमरान खान ने अपनी सत्ता को बचाने का जिस प्रकार से खेल खेला और जिस प्रकार की कूटनीतिक चालें चली वह पाकिस्तान के हित के लिए ठीक नहीं थी। इमरान ने अपनी शक्ति का अंदाजा नहीं लगे सके, अपनी सामरिक कमजोरी को समझ नहीं सके, अपनी अर्थव्यवस्था की बूरी स्थिति की चाकचौबंद समझ विकसित नहीं कर सके, अपनी खतरनाक अफगानिस्तान और तालिबान नीति को चाकचौबंद नहीं बना सके, भारत और कश्मीर के प्रति दुनिया की बदली हुई सोच को समझ नहीं सके। कोई कमजोर के साथ खड़ा नहीं होता, कमजोर को कोई मजबूत सहायताएं नहीं मिलती हैं, शक्तिशाली लोग कमजोर के साथ खड़े होने में अपना नुकसान समझते हैं, अपना घाटा समझते हैं, अपनी तौहीन समझते हैं। दुनिया के हर देश को अपना हित सर्वोपरि होता है, अपने हित को किसी दूसरे देश के लिए कोई देश बलिदान नहीं करता है।
कश्मीर के प्रश्न को ही देख लीजिये। कश्मीर के प्रश्न पर दुनिया के देश अपने हित क्यों बलिदान करते, दुनिया के देशों के लिए भारत की बढ़ती हुई मजबूत अर्थव्यवस्था में अपना हित दिखा, दुनिया की कूटनीति में नरेन्द्र मोदी का चमत्कार दिखा। इसलिए दुनिया के देश कश्मीर पर भारत के साथ खड़े हुए। भारत ने अपनी कूटनीतिक शक्ति से पाकिस्तान की हिंसक और आतंकवादी नीति का संहार किया। घर में खाने के लिए दाने नहीं पर दुनिया के नेता बनने चले थे इमरान खान। उन्हें यह अहंकार हो गया था कि वे इस्लाम का एक मात्र नेता बनेंगे। इसलिए उन्होंने संयुक्त राष्ट संघ की परम्परा को तोड़ने का काम किया, संयुक्त राष्ट्र के मंच का दुरूपयोग किया, इस्लामिक देशों को खूब उकसाया। इधर इमरान खान ने अमेरिका को भी आंख दिखाने की कोशिश की। अपने खिलाफ साजिश करने का आरोप अमेरिका पर मढ़ दिया, जबकि साजिश वाला कोई देश प्रमाण देकर अपनी जगहंसाई कैसे कर सकता है? यही कारण है कि अमेरिका द्वारा इमरान के खिलाफ साजिश की बात पाकिस्तान में स्वीकार नहीं की गयी। पाकिस्तान की सेना और पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट भी इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया।
अंतर्राष्टीय स्तर पर इमरान ने चीन और रूस का समर्थन कर बैठे। उस रूस का समर्थन करने की गलती कर बैठे, जिस रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर नरसंहार पर नरसंहार किये हैं। दुनिया रूस को हमलावर मान रही है, दुनिया रूस को मानवाधिकार हनन का दोषी मान रही है, रूस को मानवता का अपराधी मान रही है फिर इमरान खान रूस के पक्ष में खड़ा हो गये। युद्ध के समय भी पुतिन से मिलने के लिए इमरान खान रूस गये। इस पर अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की नाराजगी भी जगहाहिर है। खासकर यूरोपीय यूनियन ने इमरान खान को पत्र जारी कर धमकायी भी थी। पाकिस्तान जिस तरह से चीन व रूस की तरफ ढला है उसके खतरे भी हजार है। चीन और रूस भी उपनिवेशिक मानसिकता के देश हैं, उन्हें भीख देने की आदत नहीं हैं। कर्ज देने की कीमत चीन और रूस खूब वसूलते हैं। इसका उदाहरण अभी अभी श्रीलंका हैं। इसके पहले कई अफ्रीकी देशों ने चीन के कर्ज के दुुष्परिणाम झेले हैं। श्रीलंका भी कभी भारत विरोध के कारण चीन के शरण में गया था। चीन से अंधाघुंध कर्ज लिया था। आज श्रीलंका का क्या हाल है, यह कौन नहीं जानता है? जैसे ही श्रीलंका कंगाल हुआ वैसे ही चीन ने श्रीलंका को आर्थिक मदद देने से इनकार कर दिया। ऐसी खतरनाक स्थिति में भारत ने श्रीलंका की मदद की है। श्रीलंका आज भारत की ओर देख रहा है।
चीन निर्मित आर्थिक गलियारे के कारण पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट में था। चीनी कर्जों का बोझ भी बढ़ता चला जा रहा है। आर्थिक गलियारे का कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं होगी। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो अमेरिकी सहायता से चलती थी। पूर्व यूएस राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आतंकवादी नीति के कारण पाकिस्तान की आर्थिक सहायताएं रोकी थी। मौलूदा यूएस राष्ट्रपति जो बाइडेन भी अब पाकिस्तान को मदद करना नहीं चाहते हैं। पाक की तालिबान से करीबी के चलते अमेरिकी कूटनीतिज्ञ पाकिस्तान से नाराज हैं। यूरोपीय यूनियन भी नाराज है। इस कारण पाकिस्तान को अंतर्राष्टीय संस्थाओं से कर्ज मिलने में परेशानी होगी। रूस और चीन कभी भी अपनी अर्थव्यवस्था की कीमत पर पाकिस्तान की आर्थिक सहायता करेंगे नहीं। फिर पाकिस्तान की डगर कठिन बनी हुई है।
पाकिस्तान के नये नेतृत्व को अब अमेरिका से ही नहीं बल्कि भारत से भी संबंध सुधारने की जरूरत होगी और इमरान खान की गलतियों को सुधारने की जरूरत होगी। वर्तमान आतंकवादी नीति भी त्यागनी होगी। आतंकवादी नीति के कारण ही पाकिस्तान को अतंर्राष्टीय संस्थाओं से आर्थिक सहायताएं मिलने में दिक्कतें आती है। पाकिस्तान का नया नेतृत्व अमेरिका और यूरोप से संबंध नहीं सुधार पाया तो फिर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दिवालिया भी हो सकती है। पाकिस्तान अभी भी आर्थिक रूप से कमजोर ही है और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विध्वंस होने की कगार पर खड़ी है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )
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