संपादकीय लेख : भारत के सुरक्षा मामलों में दखल ना दे संयुक्त राष्ट्र

संपादकीय लेख : भारत के सुरक्षा मामलों में दखल ना दे संयुक्त राष्ट्र
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संयुक्त राष्ट्र को कश्मीर पर कुछ भी कहने से पहले घाटी की वस्तु स्थिति का अच्छे से अवलोकन कर लेना चाहिए, उसके बाद ही कोई टिप्पणी करनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र 1948 से जम्मू-कश्मीर की स्थिति को जानता है कि किस तरह पाकिस्तान की फौज ने वहां अवैध घुसपैठ की और आज भी कश्मीर के कुछ हिस्से पर कब्जा जमाए हुए है। खुद संयुक्त राष्ट्र के कहने के बावजूद पाकिस्तान ने उसके निर्देश का पालन नहीं किया है।

Haribhoomi Editorial : संयुक्त राष्ट्र को कश्मीर पर कुछ भी कहने से पहले घाटी की वस्तु स्थिति का अच्छे से अवलोकन कर लेना चाहिए, उसके बाद ही कोई टिप्पणी करनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र 1948 से जम्मू-कश्मीर की स्थिति को जानता है कि किस तरह पाकिस्तान की फौज ने वहां अवैध घुसपैठ की और आज भी कश्मीर के कुछ हिस्से पर कब्जा जमाए हुए है। खुद संयुक्त राष्ट्र के कहने के बावजूद पाकिस्तान ने उसके निर्देश का पालन नहीं किया है। संयुक्त राष्ट्र यह भी जानता है कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद का सामना भारत चार दशकों से कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित कई ग्लोबल आतंकी व आतंकी गुट पाकिस्तान में हैं, जिनका वजूद ही भारत में आतंकी गतिविधियों पर है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत के कानून यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) कानून) के तहत 22 नवंबर को गिरफ्तार खुर्रम परवेज की मानवाधिकार के ग्राउंड पर रिहाई की मांग करना आधारहीन है।

कश्मीर में कई आतंकी गुट व आतंकी सक्रिय हैं जो देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। आतंकी या देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त अपराधियों को कानून के कटघरे में लाना भारत का हक है। भारत को अपनी सुरक्षा करना आता है और पता है कि अपराधियों के साथ कैसा कानूनी सलूक किया जाय। संयुक्त राष्ट्र ने बेशक अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता न दी हो पर उसके रहते हुए एक लोकतांत्रिक सरकार की बलि चढ़ गई और आतंकी गुट के रूप में कुख्यात तालिबान सत्ता पर काबिज हो गया, यूएन मूक दर्शक बना रहा। विश्व में आईएस, अलकायदा, हक्कानी नेटवर्क, तालिबान, अल शबाब, बोको हरम, लश्कर, जैश जैसे सैकड़ों आतंकी गुट हिंसा में लिप्त हैं और एक वैश्विक संस्था के रूप में यूएन कुछ भी नहीं कर रहा है। भारत ने हमेशा मानवाधिका की रक्षा की है, लेकिन देश के खिलाफ काम करने वालों को कानून के दायरे में लाकर सजा दिलवाना सरकार की कर्त्तव्य है। भारत की कड़ी चेतावनी को यूएन को गंभीरता से लेना चाहिए। दक्षिण चीन सागर समेत अनेक अंतरराष्ट्रीय संधियों की चीन अनदेखी करता है, तिब्बत, मकाऊ, शिनझियांग आदि पर चीन ने कैसे कब्जा किया, अभी वह ताइवान को किस कदर डरा रहा है, सब सब देखते हुए भी संयुक्त राष्ट्र का चुप रहना या कुछ नहीं कर पाना वैश्विक संस्था के रूप में उसकी साख को कमजोर करता है।

भारत के विदेश मंत्रालय ने यूएन को ठीक ही आईना दिखाया है कि 'भारत सीमा पार के आतंकवाद का जिस तरह से सामना कर रहा है और उससे भारतीयों का मानवाधिकार जिस तरह प्रभावित हो रहा है, उसका संयुक्त राष्ट्र को अंदाजा भी नहीं है।' 'राष्ट्रीय सुरक्षा के कानून जैसे यूएपीए को हमारी संसद ने भारत की संप्रभुता और अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया है। खुर्रम की गिरफ्तारी भारत के कानून के तहत हुई है। संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त मानवाधिकार कार्यालय को मानवाधिकार और आतंकवाद को लेकर अपनी समझ और विकसित करना चाहिए।' संयुक्त राष्ट्र की तरफ से बयान जारी करना कि 'खुर्रम परवेज की भारतीय आतंकवाद निरोधी कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तारी को लेकर हम बेहद चिंतित हैं', सरासर तथ्यों से परे है। यूएन को समझना होगा कि खुर्रम परवेज अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) कानून (यूएपीए) के तहत आरोपित है, खुर्रम पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश का हिस्सा होना) और धारा 121 भारत सरकार के खिलाफ युद्ध जैसी गंभीर धाराएं भी लगी हैं। संयुक्त राष्ट्र को भारत के अंदरूनी सुरक्षा के कानूनी मामलों में दखल नहीं देनी चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ काम करे।

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