अवधेश कुमार का लेख : उत्तर प्रदेश देगा देश को संदेश

अवधेश कुमार का लेख : उत्तर प्रदेश देगा देश को संदेश
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पार्टियां में यूपी में चुनाव जीतने के लिए अवश्य जोर लगा रही हैं लेकिन उन्हें भी इसका शायद अनुमान नहीं होगा कि यूपी के परिणामों का विश्वव्यापी संदेश क्या जाएगा। उत्तर प्रदेश की जमीनी हालत को निकट से देखने वाले अवश्य मानेंगे कि इस तरह का माहौल शायद ही किसी चुनाव में देखा गया होगा। मतदाताओं का बड़ा समूह निष्कर्ष नहीं निकाल पाया और पा रहा है कि उसे क्या चाहिए और क्या करना चाहिए। भाजपा नेतृत्व जानता है कि इस चुनाव में देश और विदेश में उसके विरोधी किस तरह सक्रिय हैं। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि मतदाताओं ने हिंदुत्व को नकार दिया है, ताकि इसके बाद सरकार पर आक्रामक होने का उनका आधार बड़ा हो सके, पर फैसला मतदाता के हाथ में है।

अवधेश कुमार

उत्तर प्रदेश चुनाव पर यहां रुचि रखने वाले विश्व की भी दृष्टि लगी हुई है। इस दृष्टि से चुनाव को समझने वालों की संख्या न के बराबर है। पार्टियां चुनाव जीतने के लिए अवश्य जोर लगा रही हैं लेकिन उन्हें भी इसका शायद अनुमान नहीं होगा कि इसके परिणामों का विश्वव्यापी संदेश क्या जाएगा। उत्तर प्रदेश की जमीनी हालत को निकट से देखने वाले अवश्य मानेंगे कि इस तरह का माहौल शायद ही किसी चुनाव में देखा गया होगा। मतदाताओं का बड़ा समूह निष्कर्ष नहीं निकाल पाया और पा रहा है कि उसे क्या चाहिए और क्या करना चाहिए। आपको इस टिप्पणी पर हैरत हो लेकिन प्रदेश की लंबी यात्रा में मैंने लगातार यही महसूस किया है। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम प्रदेश में कहीं भी जाइए मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग कहे कि योगी सरकार ठीक है, आएगी भी योगी सरकार ही तो आम निष्कर्ष यही होगा कि भाजपा आसानी से जीत जाएगी। किंतु योगी सरकार आने की कामना करते हुए भी बहुत सारे लोग कहते हैं कि मैं गैर भाजपा उम्मीदवार को वोट दे रहा हूं। इसके अलग-अलग कारण हैं। कहीं जातीय आधार,कहीं वर्तमान विधायक के विरुद्ध असंतोष तो कहीं इन सबसे परे या इनके साथ अन्य कारण। कुछ लोगों को यह कहते सुनकर भी हैरत होती है कि भले हम लोग वोट नहीं देंगे लेकिन आएगी तो यही सरकार। जब उनसे प्रश्न करिए कि जब आप वोट नहीं दोगे तो सरकार कैसे आएगी तो वे कहते हैं कि एक क्षेत्र से क्या होने वाला है? फिर कहिए कि ऐसा ही अलग-अलग क्षेत्रों में होने से सरकार चली जाएगी तो उनका जवाब होता है कि ऐसा नहीं होगा।

दो-चार क्षेत्र की बात हो तो अपवाद मान सकते हैं लेकिन अनेक जगह यही प्रवृत्ति और मानसिकता हो तो इसका कारण समझना आसान नहीं है। चुनाव की घोषणा होने तक ऐसा नहीं था। भाजपा ने चुनावी तैयारियां पहले आरंभ कर दी थी। सर्वे कराकर सांसदों, विधायकों ,नेताओं के साथ संवाद किया था। बूथ प्रबंधकों तक के साथ संवाद संपन्न किया था। जिन मुद्दों को भाजपा नेता उठा रहे थे विरोधी दलों के लिए उनका जवाब देना कठिन हो रहा था। सच यह है कि विरोधी दल भाजपा के विरुद्ध कोई बड़ा मुद्दा उठा नहीं पा रहे। टिकट बंटवारे के साथ स्थितियां बदलने लगी। अनेक जगहों में लोगों की प्रतिक्रिया एक ही है कि योगी सरकार तो ठीक है लेकिन हमारा विधायक बेकार है, कोई काम नहीं किया। कहीं लोग कहते हैं कि जीतने के बाद हमारा विधायक आया ही नहीं। यह बात समझ से परे है कि कोई विधायक जीतने के बाद अपने क्षेत्र में गया ही न हो। विधायकों के विरुद्ध ऐसा वातावरण क्यों बना है यह भी समझना मुश्किल है। लोगों के कोप भाजन बनने वालों में ऐसे लोग भी शामिल हैं जो छात्र जीवन से राजनीति में रहे और हमेशा समाज के बीच में रहने का उनका रिकॉर्ड है। उनके बारे में भी क्षेत्र में यही धारणा है कि जीतने के बाद कभी आए ही नहीं। कैबिनेट मिनिस्टर स्तर के कई नेताओं के विरुद्ध असंतोष ऐसा है जिसकी कल्पना हम आसानी से नहीं कर सकते।

उत्तर प्रदेश की जमीनी सच्चाई आज यही है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी और प्रदेश में आदित्यनाथ योगी सरकार के विरुद्ध आम माहौल नहीं है। लोग कहते हैं कि सरकार अच्छी है। हालांकि छोटे- छोटे मुद्दे सरकार के विरुद्ध उठते हैं लेकिन व्यापक स्तर पर सरकार के विरुद्ध जाने वाले बड़े मुद्दे और आक्रोश कहीं नहीं दिखते। लोग जगह-जगह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने कानून व्यवस्था बिल्कुल ठीक कर दिया है। अपराधी अब पहले की तरह तंग नहीं करते। कई जगह लोग यह भी आशंका प्रकट करते हैं कि अगर दूसरी सरकार यानी समाजवादी पार्टी आ गई तो गुंडागर्दी और अपराध बढ़ जाएगा। इसके साथ-साथ कोरोना काल में गरीबों तक राशन पहुंचाने से लेकर श्रमिकों के खाते आदि में पैसे आने का भी सकारात्मक वातावरण है। काशी के पुनर्निर्माण की प्रशंसा ज्यादातर करते हैं। कई जगह ऐसी भी प्रतिक्रिया मिलती है कि अगर केंद्र और प्रदेश में मोदी और योगी सरकार नहीं होती तो अयोध्या में मंदिर नहीं बनता। मेडिकल कॉलेज खोलने से लेकर एक्सप्रेसवे और अन्य हाईवे के निर्माण की भी बात लोग करते हैं। जीर्ण- शीर्ण पड़े धर्म स्थलों में सरकार की मदद आदि से निर्माण और देखरेख की व्यवस्था की भी स्थानीय स्तरों पर कहीं-कहीं प्रशंसा सुनने को मिलती है।

वोट के मामले में यही एकपक्षीय सामूहिक मनोविज्ञान शत- प्रतिशत नहीं है। जमीनी स्तर पर देखने से पता चलता है कि लोगों के बड़े समूह में सरकार को लेकर सकारात्मक सोच और सहानुभूति को अपने पक्ष में मतदान कराने की सामूहिक मानसिकता बदलने के लिए भाजपा को जितना कुछ करना चाहिए उसमें कमी है। इसके कुछ कारण दिखाई देते हैं। विधायकों के विरुद्ध असंतोष आम लोगों के साथ पार्टी के अंदर है। पार्टी के कार्यकर्ता-नेता औपचारिक तौर पर काम करते हैं लेकिन उत्साह से जिताने की मानसिकता कई जगह नहीं दिखाई दी है। विधायकों ने नारा दिया कि योगी सरकार वापस लाना है उसका थोड़ा बहुत असर है। दूसरे, 2017 में हिंदुत्व के प्रबल भाव में जातीय और अन्य कारक कमजोर पड़ गए थे। हिंदुत्व को भी उस रूप में स्थापित करने में कमी है। अखिलेश यादव ने सपा गठबंधन के अंदर काफी जगह जातीय समीकरणों का ध्यान रखते हुए टिकट बंटवारा किया। पूर्व सरकार में यादव समुदाय के एक बड़े समूह के विरुद्ध आक्रोश का ध्यान रखते हुए उन्होंने सजातीय को कम मात्रा में टिकट दिया।

अखिलेश ने इससे समाजवादी सरकार में गुंडागर्दी और अपराध की आशंका कम करने की रणनीति अपनाई। बसपा लग रही थी चुनाव नहीं लड़ रही और उसके मतदाताओं का बड़ा समूह सपा को हराने की मानसिकता में भाजपा के पक्ष में मतदान करेगा। मायावती ने इस तरह टिकट का बंटवारा किया कि कई जगह जातीय समीकरण भाजपा की चिंता बढ़ाने वाले हैं। यह जानते हुए भी कि बसपा सरकार नहीं आ रही अनेक जगह जातीय आधार पर वे मतदाता बसपा को वोट देने की बात करते मिले जो भाजपा के माने जाते थे। भाजपा नेतृत्व जानता है कि इस चुनाव में देश और विदेश में उसके विरोधी किस तरह सक्रिय हैं। वे हर हाल में यह संदेश देना चाहते हैं कि मतदाताओं ने हिंदुत्व की नीति को नकार दिया है, ताकि सरकार पर आक्रामक होने का उनका आधार बड़ा हो सके एवं इसके विरुद्ध अभियानों को प्रभावी बनाया जाए। बावजूद इसके मतदाताओं के बीच जिस मात्रा में यह भावना पैदा होनी चाहिए कि चुनाव करो या मरो का है उसमें भी कमी है। उत्तर प्रदेश का परिणाम देश-विदेश को बड़ा संदेश देगा तो 2024 के आम चुनाव की दिशा भी तय करेगा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके अपने विचार हैं।

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