डाॅ. विशेष गुप्ता का लेख : किशाेरों में हिंसक प्रवृति क्यों

देश की राजधानी दिल्ली में पढ़ने की उम्र में ही नाबालिग बच्चे अपराध की घृणित दुनिया में खून बहाने पर उतारू हैं। इसका ताजा उदाहरण राजधानी दिल्ली के वेलकम क्षेत्र की जनता मजदूर काॅलोनी की घटना है जहां अभी हाल ही में एक 16 वर्षीय किशोर ने 17 वर्षीय एक युवक की नृशंस हत्या कर दी। इस घटना में आरोपित नाबालिग ने उस युवक पर मास काटने के चाकू से 50 से अधिक वार करते हुए उसे मौत के घाट उतार दिया। सीसीटीवी फुटेज से साफ हुआ है कि आरोपित ने यह हत्या बहुत क्रूरता से की है। बाद में शव को उसने गली से बाहर घसीटा और उसके मृत शरीर के कान में चाकू डालकर नाचने लगा । इस घटना से स्पष्ट है कि आरोपित भले ही नशे में था, लेकिन उसे इस बात का पूर्ण ज्ञान था कि वह किशोर पर चाकू से वार उसकी हत्या करने के लिए ही कर रहा है। वह पहले भी इस प्रकार की वारदात को अंजाम दे चुका है।
जानकारी में आया है कि आरोपी किशोर ने मार्च 2022 में भी लूटपाट के दौरान एक युवक की हत्या की थी। इस हत्या के बाद उसे बाल सुधारगृह भेज दिया गया था। यह आरोपी अभी विगत माह ही बाल सुधारगृह से बाहर आया था। वहां से आने के बाद भी उसने दो झपटमारी और एक लूट की घटना के साथ ही पांच मामलों को अंजाम दिया। दिल्ली की उत्तर पूर्वी डीसीपी डाॅ. जाय टिर्की का कहना है कि यह हत्यारोपित किशोर इस हत्या से पहले भी दो बार बाल सुधारगृह में रहकर आ चुका है। मगर सवाल यह है कि वहां रहकर भी उसमें कोई सुधार नहीं आया,उल्टे सुधार गृह से बाहर आकर उसने और बड़े अपराधों को अंजाम देना शुरू कर दिया। दिल्ली पुलिस का यह भी कहना है कि वह इस आरोपी के विगत आपराधिक रिकार्ड को देखते हुए इस केस में जेजे बोर्ड में अर्जी लगाकर उसके खिलाफ बालिग की तरह सेशन कोर्ट में दुलर्भ से दुलर्भतम केस के अन्तर्गत मुकदमा दर्ज कराने के लिए कहेंगे। इस संदर्भ में किशोर न्याय अधिनियम-2015 एवं आदर्श नियम-2016 की धारा-15 में भी स्प्ष्ट प्रावधान है कि ऐसे बालक द्वारा किए गए जघन्य अपराध की दशा में जो 16 या उससे अधिक की आयु का है, ऐसे किशोर को किशोर न्याय बोर्ड उसकी मानसिक और शारीरिक क्षमता व अपराध के परिणामों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उस पर बालिग की तरह केस चलाने की अनुमति दे सकता है। हालांकि पुलिस ने पूर्व में भी जेजे बोर्ड से ऐसे मामलों में अपराध की सक्रियता को देखते हुए बालिग की तरह केस चलाने की अनुमति ली थी, मगर वह कारगर सिद्ध नहीं हुई। यह बात अलग है कि नाबालिगों द्वारा किए जा रहे ऐसे घृणित अपराध और नृशंस हत्याओं में यह जेजे एक्ट और बाल सुधार गृहों की सुधारात्मक योजना कारगर होती नजर नही आ रही है।
अवलोकन बताते हैं कि छोटे गांव व कस्बों के मुकाबले दिल्ली जैसे बड़े महानगर नाबालिग अपराधों के बड़े केन्द्र बन रहे हैं। आज स्थिति यह है कि दिल्ली जैसी जगहों पर रोजाना 10 से अधिक किशोर नाबालिग अपराध में पकड़े जा रहे हैं। साथ ही नाबालिग किशोरों के द्वारा किए जा रहे अपराधों को लेकर लगभग आठ-नौ एफआईआर प्रतिदिन दर्ज हो रही हैं। एनसीआरबी से जुड़े आंकड़े भी बताते हैं कि 19 महानगरीय शहरों की तुलना में दिल्ली में नाबालिगों द्वारा किए जा रहे अपराधों की संख्या सबसे अधिक है। संदर्भित आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि विगत दो-तीन वर्षों में दिल्ली में नाबालिगों द्वारा कि जा रहे अपराधों में तकरीबन नौ फीसदी की वृद्धि हुई है। अर्थात 2020 में इन अपराधों की संख्या जहां 2455 थी,वहीं वह 2021-22 में बढ़कर वह 2463 तक पहंुच गई। अभी हालिया घोषित आंकड़ों से पता चलता है कि अकेले 2023 में दिल्ली में नाबालिगों द्वारा एक दर्जन से भी अधिक ऐसी नृशंस हत्याएं की जिनसे दिल्ली दहल उठी।
ऐसे आरोपित किशोरों को सुधारगृह भेजा जाना किशोर न्याय कानून की मजबूरी है, मगर ऐसे अपराधी जो बार-बार अपराध करके सुधारगृह पहुंच रहे हैं, ऐसे अपराधियों के लिए जेजे बोर्ड को भी अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। आज प्रदेशों में इन संप्रेक्षणगृहों की हालत कहीं कहीं बहुत अमानवीय है। सही मायनों में ऐसे सुधार वाले बच्चों के लिए ये गृह किसी भी जेल से कम नहीं हैं। सच यह हैे कि कहीं इन गृहों में बिजली नहीं है तो कहीं टाॅयलेट व्यवस्था बहुत खराब है। इन सुधारगृहों की पहली शर्त यह है कि वहां का वातावरण मित्रवत होने के साथ-साथ वहां ऐसे किशोरों के लिए रोजगारपरक कुछ कोर्स चलने चाहिए, परन्तु देखने में आ रहा है कि इन गृहों के स्टाफ के जरिये तमाम आपत्तिजनक सामान तक अंदर पहुंच रहे हंै। इन सुधार गृहों का माहौल ठीक न होने के कारण वहां से बाल अपराधियों के भागने की घटनाएं अब आम हो गई हैं। कड़वा सच यह है कि वहां सरकारी बजट का हर समय अभाव रहता है। हैरानी की बात यह है कि देश में आज मात्र 815 किशोर सुधार गृह हैं जिनमें केवल 40-45 हजार किशोरों को रखने की ही व्यवस्था है, मगर असलियत यह है कि आज देश में किशोर अपराधियों की संख्या लाखों में हैे। यह एक समाजशास्त्रीय घटना है कि ऐसे लोग जिनका जीवन तमाम उत्पीड़न के चरणों से गुजरकर प्रौढ़ हुआ हो उनमें सुधार की गुंजाइश कम ही होती है। अवलोकन बताते हैं कि बचपन में लगातार उत्पीड़न होने के बाद समाज में ऐसे लोगों का जीवन परिवार व समाज के लोगों से प्रतिशोध लेने के रूप में सामने आया है, इसलिए रिहा होने के बाद इस किशोर का जीवन कितना प्रतिशोधी होगा और किस-किस रूप में सामने आएगा, यह कहना मुश्किल है।
सच यह है कि आज आभासी दुनिया में रचे-बसे बच्चे अब छोटी उम्र में ही जवान हो रहें हैं। इसके लिए जहां साइबर कानून की लचरता जिम्मेदार है, वहीं कहीं न कहीं परिवार व स्कूल जैसी संस्थाओं के साथ-साथ हिंसात्मक फिल्मों का व्यापक प्रचार-प्रसार भी कम दोषी नहीं है। कम उम्र में ही बच्चों के हाथों में मोबाइल व इंटरनेट थमाना अब घातक सिद्ध हो रहा है। अब इन किशोरों द्वारा किये जा रहे जधन्य अपराधों के कारण और उनकी प्रकृति और कारणों पर भी गौर करना समय की मांग है। नाबालिग किशोरों से जुड़े इन मुदृदों पर गंभीरता से विचार न करने के कारण कई बार ऐसा होता है कि हमें इनकी मासूमियत उद्वेलित करती रहती है और हमारी इन्हीं भावनात्मक संवेदनाओं की आड़ में संगठित अपराध और अधिक फलते-फूलते रहते हैं । इस दिल्ली केस का यह दोषी भी उसी श्रेणी में आता है। सुधार गृह से बाहर आने के बाद अब समाज की जिम्मेदारी बनती है कि वह विदेशों की तरह सामुदायिक पुलिसिंग के माध्यम से सर्विलांस करते हुए ऐसे किशोरों की एकल मानिटरिंग करे। तभी कानून और समाज की आपसी साझेदारी से ऐसे किशारों को समाज के साथ पुन: स्थापित कराया जा सकता है।
(लेखक- डाॅ. विशेष गुप्ता उप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निवर्तमान अध्यक्ष, हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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