काबिल होने पर भी गुमनामी में खो गईं कई महिला वैज्ञानिक, अब सरकार ने उठाया बड़ा कदम

(वरिष्ठ लेखिका डॉ. मोनिका शर्मा की कलम से)
विज्ञान की दुनिया में भारतीय महिलाओं की भागीदारी कम जरूर रही है पर कई अहम उपलब्धियां भी उनके हिस्से हैं। दुखद है कि सराहना तो दूर कई महिला वैज्ञानिक तो काबिल होने के बावजूद गुमनामी अंधेरे में ही खो गईं। अपनी प्रतिभा के लिए जिस पहचान और मान की हकदार थीं, वो उनकी झोली में नहीं आई। ऐसे में सरकार ने इनके सम्मान में देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में उनके नाम पर चेयर स्थापित करने की सोची है। इस सुखद पहल के अंतर्गत देश की अलग-अलग विज्ञान संबंधी संस्थाओं में इन्हीं महिला वैज्ञानिकों में से 11 के नाम पर पीठ की स्थापना करने का निर्णय किया गया है। अलग-अलग विषयों को लेकर पीठ बनाने के लिए कृषि, बायोटेक्नोलॉजी, इम्यूनोलॉजी, फाइटोमेडिसिन, बायोकेमिस्ट्री, चिकित्सा, सामाजिक विज्ञान, पृथ्वी विज्ञान, मौसम विज्ञान, इंजीनियरिंग, गणित, भौतिकी और फंडामेंटल रिसर्च को चुना गया है।
अपनी मेधा और मेहनत के बल पर विज्ञान की दुनिया में किए उत्कृष्ट और उल्लेखनीय कार्यों के लिए जिन महिला वैज्ञानिकों के नाम चुने गए हैं। उस फेहरिस्त में जानी मानी मानव विज्ञानी इरावती कर्वे के नाम पर इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में, वनस्पति विज्ञानी जानकी अम्मल के नाम पर आईसीएआर के किसी संस्थान या नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लेन जीनोम रिसर्च में, कायटोजेनेटिसिस्ट अर्चना शर्मा के नाम पर इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के किसी संस्थान में, आर्गेनिक साइंटिस्ट दर्शन रंगनाथन के नाम पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी या नेशनल केमिकल लेबोरेटरी में और रसायन विज्ञानी आसिमा चटर्जी के नाम पर मणिपुर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ बायोरिसोर्सेज एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट या इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज जैसे संस्थानों में पीठ स्थापित की जाएगी। महिला वैज्ञानिकों को समर्पित इन पीठों में चिकित्सक डॉ. कादंबिनी गांगुली के नाम पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी या इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में और इंजीनियर राजेश्वरी चटर्जी को समर्पित पीठ बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज या आईआईएसईआर के किसी संस्थान में स्थापित होगी। मौसम विज्ञानी अन्ना मणि के नाम पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटिओरोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट या देहरादून-स्थित फारेस्ट इंस्टीट्यूट में चेयर बनाई जाएगी। गणितज्ञ रमण परिमाला के नाम पर चेयर बनाने के लिए किसी आईआईटी, इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिकल साइंसेज, यूएसईआर के किसी संस्थान या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज में से किसी एक को चुना जाएगा। इसी तरह भौतिक विज्ञानी बिभा चौधरी के नाम पर या तो सीएसआईआर में या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में और बायो मेडिकल शोधकर्ता कमल रणदिवे के नाम पर राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी या नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस में चेयर बनना भी शामिल हैं।
विज्ञान, अनुसंधान और तकनीक की दुनिया में आज भी महिलाओं की भागीदारी न बढ़ने की एक अहम्ा वजह यह भी है कि इन क्षेत्रों में नाम कमाने और कुछ कर दिखाने वाली स्त्रियों के काम को भी पहचान नहीं मिली। हमारे यहां आज भी पुरुष वैज्ञानिकों के नाम और काम को जानने वाले लोग उसी क्षेत्र में विशेष उपलब्धि हासिल करने वाली महिला वैज्ञानिकों के नाम तक से अनजान होते हैं। यह बात और तकलीफदेह हो जाती है, जब उन महिलाओं की उपलब्धियों की अनदेखी होती हैं, जो कितनी ही परेशानियों से लड़कर आगे बढ़ीं। गौरतलब है कि दशकों पहले समाज और परिवार का परिवेश बिलकुल लगा था। लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा हासिल कर खुद को साबित करना एक सपने की तरह हुआ करता था। बावजूद इसके कई महिलाओं ने अपनी योग्यता और मेहनत के बल पर ऐतिहासिक सफलता पाई। इन 11 नामों में अधिकतर नाम ऐसे ही हैं। सुखद है कि भारत आज मौसमी बदलावों का सटीक अंदाजा लगाकर जन-धन की हानि से बचने में सफल रहने वाले देशों में शुमार है। ऐसे में यह याद रखना जरूरी है कि अन्ना मणि ही वो मौसम वैज्ञानिक थीं, जिनके मार्गदर्शन में बने कार्यक्रम की मदद से भारत मौसम विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन पाया। भारतीय विज्ञान के इतिहास के पन्नों में खो जाने वाली ऐसी महिलाओं में जानकी अम्मल का नाम भी शामिल है। गन्ने की एक विशेष रूप से मीठी प्रजाति के विकास के पीछे जानकी का ही शोध है। साल 1977 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित जानकी अम्मल के शोध के कारण ही आज चीनी मिठास बन हम सभी जीवन में शामिल है। इरावती कर्वे को रक्त-संबंधों की व्यवस्था पर किए अहम्ा अध्ययन के लिए जाना जाता है तो राजेश्वरी चटर्जी का भारत में माइक्रोवेव और ऐन्टेना इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अहम्ा योगदान रहा है। गणितज्ञ रमण परिमाला का बीजगणित के क्षेत्र में रेखांकित करने योग्य योगदान रहा तो कमल रणदिवे ने सबसे पहले स्तन कैंसर और आनुवंशिकता में संबंध के बारे में जानकरी दी। इसी तरह इन सभी महिला वैज्ञानिकों के शोध और उपलब्धियां जनकल्याण और जीवन की बेहतरी से जुड़ी हैं।
दरअसल, भारतीय महिलाओं के जीवन से जुड़ी कई समस्याएं रूढ़िवादी और अवैज्ञानिक सोच का ही नतीजा हैं। यही वजह है कि विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार की दुनिया में महिलाओं का दखल बहुत कुछ बदल सकता है। ऐसे में इन महिला वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को याद करने और याद रखने से जुड़ी यह पहल बदलाव का बड़ा माध्यम बनेगी। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय ने साइंस के संसार में उल्लेखनीय उपलब्धियों वाली जिन भारतीय महिलाओं की पहचान की है, उनका प्रेरणादायी व्यक्तित्व और कृतित्व आज के दौर महिलाओं को भी हौसला देगा। युवतियों में विज्ञान, नवाचार, अनुसंधान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित जैसे विषयों में अध्ययन अध्ययन अपनी प्रभावी भूमिका सुनिश्चित करने का जज्बा आएगा। निस्संदेह, जीवन से जुड़े लगभग सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक उपलब्धियों के माध्यम से अपनी हिस्सेदारी दर्ज करवाने वाली इन महिलाओं को यूं भुला दिया जाना तकलीफदेह है। ऐसे में महिला वैज्ञानिकों के योगदान को याद रखने के लिए ही नहीं विज्ञान की दुनिया में आधी आबादी की भागीदारी बढ़ाने के लिए भी यह एक सराहनीय पहल कही जा सकती है।
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS