विश्व जनसंख्या दिवस : छोटे परिवार के प्रति बढ़े जागरूकता

रवि शंकर
देश में परिवार नियोजन के सघन प्रयासों से प्रजनन दर में गिरावट के बावजूद महज कुछ सालों में भारत चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व आबादी पर जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, उसमें कहा गया है कि 2027 तक भारत की आबादी दुनिया में सर्वाधिक होकर 150 करोड़ के पार पहुंच जाएगी। अभी भारत की आबादी 137 करोड़ है, वहीं चीन की आबादी 143 करोड़ है। ऐसे में 2027 तक चीन को पीछे करके भारत दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। इसमें कोई दोराय नहीं कि बढ़ती आबादी किस तरह से नई-नई चुनौतियां खड़ी कर रही है।
जनसंख्या के लिहाज से भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। आजादी समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो अब तक चार गुना बढ़ गई है। परिवार नियोजन के कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक असंतुलन के चलते आबादी तेजी से बढ़ी है। फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 18 फीसदी है। भूभाग के लिहाज के हमारे पास 2.5 फीसदी जमीन है। 4 फीसदी जल संसाधन है, इसलिए जनसंख्या का संसाधनों पर दबाव बढ़ने से देश में आर्थिक, सामाजिक समस्याओं पर प्रभाव और बढ़ेगा। चाहे देश की विकास दर बढ़ती है या संसाधन, देश में हासिल सुविधाओं के न्यायपूर्ण वितरण की ठोस व्यवस्था न होने पर आबादी के एक बड़े हिस्से को अनिवार्य जरूरतों को पूरा करने में चुनौतियां आएंगी। तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की सामाजिक आर्थिक समस्याओं की जननी बनकर देश के सामने खतरे की घंटी बन सकती है। विश्व में बीमारियों का जितना बोझ है उसका 20 फीसदी बोझ अकेले भारत पर है।
वर्तमान में जिस तेज दर से विश्व की आबादी बढ़ रही है, उसके हिसाब से विश्व की आबादी में प्रत्येक साल आठ करोड़ लोगों की वृद्धि हो रही है और इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है। इतना ही नहीं, विश्व समुदाय के समक्ष माइग्रेशन भी एक समस्या के रूप में उभर रहा है। चिंता की बात यह है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे हों, परन्तु उनकी जनसंख्या विश्व के कई देशों की जनसंख्या से अधिक है। उदाहरणार्थ तमिलनाडु की जनसंख्या फ्रांस की जनसंख्या से अधिक है तो वहीं उड़ीसा अर्जेंटीना से आगे है। मध्यप्रदेश की जनसंख्या थाईलैंड से ज्यादा है तो महाराष्ट्र मेक्सिको को टक्कर दे रहा है। उत्तर प्रदेश ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो राजस्थान ने इटली को पछाड़ा है! गुजरात ने साउथ अफ्रीका को मात दे दी तो पश्चिम बंगाल वियतनाम से आगे बढ़ गया। जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा एवं गरीबी हैं। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। भारत के समक्ष तेजी से बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। इस स्थिति में जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय अभिशाप में बदलता जा रहा है। ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस ने 'प्रिंसिपल ऑफ पॉपुलेशन' में जनसंख्या वृद्धि और इसके प्रभावों की व्याख्या की है। माल्थस के अनुसार, 'जनसंख्या दोगुनी रफ्तार (1, 2, 4, 8, 16, 32) से बढ़ती है,जबकि संसाधनों में सामान्य गति (1, 2, 3, 4, 5) से ही वृद्धि होती है। परिणामतः प्रत्येक 25 वर्ष बाद जनसंख्या दोगुनी हो जाती है। हालांकि माल्थस के विचारों से शब्दशः सहमत नहीं हुआ जा सकता किंतु यह सत्य है कि जनसंख्या की वृद्धि दर संसाधनों की वृद्धि दर से अधिक होती है। भले पिछले दो दशकों में भारत ने काफी तरक्की की है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि से बेरोजगारी स्वास्थ्य, परिवार, गरीबी, भुखमरी और पोषण से संबंधित कई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। हालांकि इन समस्याओं का विश्व के प्रायः सभी देशों को सामना करना पड रहा है। अभी हाल में ही हमें दुनिया में बढ़ते खाद्यान्न संकट के लिए एशिया जिम्मेदार ठहराया गया था। खाद्यान्न संकट तेजी से बढ़ रहा है। अन्न के साथ जल संकट बढ़ रहा है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने प्रदूषण की दर को भी धधका दिया है। ऐसे में आने वाली पीढ़ियों को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है। जनसंख्या वृद्धि के कारणों में अन्य प्रमुख कारण है कम उम्र में विवाह होना। कानून बनने के बाद बाल विवाहों में तो कुछ कमी अवश्य आई है, परन्तु अभी तक पर्याप्त सुधार नहीं हुआ है। भारतीय समाज में लड़के की चाहत भी जनसंख्या वृद्धि के लिए काफी कुछ जिम्मेदार है। सरकार द्वारा चलाया जा रहा परिवार नियोजन अब परिवार कल्याण कार्यक्रम अभी भी जनता का कार्यक्रम नहीं बन पाया है इसे जनता द्वारा मात्र सरकारी कार्यक्रम ही समझा जाता है। यदि हमें देश को जनसंख्या वृद्धि के विस्फोट से बचाना है तो हमें ऐसी योजनाएं बनानी पड़ेंगी जो देश के आम लोगों को आर्थिक रूप से सम्पन्न बना सके। साथ ही साक्षरता के लिए भी प्रयास करना होगा, जिससे शिक्षा का प्रकाश सब तक पहुंच सके। परिवार कल्याण कार्यक्रम में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही, हमें कुछ ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिनसे जनता स्वयं इसमें रुचि ले। जनसंख्या नियंत्रण को लेकर देश में एक मत का निर्माण होना चाहिए कि कैसे देश में सीमित संसाधनों के बीच बढ़ती जनसंख्या पर नकेल कसी जाए। स्वतंत्र भारत में दुनिया का सबसे पहला जनसंख्या नियंत्रण हेतु राजकीय अभियान वर्ष 1951 में आरंभ किया गया, किंतु इससे सफलता नहीं मिल सकी। वर्ष 1975 के आपातकाल के दौरान बड़े स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास किये गए। इन प्रयासों में कई अमानवीय तरीकों का उपयोग किया गया। इससे न सिर्फ यह कार्यक्रम असफल हुआ बल्कि लोगों में नियोजन और उसकी पद्धति को लेकर भय का माहौल उत्पन्न हो गया जिससे कई वर्षों तक जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई।
यह स्पष्ट है कि यदि जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों और जनअवधारणों के बीच असंतुलन और संवादहीनता की स्थिति कायम रहेगी तो बेहतर परिणाम सामने नहीं आएंगे, इसलिए शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय करके जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रयास करने चाहिए। परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए तथा ऐसे परिवार जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं अपनाया है उन्हें परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करना चाहिए। निश्चित रूप से भारत में जनसंख्या वृद्धि को रोकना एक कठिन चुनौती है, जिसे हमें स्वीकारना होगा और इसके लिए उत्तरदायी कारणों का नाश करना होगा। प्रत्येक नागरिक को स्वार्थ त्याग कर देशहित में सोचना होगा। यदि सभी नागरिक ईमानदारी से सहयोग दें तो देश की बढ़ती आबादी को रोका जा सकता है। तभी आबादी से उत्पन्न संकट दूर होंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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