प्रमोद जोशी का लेख : यूक्रेन-रूस की लड़ाई में मूकदर्शक न बनी रहे दुनिया

प्रमोद जोशी का लेख
यूक्रेन पर रूसी हमले को 50 से ज्यादा दिन हो चुके हैं और लड़ाई का फैसला होता नजर नहीं आ रहा है। इस लड़ाई की वजह से दुनियाभर में आर्थिक-संकट पैदा हो गया है। उधर रूस ने यूक्रेन के कई शहरों को तबाह कर दिया है। उसकी सेना कभी इधर गोले बरसा रही है, उधर मिसाइलें दाग रही है, कभी इस शहर पर कब्जा कर रही है और कभी उस पर, पर परिणाम क्या है? रूस ने क्या सोचकर हमला किया था? क्या उसे अपने लक्ष्यों को हासिल करने में सफलता मिली? वह कौन सा लक्ष्य है, जिसके पूरा होने पर लड़ाई रुकेगी? रूसी लक्ष्य पूरे नहीं हुए, तब क्या होगा? ऐसे बीसियों सवाल अब पूछे जा रहे हैं।
दो ही विकल्प
पर्यवेक्षक मानते हैं कि लड़ाई के थमने के दो ही रास्ते बचे हैं। या तो रूस इतना भयानक नरसंहार करे कि यूक्रेन उसकी हरेक शर्त मानने को तैयार हो जाए या फिर रूस मान ले कि फिलहाल वह इससे ज्यादा कुछ और हासिल नहीं कर सकता। यों भी रूस के लिए अपनी माली हालत को संभालना मुश्किल होगा। उसने यूक्रेन को ही तबाह नहीं किया है, खुद भी तबाह हो गया है। उसके हाथ लगभग खाली हैं, यूक्रेन ने अभी तक हार नहीं मानी है, बल्कि ब्लैक सी में रूसी युद्धपोत मोस्कवा को डुबोकर रूसी खेमे में दहशत पैदा कर दी है।
रूसी पोत डूबा
लड़ाई से जुड़े ज्यादातर विवरण पश्चिमी सूत्रों से मिल रहे हैं। रूसी-विवरणों में भी अब सफलता की उम्मीदें कम और विफलता के विवरण ज्यादा मिल रहे हैं। युद्धपोत मोस्कवा के बारे में पहले रूसी सूत्रों ने बताया था कि उसके शस्त्रागार में विस्फोट हुआ है, पर बाद में स्वीकार कर लिया कि पोत डूब गया है। ब्लैक सी में रूसी नौसेना का यह फ्लैगशिप था। इसका डूबना भारी धक्का है। पश्चिमी देश मानकर चल रहे हैं कि रूस के साथ कुछ ले-देकर समझौता हो सकता है, पर मॉस्को का माहौल बता रहा है कि पुतिन ने इसे धर्मयुद्ध मान लिया है। यानी कि हमारी पूरी शर्तें माननी होंगी, इसलिए अब रूस की उस सामर्थ्य की परीक्षा है, जो इतने बड़े स्तर पर लड़ाई को संचालित करने से जुड़ी है। राष्ट्रपति पुतिन पुराने सोवियत संघ के दौर की वापसी चाहते हैं। ऐसा कैसे होगा?
हमलों में तेजी
युद्धपोत डूब जाने के बाद रूस ने हमले और तेज कर दिए हैं। रूस के मुताबिक़ उसकी क्रूज़ मिसाइलों ने रात में कीव स्थित एक फैक्टरी को निशाना बनाया, जहां पर एयर डिफेंस सिस्टम्स और एंटी-शिप मिसाइलें बनाई जाती हैं। रूस ने यूक्रेन पर यह आरोप भी लगाया कि वह सीमा पार रूस के कई शहरों को निशाना बनाने के लिए हेलिकॉप्टर भेज रहा है। रूस का आरोप है कि रूसी जमीन पर यूक्रेन ने हमले किए हैं। इनमें बेल्गोरोद के तेल डिपो पर हुआ हमला भी शामिल है। यूक्रेन ने इस बात की न तो पुष्टि की है और न खंडन किया है।
नागरिक-प्रतिरोध
जिन इलाकों पर रूस ने कब्जा कर भी लिया है, उनके भीतर मौजूद यूक्रेनी नागरिक पश्चिमी देशों से प्राप्त हथियारों की मदद से प्रतिरोध कर रहे हैं। उन्होंने कई शहरों से रूस को पीछे हटने को मजबूर कर दिया है। राजधानी कीव पर फरवरी में ही कब्जे की उम्मीदें व्यक्त की जा रही थी, जो अब तक पूरी नहीं हुई हैं, बल्कि रूस ने अब उत्तरी इलाकों पर कब्जा करने का विचार त्याग दिया है और पूर्वी तथा उससे जुड़े दक्षिणी इलाकों पर उसकी नजर है। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस पूरे समुद्री तट पर कब्जा करके भी उसे अपने नियंत्रण में नहीं रख पाएगा। आज किसी गांव पर रूसी झंडा लगता है, तो अगले दिन वहां फिर से यूक्रेनी झंडा लग जाता है।
छापामार लड़ाई
हजारों की मौत हो जाने के बावजूद यूक्रेनी नागरिकों का मनोबल ऊंचा है। छापामार युद्ध के लिए लगातार भोजन, हथियारों और उससे जुड़ी कुमुक की जरूरत होती है साथ ही विपरीत मौसम से लड़ने की क्षमता भी। इन सभी मामलों में यूक्रेनी नागरिक बेहतर स्थिति में हैं, जबकि रूसी सेना के सामने परिस्थितियां विपरीत हैं। ऐसे में रूसी लक्ष्य अब क्रमशः सीमित होते जा रहे हैं। शायद उसने मान लिया है कि निर्णायक लड़ाई संभव नहीं है, इसलिए समुद्र से लगे इलाकों पर कब्जा करके लड़ाई को खत्म किया जाए, ताकि भविष्य में इस इलाके पर पकड़ बनी रहे, इसीलिए लग रहा है कि फिलहाल बंदरगाह के शहर मारियुपोल पर कब्जा करने का लक्ष्य लेकर रूसी सेना लड़ रही है। यहां भी रूस को कड़ी टक्कर मिल रही है। मारियुपोल पर रूसी कब्जा हो जाएगा, तो क्रीमिया प्रायद्वीप तक जमीनी गलियारा बन जाएगा। क्रीमिया पर रूसी कब्जा 2014 में हो चुका है।
एटमी हथियार
सीआईए के सूत्र दावा कर रहे हैं कि राष्ट्रपति पुतिन अब किसी प्रकार से छोटी-मोटी विजय दिखाकर लड़ाई को समेटना चाहेंगे। इसके लिए वे कम शक्तिशाली टैक्टिकल नाभिकीय-अस्त्रों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। क्या रूस ऐसा करने का साहस करेगा? हालांकि जिस प्रकार के नाभिकीय अस्त्रों की बात हो रही है, उन्हें भयानक संहार वाले एटम बम नहीं कहा जा सकता, पर उनकी क्षमता सामान्य विस्फोटकों की तुलना में कहीं ज्यादा होती है, पर उनका इस्तेमाल होते ही वैश्विक-जनमत पूरी तरह रूस के खिलाफ हो जाएगा। यों भी रूस आर्थिक-प्रतिबंधों के कारण काफी नुकसान उठा चुका है। इस लड़ाई को वह कितना आगे ले जा सकता है, यही सबसे बड़ा सवाल है। यूरोपियन यूनियन ने इस महीने रूसी कोयले पर पाबंदी लगा दिया है। अब पहली बार यह फैसला होने वाला है कि रूसी तेल की खरीद कई चरणों में बंद की जाए। इससे रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि रूसी सेनाओं ने अफगानिस्तान, चेचन्या और सीरिया में जिन विपरीत स्थितियों का सामना किया था, उससे भी ज्यादा खराब हालात यहां है। क्या रूस ने इन सब बातों पर विचार नहीं किया था? क्या उसने कोई प्लान 'बी' या 'सी'नहीं बनाया था?
पुतिन का स्वप्न
राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन को स्वतंत्र देश के रूप में देखना ही नहीं चाहते। यह लड़ाई 24 फरवरी से शुरू नहीं हुई है, बल्कि 2014 से चल रही है, जब रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को यूक्रेन से भागना पड़ा था। उसके पहले 2004 में जब यूक्रेन में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे, पुतिन खुद कीव गए थे और रूस समर्थक प्रत्याशी विक्टर यानुकोविच के पक्ष में प्रचार किया था। उन्होंने रूस और यूक्रेन की दोहरी नागरिकता की पेशकश भी की थी। देश की राजनीति में पुतिन के गहरे हस्तक्षेप से यूक्रेन की स्वतंत्रता के समर्थकों के मन में खलिश पैदा हुई थी। असल में उसी दौरान ऑरेंज रिवॉल्यूशन की बुनियाद पड़ी थी।
पश्चिमी मतभेद
अमेरिका और पश्चिमी देश इस समस्या को लेकर पूरी तरह एकमत नहीं हैं। यूक्रेन को सदस्यता देने के मामले में नाटो देश भी एकमत नहीं हैं। यहां तक कि यूक्रेन ने भी इसकी इच्छा व्यक्त नहीं की है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कई बार कहा है कि हम नाटो की सदस्यता के लिए उत्सुक नहीं हैं। पश्चिमी देश हालांकि रूसी हमले के विरोध को लेकर एकमत हैं, पर रणनीति को लेकर उनमें मतभेद हैं। अमेरिका रूसी हमले को नरसंहार कहता है, पर कुछ देश ऐसा नहीं मानते। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने शब्दों के चुनाव में बिल्कुल सही हैं। बाइडेन ने रूस पर यूक्रेन में नरसंहार करने का आरोप लगाया है। दूसरी तरफ फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का कहना है कि इस तरह के शब्दों से 'शाब्दिक-युद्ध' और तेज होगा। जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स भी इस तरह के शब्दों के इस्तेमाल से बच रहे हैं।
फिनलैंड और स्वीडन
यूक्रेन की बातें चल ही रही थीं कि अब फिनलैंड और स्वीडन को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। फिनलैंड की रूस के साथ 1340 किलोमीटर लम्बी सीमा है। वह 1917 में रूस से अलग हुआ था और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दो बार रूस के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ चुका है। वहीं, स्वीडन ने पिछले 200 साल में कोई युद्ध नहीं लड़ा है। उसकी विदेश नीति लोकतंत्र समर्थन और परमाणु निरस्त्रीकरण पर केंद्रित है। रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से फिनलैंड और स्वीडन के विचारों में बदलाव हुआ है। दोनों देश पहले नाटो में शामिल होने की बात सोचते नहीं थे, पर अब वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इस समय नाटो के 30 देश नेटो के सदस्य हैं। स्वीडन और फिनलैंड सदस्य बने तो यह संख्या 32 हो जाएगी।
रूसी धमकी
फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन ने बुधवार को कहा था कि अगले कुछ सप्ताह में हम नाटो में शामिल होने के मुद्दे पर फैसला कर सकते हैं। उनकी इस घोषणा के अगले ही दिन गुरुवार को रूस ने चेतावनी दी कि अगर स्वीडन और फिनलैंड नाटो में शामिल हुए तो रूस यूरोप के बाहरी इलाके में परमाणु हथियार और हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात कर देगा। रूस की सुरक्षा परिषद के डिप्टी चेयरमैन दिमित्री मेदवेदेव ने कहा कि अगर स्वीडन और फिनलैंड नाटो में शामिल होते हैं तो रूस को बाल्टिक सागर में अपनी थल-सेना, नौ-सेना और वायु सेना को और मज़बूत करना होगा। उन्होंने कहा कि फिर 'परमाणु मुक्त' बाल्टिक सागर को लेकर कोई बातचीत नहीं होगी।
पश्चिम का वादा
फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने को लेकर रूस पहले भी यूक्रेन जैसे हमले के लिए तैयार रहने की चेतावनी दे चुका है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन का कहना है कि पश्चिमी देशों ने 1990 में वादा किया था कि पूर्व की ओर नाटो का एक इंच भी विस्तार नहीं होगा। पुतिन जिस वक़्त की बात कर रहे हैं, उस समय सोवियत संघ का अस्तित्व था। यह बात तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव के साथ पूर्वी जर्मनी के सिलसिले में हुई थी। गोर्बाचोव ने बाद में कहा था कि इस बैठक में नेटो के विस्तार को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई थी।
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