योगेश कुमार सोनी का लेख : जानलेवा बनता जा रहा डेंगू

डेंगू से बीते कई वर्षों में कई मौतें हुई हैं, लेकिन हम कोरोना जैसी महामारी के बाद भी नहीं संभले जो हमारे सिस्टम पर तमाम तरह के सवालिया निशान खड़ा कर देता है। उत्तराखंड में अभी भी जनसंख्या कम है और वहां जिला अस्पतालों के अलावा एम्स भी हैं, लेकिन फिर भी वहां मरीज अच्छे उपचार व बेड न मिलने की वजह से अपनी जान गवा रहे हैं। कोरोना के बाद हम आखिर क्यों किसी आकस्मिक महामारी से अभी भी निपटने के लिए तैयार नही हैं। बावजूद इसके इस तरह का दृश्य बहुत कुछ कहने को तैयार है। इस वर्ष बाढ़ अधिक होने की वजह से कई तरह के मच्छर व उनसे संबंधित बीमारियां पैदा हुई और इस ही बीच डेंगू ने भी जमकर पैर पसारे।
वैसे तो इस समय पूरे देश में डेंगू का कहर बरस रहा है, लेकिन पहली बार उत्तराखंड में सबसे ज्यादा मामले आ रहे हैं। जिला अस्पताल प्रशासन की ओर से यह बताया गया है कि डेंगू से मरने वालों में बच्चे भी हैं। यदि आंकड़ों की बात करें तो बीते मंगलवार तक लगभग दो हजार मामले आ चुके हैं और करीब दो दर्जन लोगों की मौत भी हो चुकी है। यह आंकड़ा बेहद परेशान व चौंकाने वाला है। चूंकि हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपडेट होने की बात करते हैं और यह बात बेमानी सी लगती है और दुख इस बात का होता है कि हम कोरोना का भयावह कालखंड देख चुके हैं। डेंगू से बीते कई वर्षों में कई मौतें हुई हैं, लेकिन हम कोरोना जैसी महामारी के बाद भी नहीं संभले जो हमारे सिस्टम पर तमाम तरह के सवालिया निशान खड़ा कर देता है।
उत्तराखंड में अभी भी जनसंख्या कम है और वहां जिला अस्पतालों के अलावा एम्स भी हैं, लेकिन फिर भी वहां मरीज अच्छे उपचार व बेड न मिलने की वजह से अपनी जान गवा रहे हैं। कोरोना के बाद हम आखिर क्यों किसी आकस्मिक महामारी से अभी भी निपटने के लिए तैयार नही हैं। यदि डेंगू की बात करें तो यह कोई आकस्मिक वायरस या बीमारी नहीं है। बावजूद इसके इस तरह का दृश्य बहुत कुछ कहने को तैयार है। इस वर्ष बाढ़ अधिक होने की वजह से कई तरह के मच्छर व उनसे संबंधित बीमारियां पैदा हुई और इस ही बीच डेंगू ने भी जमकर पैर पसारे और और लोगों पर अटैक किया।
डेंगू उत्तराखंड के अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के अलावा कुछ राज्यों को भी प्रभावित कर रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए बजट आवंटन 2022-23 के 28,974.29 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2023-24 में 29,085.26 करोड़ रुपये किया है और उत्तराखंड सरकार का इस वर्ष का बजट 4217 करोड़ रुपये है, लेकिन धरातल पर बावजूद इसके काम नहीं दिख रहा, चूंकि हर वर्ष होने वाली साधारण बीमारी से इस तरह लोगों का मरना गवारा नहीं हो रहा। बीते दिनों हम विश्व में जनसंख्या आधार पर नंबर एक पर आ चुके हैं और देश को संचालित करने की तैयारी हमारी उतनी सुचारू रूप से संचालित नहीं हो पा रही। स्वास्थ्य, शिक्षा व सुरक्षा किसी भी देश की बुनियादी जरूरत मानी जाती है और हम इसमें कहीं भी कमजोर पड़ जाएंगे तो निश्चित तौर पर देश डगमगा सकता है। विश्व पटल पर वायरस आने वाले समय को लेकर चिंता का विषय बना हुआ है। चूंकि निपाह वायरस का जिक्र में फ्रिक देखने को मिल रहा है, इसलिए चुनौतियां ज्यादा और इसके समाधान का समय कम है।
निपाह के वायरस ने विश्व पटल सबकी नीदें उड़ा रखी हैं। निपाह वायरस के मामलों में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है जिसके लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद भी इसको लेकर सतर्क हो गया है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह बताया जा रहा है कि यह कोरोना से कई गुणा खतरनाक है और महानगरों व भीड़-भाड़ वाले इलाकों ज्यादा प्रभावित करेगा। बताया जा रहा है कोरोना से मरने वालों की दर सिर्फ दो से तीन प्रतिशत ही थी, लेकिन निपाह वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 40-70 प्रतिशत का है। यदि यह फैल गया तो केलकुलेशन यह कहती है कि शहर के शहर साफ हो जाएंगे और स्थिति इतनी भयावह होगी कि काबू नही हो पाएगी। बहरहाल, विशेषज्ञों के अनुसार जिन जगहों पर अधिक बाढ़ व बारिश आती है उन जगहों को सूखने के बाद इस तरह की दवाइयों का छिड़काव होता है जिससे मच्छर पैदा न हों और यदि डेंगू मच्छर की बात करें तो डेंगू, मादा एडीज इजिप्ची नाम के मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर जब काटता है तो मनुष्य का खून चूसता है और वायरस शरीर में छोड़ देता है और उसके बाद किसी अन्य व्यक्ति को काटता है तो फिर दूसरे को और अधिक तेजी से यह वायरस प्रभावित करता है और इसी तरह आगे इसकी चेन बनती चली जाती है और यह रौद्र रूप धारण करता रहता है।
डॉक्टरों के अनुसार डेंगू को तीन तरह से वर्गीत किया है, जिसमें पहली स्थिति में साधारण बुखार होता है, दूसरी में हैमरेजिक बुखार और तीसरी स्थिति वह है जो इसकी सबसे खतरनाक स्िथति मानी जाती है वह है शॉक सिंड्रोम। तेज बुखार,मांस पेशियों में दर्द, कमजोरी लगने और हल्का सा गले में दर्द होने पर आप क्षेत्रीय डॉक्टरों से उपचार करा सकते हैं, लेकिन जब शरीर के किसी भी अंग से खून आना और बार-बार होश खो देने पर तुरंत स्पेशलिस्ट से संपर्क करना चाहिए और अस्पताल में एडमिट होना अनिवार्य समझा जाता है। हम सरकारों से कितने भी गिले शिकवे करें, लेकिन हमें स्वयं ही अपनी सुरक्षा करनी पड़ेगी इसके लिए हमें कुछ एहतियात बरतने की जरुरत है। जैसा कि हम जानते हैं डेंगू, बरसात के मौसम में पनपना शुरू होता है और जुलाई से अक्टूबर तक सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, क्योंकि इस मौसम सभी तरह के मच्छरों के पनपने का समय होता है। डेंगू मच्छर कम ऊंचाई तक उड़ पाता और खासतौर पर सुबह के समय ही काटता है। डेंगू से निपटने के लिए हमें स्वयं मेहनत करने की जरूरत है। वैसे तो हर बीमारी से बचने का एकमात्र उपाय सफाई है, लेकिन आज के दौर में थोड़ा सा और अतिरिक्त कर लिया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा।
अपने घर को स्वच्छ रखना तो स्वाभाविक है, लेकिन साथ में अपने आस-पास भी गंदगी व पानी न जमा होने दें। जहां पानी जमा रहता है जैसे कि कूलर व अन्य इस प्रकार की कोई भी जगह तो वहां आप एक ढक्कन या आवश्यकतानुसार मिट्टी का तेल जरुर डाल दें। जैसे हम बदलते दौर के फैशन में अपने कपड़ों, जूतों अौर अन्य इस प्रकार की चीजों के साथ अपडेट व अपग्रेड कर लेते हैं वैसे ही बढ़ती बीमारियों से लड़ने के लिए इस तर्ज पर चलने की जरूरत है। दरअसल मामला यह भी है कि हमारे देश में हर किसी को यह लगता है कि यह घटना हमारे साथ तो हो नहीं, सकती लेकिन जब ऐसा सोचने वाला चपेट में आता है तब पछतावे के अलावा कुछ नहीं कर पाता। कोरोना से आए संकट से हमें सबक व सीख लेना चाहिए। यदि हम बाकी बीमारियों से बचने के लिए इस तरह की सुरक्षा अपना लेंगे तो निश्चित तौर पर सफलता मिलेगी।
हम डेंगू, मलेरिया व अन्य इस तरह की बीमारियों को हल्के में ले लेते हैं जिसका भुगतान अब हमें जान चुका कर पूरा करना पड़ता है। जब हमें पता है कि पहले से कोई बड़ी परेशानी आ रही है तो हमें अपने आप को बचाने के लिए तैयार रहना चाहिए और यह डेंगू से लड़ने व बचने का बिल्कुल सही समय है। अपने व परिवार की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त जागरूक रहने की जरूरत है चूंकि इस वर्ष जिंदगी ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ वाली तर्ज पर चल रही है।
योगेश कुमार सोनी (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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