संत रविदास मंदिर तोड़े जाने की पूरी कहानी

13 अगस्त को गुरू रविदास की जयंती (Sant Ravidas Jayanti) पर पंजाब में बंद का ऐलान किया गया था। प्रदेश के कई जिलों में बंद का असर भी दिखा, जालंधर, कपूरथला समेत 5 शहरों की स्कूलों को बंद किया रखा गया था। ये सब प्रदर्शन दिल्ली के तुगलगाबाद में गुरू रविदास की मंदिर को तोड़े जाने के फैसले के बाद किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने आखिर संत रविदास की मंदिर को गिराने का निर्णय क्यों लिया?
दिल्ली डेवलपमेंट ऑथारिटी (DDA) की माने तो दिल्ली के तुगलगाबाद में बना भव्य मंदिर जंगल की जमीन पर बनाया गया है। इसलिए इसे यहां से हटाने के लिए कई बार बोला गया पर मंदिर समिति ने इसपर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद डीडीए इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुना और डीडीए के हक में फैसला दिया। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भी मंदिर को वहां से नहीं हटाया गया जिसके बाद कोर्ट ने डीडीए मंदिर को गिराने का आदेश दे दिया और अगले ही दिन डीडीए ने बुलडोजर के जरिए मंदिर को हटा दिया।
मंदिर टूटने के बाद दिल्ली और पंजाब में विरोध शुरू हुआ। मंदिर समिति का ने कहा कि आज से 500 साल पहले गुरू रविदास बनारस से पंजाब जा रहे थे यहां आराम करने के लिए रुके, उस वक्त के शासक सिकंदर लोदी ने संत रविदास को ये जमीन दान में दी।
इतिहास पर नजर डाले तो डीडीए द्वारा ढहाई गई मंदिर का निर्माण आजादी के बाद 1954 में किया गया था। धीरे धीरे वहां लोगों का जमावड़ा लगने लगा। मंदिर के टूटने के बाद सिक्खो में एक वर्ग बेहद खफा है। उसने डीडीए को आस्था आस्था विरोधी बताया।
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