तालिबान के कब्जे के बाद अधर में अफगानिस्तान क्रिकेट का भविष्य

तालिबान के कब्जे के बाद अधर में अफगानिस्तान क्रिकेट का भविष्य
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अफगानी क्रिकेटर्स ने कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई है। उन्होंने दुनिया को बता दिया है कि अगर सब कुछ ठीक रहे तो वह अपनी प्रतिभा से बहुत कुछ कर सकते हैं।

खेल। तालिबान (Taliban) ने पूरे अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा कर चुका है। अमेरिकी सैनिकों की स्वदेश वापसी और तालिबानी लड़ाकों के दोबारा प्रभावी होने से पूरा देश बेहाल है। इस मुश्किल घड़ी में खेल (Sports) की कोई भी बात करना हर तरह की प्राथमिकता से बाहर है। अभी अफगानिस्तानी जनता को कई मुश्किलों से पार पाना होगा। लेकिन इस मुश्किल हालात में भी एक मुद्दा भी अहम है वह क्रिकेट (Cricket) है। इस चार करोड़ आबादी वाले मुल्क में शांति का पैगाम क्रिकेट के द्वार ही आ सकता है। अफगानी क्रिकेटर्स ने कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई है। उन्होंने दुनिया को बता दिया है कि अगर सब कुछ ठीक रहे तो वह अपनी प्रतिभा से बहुत कुछ कर सकते हैं।

क्रिकेट में पूरी तरह से शुरुआत के बाद अफगानी खिलाड़ियों को सिर्फ दो दशक के अंदर ही सफलता का स्वाद चखने को मिला है। लेकिन अब तालिबान के कब्जे के बाद वहां क्रिकेट के भविष्य और टी-20 वर्ल्डकप में शामिल होने वाले देश में विकास को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।

लोकतांत्रिक मूल्यों से तालिबान का किसी तरह का कोई वास्ता नहीं है। एक चरमपंथी संगठन के रूप में जाने जाने वाले तालिबान से अफगान खिलाड़ियों को अपने परिवार की सुरक्षा और खेलों के भविष्य को लेकर डर सताने लगा है। वहीं इंग्लैंड की लीग द हंड्रेड में खेल रहे अफगानी स्टार खिलाड़ी राशिद खान और मोहम्मद नबी ने दुनिया के सभी ताकतवर नेताओं से मदद की अपील भी की थी।

तालिबान क्रिकेट का मुरीद

लेकिन इसके उल्ट अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने एक इंटरव्यू में दावा करते हुए कहा कि तालिबान से क्रिकेट को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है क्योंकि तालिबान खुद क्रिकेट को बढ़ावा देता है। दरअसल अधिकारी ने कहा कि खिलाड़ियों के परिवार सुरक्षित हैं और क्रिकेट के विकास या टूर्नामेंटों में टीम की भागीदारी पर तालिबान का कोई असर नहीं पड़ेगा। बता दें कि अधिकारी का मानना है कि 1996 से 2001 तक तालिबान के शासन में क्रिकेट को बढ़ावा दिया गया। साथ ही उन्होंने बताया कि तालिबान खुद खेल और खिलाड़ियों के मुरीद है।

तालिबान ने सिर्फ क्रिकेट को दी मंजूरी

गौरतलब है कि अफगानिस्तान में क्रिकेट की पहली संस्था 1995 में बनी थी। जिसमें अफगानिस्तान ने टी-20 वर्ल्ड कप और आईपीएल में भागीदारी की थी। इसके साथ ही अफगानी टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो पाकिस्तान के शरणार्थी कैंपों में रहते थे। वहीं 2000 के दौरान तालिबान ने खेलों में सिर्फ क्रिकेट को ही देश में इजाजत दी। फिर 2001 में अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद जब अशरफ गनी की सरकार बनी तो अफगान क्रिकेट ने तेजी से विकास किया।

बहरहाल, अक्टूबर में टी-20 वर्ल्ड कप टूर्नामेंट के लिए अफगानिस्तान इसमें भाग ले भी पाएगा या नहीं ये तो कुछ दिनों मे शायद तय हो जाए। लेकिन समस्या अभी भी बड़ी है क्योंकि तालिबान ने अफगानिस्तान के सभी क्रिकेट स्टेडियम पर अपना कब्जा जमा लिया है, जिससे खिलाड़ियों के प्रैक्टिस और उनकी जरूरतों को लेकर अभी भी कई सवाल हैं।

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