Sunday Special: जानें मिल्खा सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ अनकही बातें, The Flying Sikh की लव स्टोरी

'हाथ की लकीरों से जिंदगी नहीं बनती
अजम हमारा भी कुछ हिस्सा है जिंदगी बनाने में"
Sunday Special: ये पक्तिंया किसी शायर की नहीं बल्कि खुद मिल्खा सिंह ने अपनी जिंदगी पर कहीं थी। और इन्हीं पक्तियों के इर्द-गिर्द उनका जीवन है। बता दें कि महान भारतीय ऐथलीट मिल्खा सिंह का शुक्रवार देर रात चंडीगढ़ निधन हो गया। वह कोविड संबंधित परेशानियों से जूझ रहे थे। मिल्खा सिंह की उम्र 91 साल थी। इस फर्राटा धावक को 'फ्लाइंग सिख' कहा जाता था। बेशक, यह नाम उन्हें उनकी रफ्तार की वजह से मिला था लेकिन इसके पीछे का घटनाक्रम भी जानने योग्य है।
1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स का वो नजारा किसी ऐतिहासिक क्षण से कम नहीं था। उस दौरान लोगों की जुबां पर सिर्फ एक नाम था सेंट (साधू)। दरअसल उस वक्त लोग मिल्खा सिंह को मिल्खा के नाम से नहीं बल्कि सेंट के नाम से जानते थे। जैसे ही मिल्खा मैदान पर उतरे उन्होंने वो 400 मीटर की रेस बड़ी फूर्ती से पूरी कर ली। फिर क्या था तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा मैदान गूंज उठा। वहीं जब मिल्खा पोडियम पर आए और उन्हें ब्रिटेन की रानी ने गोल्ड मेडल पहनाया तो उनके चेहरे पर गर्व था। मिल्खा की आंखों में सफलता के आंसू थे, हो भी क्यों ना इंग्लैंड की जमीन पर देश का तिरंगा सबसे ऊपर था और राष्ट्रगान की गूंज ने उस पल ने सभी भारतियों को गर्व का एहसास कराया। यह आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल था।
हालांकि इसके बाद 1960 के रोम ओलिंपिक में मिल्खा पदक से चूक गए थे। इस हार का उनके मन में गम था। लेकिन 1960 में ही उन्हें पाकिस्तान के इंटरनैशनल ऐथलीट कंपीटीशन में न्योता मिला। मिल्खा के मन में बंटवारे का दर्द था। वह पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे। लेकिन बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया।
'द फ्लाइंग सिख' का नाम
पाकिस्तान में उस समय अब्दुल खालिक का जोर था। खालिक वहां के सबसे तेज धावक थे। दोनों के बीच दौड़ हुई। मिल्खा ने खालिक को हरा दिया। पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने 'फ्लाइंग सिख' का नाम दिया। वहीं अब्दुल खालिक को हराने के बाद अयूब खान मिल्खा सिंह से कहा था, 'आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं।' इसके बाद ही मिल्खा सिंह को 'द फ्लाइंग सिख' कहा जाने लगा।
'द फ्लाइंग सिख' की लव स्टोरी
मिल्खा सिंह पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित थे और उन्होंने भारतीय सेन की सेवा की। उनकी जिंदगी में तीन महिलाएं आईं लेकिन उन्होंने तीनों में से किसी भी शादी नहीं की। मिल्खा सिंह को आखिरकार निर्मल कौर से प्यार हुआ दोनों की लव स्टोरी दिल्ली के नेशनल स्टेडियम से शुरू हुई और दोनों लगभग 59 साल तक साथ में रहे और मौत ही दोनों को अलग कर पाई।
दरअसल मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की पहली मुलाकात 1955 में कोलंबो में हुई। दोनों यहां टूर्नामेंट खेलने गए थे निर्मल महिला वॉलीवॉल टीम की कप्तान की थीं और मिल्खा सिंह एथलीट टीम का हिस्सा थीं। जिसके बाद मिल्खा सिंह को निर्मल से एक तरफा प्यार हुआ इस दौरान दोनों लंबे वक्त एक-दूसरे के साथ रहे। कहा जाता है कि वहां कोई पेपर मौजूद नहीं था, इसलिए मिल्खा सिंह ने निर्मल कौर के हाथ पर अपना होटल का नंबर लिखा था। इसके बाद दोनों की लव स्टोरी 1960 से शुरू हुई, जब दोनों दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में मिले। तब तक मिल्खा सिंह अपनी पहचान बना चुके थें और वह अपने कोफी ब्रेक में निर्मल कौर के साथ वक्त बिताते थे।
इतना ही नहीं बल्कि इसके बाद दोनों के रिलेशनशिप की खबरें अखबारों में छपने लगी। मिल्खा सिंह और निर्मल कौर ने साथ रहने का फैसला किया। हालांकि दोनों को अपने पैरेंट्स को मनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। और उस वक्त पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रताप सिंह ने दोनों के परिवार को मनाया और साल 1962 में दोनों ने शादी। दोनों के बीच 9 साल का गैप था। दोनों लगभग 59 साल तक साथ रहे, उनके तीन बेटियां अलीजा ग्रोवर, सोनिया संवाकर और मोना सिंह और एक बेटा जीव मिल्खा सिंह हैं।
फिलहाल ऐसे ना जाने कितने ही किस्से हैं जब मिल्खा सिंह ने दुनिया को ये बताया कि वो अपने खेल के जरिए भले ही सफलता की हर चोटी पर फतह हासिल कर चुके हैं। लेकिन उन्होंने अपनी सादगी रूपी जमीन को नहीं छोड़ा है, भारतीय सेना के ऑनररी कप्तान मिल्खा सिंह को हमारा नमन आप सदियों तक इस देश के युवाओं के लिए ऊर्जा के स्त्रोत रहेंगे।
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