Sunday Special: जब 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद ने हिटलर को भी बना दिया था अपना मुरीद, मैच के बाद किया था सैल्यूट

Sunday Special: जब हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने हिटलर को भी बना दिया था अपना मुरीद, मैच के बाद किया था सैल्यूट
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मेजर ध्यानचंद को उनके अपने अलग तरीके से गोल करने के लिए याद किया जाता है। मेजर ध्यानचंद ने भारत को लगातार तीन बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलवाया था।

खेल। हाल ही में संपन्न हुआ टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) भारत के लिए एतिहासिक रहा। खेलों के महाकुंभ में भारत की पुरुष और महिला हॉकी टीमों ने शानदार प्रदर्शन किया। जहां पुरुष हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रचा, वहीं महिला टीम ने अपने उम्दा प्रदर्शन से दुनिया को अपना कायल बना दिया। दोनों टीमों के ऐतिहासिक प्रदर्शन ने एक बार फिर भारतीय हॉकी (Indian Hockey team) में नई जान फूंकी है।


भारत में हॉकी का इतिहास स्वर्णिम रहा है। और इस स्वर्णिम इतिहास के दाता थे हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand)। जो आज भी प्रासंगिक हैं। 29 अगस्त को 1905 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में जन्में ध्यानचंद को हॉकी की बजाय कुश्ती में दिलचस्पी थी। लेकिन 1922 में फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट में सिपाही बनकर आए ध्यानचंद ने शारीरिक गतिविधियों के लिए हॉकी खेलना शुरु किया। यहीं से उन्हें हॉकी से लगाव हुआ।


मेजर ध्यानचंद को उनके अलग तरीके से गोल करने के लिए याद किया जाता है। उन्होंने भारत को लगातार तीन बार ओलंपिक मे स्वर्ण पदक दिलाया था। साथ ही ध्यानचंद ने अपने खेल जीवन में एक हजार से ज्यादा गोल दागे हैं। जब भी वो मैदान पर उतरते थे तो मानों गेंद उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। आज भी हॉकी की दुनिया में उन्हें बड़े सम्मान के साथ संबोधित किया जाता है। देश ही नहीं बल्कि दुनिया भी उनके खेल को देखना पसंद करती थी। यहां तक कि जर्मनी का तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी उनका मुरीद था। किसी के सामने ना झुकने वाले हिटलर ने ध्यानचंद को झुक कर सैल्यूट भी किया था।

बर्लिन ओलंपिक 1936 में जीता गोल्ड


दरअसल आजादी से 11 साल पहले यानी 1936 के बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद की अगुवाई में भारतीय हॉकी टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए फाइनल में जर्मनी को हराकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। उस समय इस मुकाबले में हिटलर भी मौजूद था। ये कारनामा हुआ 15 अगस्त के दिन, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि ठीक 11 साल बाद इसी दिन भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलेगी। ओलंपिक के उस मुकाबले में ध्यानचंद का खेल देखकर हिटलर ने उनके सामने जर्मनी की नागरिकता देने का प्रस्ताव तक रख दिया। लेकिन ध्यानचंद ने भारत को अपना सबकुछ माना।


वहीं इस महान और कालजयी हॉकी खिलाड़ी के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए 29 अगस्त को पूरे भारत देश में "राष्ट्रीय खेल दिवस" के रूप में मनाया जाता है। फिलहाल ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग भी की जा रही है। भारत रत्न को लेकर ध्यानचंद के नाम पर अब भी विवाद जारी है। हालांकि, हॉकी में उनके योगदान को लेकर पीएम मोदी ने खेलों में दिया जाने वाले सबसे बड़े पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न को बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया है।

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