Tokyo Olympics में हरियाणा के शाहाबाद की छोरियों का जलवा, ओलंपिक में बढ़ाया देश का मान

Tokyo Olympics में हरियाणा के शाहाबाद की छोरियों का जलवा, ओलंपिक में बढ़ाया देश का मान
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भारतीय महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक के सेमीफाइनल में अपनी जगह पक्की की है। उनकी इस जीत के साथ ही हरियाणा के कुरुक्षेत्र के छोटे से कस्बे शाहाबाद का भी जलवा देखने को मिला, दरअसल क्वार्टर फाइनल में खेलीं कप्तान रानी रामपाल और मिडफील्डर नवजोत कौर शाहाबाद की ही रहने वाली हैं।

खेल।आज देश में चारों तरफ सिर्फ भारतीय महिला हॉकी टीम (India Women's Hockey team) की ही चर्चा है, और हो भी क्यों ना उन्होंने इतिहास जो रच दिया है। दुनिया नंबर 2 की टीम ऑस्ट्रेलिया (Australia) को क्वार्टर फाइनल में शिकस्त देकर भारत ने सेमीफाइनल में जगह बनाई है। यह पहली बार है कि भारतीय महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक (Olympics) के सेमीफाइनल में अपनी जगह पक्की की है। इस जीत के साथ ही हरियाणा के कुरुक्षेत्र के छोटे से कस्बे शाहाबाद का भी जलवा देखने को मिला, दरअसल क्वार्टर फाइनल में खेलीं कप्तान रानी रामपाल (Rani Rampal) और मिडफील्डर नवजोत कौर (Navjot Kaur) शाहाबाद की ही रहने वाली हैं।

शाहाबाद कहने को एक छोटा कस्बा है, लेकिन इसके हर घर से हॉकी खिलाड़ी निकलते हैं। शाहाबाद ने देश को एक से बढ़ कर एक हॉकी खिलाड़ी दिए हैं जैसे- गुरदीप सिंह भुल्लर, संजीव कुमार डांग, ड्रैग फ्लिकर संदीप सिंह, और भी कई नाम है जिन्होंने देश का मान बढ़ाया है। मौजूदा महिला नैशनल हॉकी टीम में 12 खिलाड़ी ऐसी हैं जिनका जन्म या तो शाहाबाद में हुआ या उन्होंने यहां से ट्रेनिंग ली है। वहीं हाल में ओलंपिक में महिला हॉकी टीम का नेतृत्व करने वाली रानी रामपाल और मिडफील्डर नवजोत कौर का भी नाम शामिल है।

वैसे तो हरियाणा पूरे देश में एकलौता राज्य ऐसा है जहां से हर क्षेत्र से खिलाड़ी निकलते हैं जो आगे चलकर दुनिया में अपने राज्य और देश का नाम रौशन करते हैं। वहीं भारतीय महिला हॉकी टीम में हरियाणा की बेटियों का ही जलवा है जिनकी बदौलत टीम सेमीफाइनल में पहुंची है।

मुफलिसी में बीता जीवन

कप्तान रानी रामपाल ने महज 6 साल की उम्र ममें हॉकी स्टिक थामी थी। उनके पिता घोड़ागाड़ी चलाते थे, जिंदगी बड़ी मुफलिसी में गुजरी लेकिन बावजूद इसके उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 9 साल की उम्र से ही शाहाबाद हॉकी अकादमी में दाखिला ले लिया और द्रोणाचार्य अवॉर्डी बलदेव सिंह से हॉकी के गुर सीखे। इतना ही नहीं बल्कि 14 साल की कम उम्र में नैशनल टीम में चयन हुआ और सबसे कम उम्र की महिला हॉकी प्लेयर का खिताब अपने नाम किया। उसके बाद 2009 में चैंपियन चैलेंज टूर्नामेंट के फाइनल में 4 गोल दागकर टीम को तो जीत दिलाई ही साथ ही टीम में अपना लोहा भी मनवाया। उसी साल एशिया कप में भी टीम को सिल्वर मेडल जीताने में बड़ी भूमिका निभाई। इसके बाद उन्हें 2020 में राजीव गांधी खेल रत्न और पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

रानी रामपाल को मानती हैं अपनी आदर्श

वहीं टीम में मिडफील्डर नवजौत कौर की बात करें तो अपने इंटरनैशल करियर में 100 से ज्यादा मैच खेले हैं। बेहद ही सामान्य परिवार में जन्मीं नवजौत के पिता एक मेकैनिक हैं। वह टीम की कप्तान रानी को अपना आदर्श मानती हैं, क्वार्टरफाइनल में ऑस्ट्रेलियाई टीम को धूल चटाने में नवजौत का भी अहम योगदान है। टोक्यो ओलंपिक में उनकी टीम ने कमाल कर दिखाया है अब सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से उनकी टीम का मुकाबला होगा।

संदीप सिंह के लिए हॉकी सिर्फ खेल नहीं, जुनून था

अगर दुनिया में देश को पहचान दिलाने का श्रेय किसी को जाता है तो वह हैं भारतीय पुरुष हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह, जो अपनी तेज ड्रैग फ्लिक के लिए मशहूर हैं। उन्होंने जनवरी 2004 में सुल्तान अजलान शाह से पर्दापर्ण किया था। भारतीय हॉकी में संदीप सिंह वो नाम हैं, जिन्होंने हॉकी को सिर्फ एक खेल नहीं माना बल्कि उसे अपना जुनून बनाया। एक हादसे के बाद मरणासन्न की अवस्था में पहुंच जाने के बाद खुद को उस स्थिति से उबारा ही नहीं बल्कि हॉकी में दमदार वापसी की। अपनी हिम्मत और जुनून की बदौलत एक से बढ़कर एक रिकॉर्ड अपने नाम किए, 2008-2009 के अजलान शाह कप में वह टॉप स्कोरर बन कर उठे। साथ ही 2010 में एशियन गेम्स में 11 गोल दागकर टॉप स्कोरर बनें। इतना ही नहीं उन्होंने 2012 के लंदन ओलंपिक के क्वालिफाइंग टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 16 गोल दागे जिनमें अकेले 5 फाइलन में किए । वर्तमान में वह हरियाणा सरकार में खेल मंत्री हैं।

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