मुश्किलों को पार कर सोनम मलिक ने ओलंपिक में बनाई जगह, देश को दिलाना चाहती हैं गोल्ड

मुश्किलों को पार कर सोनम मलिक ने ओलंपिक में बनाई जगह, देश को दिलाना चाहती हैं गोल्ड
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दांव-पेंच से विरोधी पहलवान को चित करने की तकनीक, जज्बे और जुनून के कारण सोनम मलिक को देश के लिए ओलंपिक में 62 किलोग्राम वर्ग में अपना जौहर दिखाने का मौका मिला है।

खेल। भारतीय कुश्ती (Indian Wrestling) की टीम में सोनम मलिक (Sonam Malik) सबसे युवा महिला पहलवान हैं। अपने दांव-पेंच से विरोधी पहलवान को चित करने की तकनीक, जज्बे और जुनून के कारण उन्हें देश के लिए ओलंपिक (Olympic) में 62 किलोग्राम वर्ग में अपना जौहर दिखाने का मौका मिला है।

15 अप्रैल 2002 को हरियाणा (Haryana) के सोनीपत (Sonipat) जिले के मदीना गांव (Madina village) में जन्मी सोनम में गजब की फुर्ती और ताकत है, जिसके दम पर वह अपने प्रतिद्वंदी के हौसले पस्त करती हैं। पांच बार भारत केसरी का खिताब जीतने वाली सोनम ने अपने इस सफर से पहले अपनी रोल मॉडल और रियो ओलंपिक में कांस्य पदक लाने वाली साक्षी मलिक को भी चार बार पटखनी दी है। इसी ताकत और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ती युवा पहलवान सोनम पर उसके परिजनों के साथ पूरे देश का भरोसा है कि वह देश के लिए पदक लाएंगी। वहीं सोनम के कोच अजमेर मलिक को भी उम्मीद है कि जिस प्रकार से वह तैयारी कर रहीं हैं ओलंपिक में वह जरूर कामयाब होंगी।


कम उम्र में शुरू की पहलवानी

सोनम ने महज दस साल की उम्र में ही पहलवानी शुरू कर दी थी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्पोर्ट्स अकादमी में शुरू से ही अभ्यास करती आ रही सोनम ने अकादमी के संचालक और कोच अजमेर मलिक से पहलवानी के तकनीकी गुर सीखे। वहीं उनके कोच अजमेर मलिक ने हरिभूमि से बातचीत करते हुए बताया कि सोनम मलिक का दृढ़ संकल्प और जुनून ही रहा है कि इस युवा महिला पहलवान ने वर्ष 2016 में पहली बार राष्ट्रीय स्तर की नेशनल स्कूल गेम्स में स्वर्ण हासिल कर कैरियर की शुरूआत की थी। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों कज़ाकस्तान में एशियन ओलंपिक क्वालिफिकेशन मैच में जीत हासिल कर सोनम ने ओलंपिक में जगह बनाई, लेकिन उसी दौरान उसके घुटने में चोट लग गई थी, जिस कारण पौलेंड में लगे शिविर के बजाए वह गांव के इसी स्टेडियम में चिकित्सकों की निगरानी और उनकी देखरेख में अभ्यास करके पसीना बहा रही हैं।


विरासत में मिली पहलवानी

सोनम के पिता राजेन्द्र मलिक और चचेरा भाई नेशनल स्तर के पहलवान रहे हैं। परिवार की इस विरासत को चार चांद लगाने के लिए उन्होंने ओलंपिक तक की मंजिल हासिल की। उनकी इस काबलियत को लेकर उनके गांव और परिवार में खुशी का माहौल है। इसके साथ ही सोनम को भी पूरी उम्मीद है कि वह देश, प्रदेश और अपने गांव को रोशन करेंगी।

बड़ी मुश्किलों को किया पार


कोच अजमेर बताते हैं कि सोनम के सामने एक वक्त ऐसा आया जब वर्ष 2017 में एक टूर्नामेंट के दौरान वह चोटिल हो गईं। यह चोट इतनी जबरदस्त थी कि उसका लिंब पैरालिसिस की स्थिति में पहुंच गया। ऐसी हालत में वह हाथ तक भी नहीं हिला पा रही थीं। यही नहीं उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों को भी उससे कोई उम्मीद नहीं बची थी, वहीं उनके पिता महंगा इलाज कराने की हालत में नहीं थे। यह उसकी किस्मत थी कि वह आयुर्वेदिक दवाईयों से छह महीने बाद फिर मैट पर लौट आईं।

सोनम ने कुश्ती में हासिल की कई उपलब्धियां

-2019 में कैडेट वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक

-2019 में कैडेट एशियन चैंपियनशिप में रजत पदक

-2018 में कैडेट एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक

-2018 में कैडेट वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक

-2017 में कैडेट वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक

-2017 में वर्ल्ड स्कूल गेम्स में स्वर्ण पदक

-2017 में कैडेट एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक

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