Major Dhyan Chand Birthday: मेजर ध्यानचंद बायोग्राफी इन हिंदी, सिपाही से 'हॉकी के जादूगर' बनने तक की पूरी कहानी

Major Dhyan Chand Birthday मेजर ध्यानचंद बर्थडे Dhyan Chand Biography in Hindi ध्यानचंद बायोग्राफी इन हिंदी हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले भारतीय दिग्गज मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) को हॉकी खेल इतिहास के सबसे महान हॉकी खिलाड़ियों में गिना जाता है। मेजर ध्यानचंद की बायोग्राफी (Major Dhyan Chand Biography in Hindi) की बात करें तो ध्यानचंद (Dhyan Chand) का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (Major Dhyan Chand Birthday) में हुआ था। 29 अगस्त को उनके जन्मदिन को भारत में हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day 2019) के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ध्यानचंद के हॉकी स्टिक से गेंद इस कदर चिपकी रहती कि विरोधी खिलाड़ी को अक्सर ऐसा लगता था कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं।
मेजर ध्यानचंद का शुरूआती जीवन (Major Dhyan Chand Birthday)
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (Major Dhyan Chand Birthday) में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके छोटे भाई रूप सिंह भी भारत की ओर से हॉकी खेल चुके हैं। ध्यानचंद के पिता का नाम रामेश्वर सिंह और मां का नाम शारदा सिंह था। ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हुए थे, और उन्होंने सेना के लिए हॉकी खेली थी। ध्यानचंद के दो भाई थे- मूल सिंह और रूप सिंह। आर्मी में होने के कारण ध्यानचंद के पिता का ट्रांसफर की वजह से परिवार को विभिन्न शहरों में जाना पड़ा और ध्यानचंद को स्कूली शिक्षा के छह साल बाद ही अपनी शिक्षा समाप्त करनी पड़ी।
परिवार आखिरकार झांसी, उत्तर प्रदेश में आकर शेटल हो गए। ध्यानचंद ने 1932 में विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर से ग्रेजुएशन किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि ध्यानचंद को शुरू में खेलों के प्रति कोई खास झुकाव नहीं था, हालांकि वे कुश्ती से प्यार करते थे। उन्होंने कहा कि उन्हें याद नहीं है कि उन्होंने सेना में भर्ती होने से पहले कोई खास हॉकी खेली थी, हालांकि उन्होंने कहा कि वह कभी-कभी अपने दोस्तों के साथ झांसी में खेला करते थे।
लंबे समय तक सेना से जुड़े रहे मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand Birthday)
29 अगस्त 1922 को उनके 17वें जन्मदिन पर मेजर ध्यानचांद को ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल किया गया। मेजर ध्यानचंद को अंततः भारतीय सेना टीम के लिए चुना गया जो न्यूजीलैंड दौरे के लिए थी। टीम ने इस दौरे पर शानदार प्रदर्शन करते हुए 18 मैच जीते, 2 ड्रा रहे और केवल एक मैच में हार का सामना करना पड़ा। भारत लौटकर मेजर ध्यानचांद को 1927 में लांस नायक के रूप में प्रमोट किया गया था। आखिर में मेजर ध्यानचंद 1956 में मेजर के पोस्ट से रिटायर हुए ध्यानचंद 1922 से 1956 तक सेना से जुड़े रहे।
मेजर ध्यानचंद की कुछ यादगार उपलब्धि (Major Dhyan Chand Birthday)
उनकी बायोग्राफी 'गोल' के अनुसार मेजर ध्यानचंद ने अपने 22 वर्षों में करियर में 185 मैचों में 570 गोल किए। मेजर ध्यानचंद ने 1928 एम्स्टर्डम ओलंपिक में 14 गोल किए। इस ओलंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा गोल करने का रिकॉर्ड भी बनाया था। 1932 में खेले गए ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद ने 8 गोल के साथ दूसरे सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे थे। मेजर ध्यानचंद ने टीम की अगुवाई करते हुए 1928, 1932 और 1936 में लगातार तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। ध्यानचंद जब 40 वर्ष के थे, तब भी उन्होंने 22 मैचों में 68 गोल किया था।
मेजर ध्यानचंद का करियर (Major Dhyan Chand Birthday)
मेजर ध्यानचंद को 1928 के समर ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था। भारत ने इस ओलंपिक में हॉकी का स्वर्ण पदक जीता और ध्यानचंद ने फाइनल मैच में दो गोल किए। उन्होंने 1936 के समर ओलंपिक फाइनल में भी भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व किया। लेकिन उन्हें 1936 के ओलंपिक में भाग लेने के लिए उनकी रेजिमेंट ने अनुमति देने से इनकार कर दिया था, हालांकि बाद में उन्होंने मंजूरी दे दी।
1936 के समर ओलंपिक फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया था। जर्मन सरकार द्वारा उन्हें कर्नल पद की पेशकश भी की गई हालांकि ध्यानचंद ने इसे मना कर दिया। उन्होंने 42 साल की उम्र तक खेलना जारी रखा और 1948 में हॉकी से रिटायर हुए। मेजर ध्यानचंद को 1956 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 29 अगस्त को उनके जन्मदिन को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। 3 दिसंबर 1979 को उनका निधन हो गया।
मेजर ध्यानचंद के आखिरी साल
भारतीय सेना में 34 साल की सेवा के बाद ध्यानचंद 29 अगस्त 1956 को मेजर के रूप में भारतीय सेना से रिटायर हुए। भारत सरकार ने उन्हें उसी वर्ष भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने राजस्थान के माउंट आबू में कोचिंग कैंप में पढ़ाया। बाद में उन्होंने राष्ट्रीय खेल संस्थान, पटियाला में कई वर्षों तक मुख्य हॉकी कोच की भूमिका भी निभाई। ध्यानचंद ने अपने अंतिम दिन अपने गृहनगर झांसी, उत्तर प्रदेश में बिताए।
3 दिसंबर 1979 को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में ध्यानचंद की मृत्यु हो गई। मंजूरी मिलने में कुछ शुरुआती दिक्कतों के बाद उनके गृहनगर झांसी में उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनकी रेजिमेंट पंजाब रेजिमेंट ने उन्हें पूरे सैन्य सम्मान के साथ आखिरी विदाई थी। ध्यानचंद के सम्मान में दिल्ली में स्थित नेशनल स्टेडियम को 2002 में ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम दिया गया। बता दें कि मेजर ध्यानचंद के बेटे का नाम अशोक ध्यान चंद है।
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