Earth Day 2022: अगर सहेजनी है पृथ्वी तो करें हम कुछ निवेश, आइए उतारे धरती का कर्ज

आज जिस तरह हम प्राकृतिक संपदा का दोहन कर रहे हैं, इससे हरी-भरी धरती रंगहीन होती जा रही है। यही स्थिति रही तो वो दिन दूर नहीं, जब हमें जीवन देने वाली धरती नष्ट हो जाएगी। अगर हमें पृथ्वी को बचाना है तो उस पर कुछ निवेश करना होगा। इसीलिए इस बार अर्थ डे 2022 (Earth Day 2022) की थीम 'Invest In Your Planet' रखी गई है। हमें अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे।
यह बहुत ही दुखद है कि धरती की जिस गोद में हमारा ही नहीं, हमारी पीढ़ियों का भी जीवन संवरना है, उसके रंग छीनने में हम कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कमोबेश दुनिया के हर देश, हर समाज और हर वर्ग ने धरती को सहेजने के मामले में गैर-जिम्मेदारी दिखाई है। इसके चलते जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्या पैदा हो रही है।
आज की सजगता कल का सुकून
मानवीय अहसास, फाइनेंशियल मैटर हो या रिश्ते-नाते, इंसानों के लिए यह समझना मुश्किल नहीं कि आज का इंवेस्टमेंट कल की बेहतरी से जुड़ा होता है। ऐसा निवेश आने वाले कल में हमें फायदा देता है। हमें एक सुकून भी देता है कि भविष्य की बेहतरी के लिए कुछ संजोकर रखने की कोशिश की गई है। अफसोस कि उजड़ती धरती और बिगड़ती आबोहवा की चेतावनी देते हालातों में भी हम भविष्य की चिंताओं से मुंह फेरे हुए हैं। बेरंग और शुष्क कुदरत की साज-संभाल के भावों की, नमी लौटाने की सोच ही नदारद है। ऐसे में इस वर्ष अर्थ-डे की थीम 'इंवेस्ट इन अवर प्लेनेट' वाकई इस चिंता को प्रकट करती है। इस विषय के मुताबिक पृथ्वी की बिगड़ती सेहत के प्रति अवेयरनेस लाने और धरती की पीड़ा को समझने की अनुभूतियों को जगाने का काम किया जाएगा। थीम का उद्देश्य मुख्य रूप से ओवर पॉपुलेशन, खत्म हो रही जैव-विविधता और पर्यावरण की घटती गुणवत्ता की बढ़ती चिंताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह थीम हमारे परिवेश, सेहत और परिवार को सहेजने के लिए पृथ्वी के रंग को बचाने की हर मोर्चे पर कोशिश किए जाने का संदेश लिए है।
भावी पीढ़ी की थाती
अर्थ डे को इंटरनेशनल मदर अर्थ-डे के रूप में भी जाना जाता है। मां की तरह ही धरती अपने बच्चों का ख्याल रखती है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता का स्नेह और सुविधा के लिए अपने संसाधन हम पर लुटाती रहती है। लेकिन यह दुखद बात है कि हम बच्चे जरूरत भर का लेने के बजाय धरा की झोली ही खाली करने में लगे हुए हैं। हमें जो कुछ आभार के भाव के साथ लिया जाना था, उसे छीनने का दुस्साहस करने लगे हैं। धरती के रंग सहेजने के लिए संसाधनों का सीमित इस्तेमाल करने के बजाय सुविधाजनक जीवनशैली और जरूरतों की अंतहीन फेहरिस्त को पूरा करने के लिए कुदरत के मन को ही चोट पहुंचा रहे हैं। हालांकि समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं, बढ़ती तपिश और बे-मौसम गिरते पारे के रूप में धरती अपनी नाराजगी का इशारा भी करती रहती है, लेकिन हम जानबूझकर नासमझ बने बैठे हैं। कितना तकलीफदेह है कि पृथ्वी की जो गोद भावी पीढ़ी की थाती है, उसे हद से ज्यादा दोहन करने वाली एक्टिविटीज से हम वर्तमान में ही रीता कर दे रहे हैं। सिर्फ पाने की सोच रखने वाले इंसान लौटाने का भाव भूल ही चुके हैं। कम से कम पानी, हवा, मिट्टी के कुदरती रंग बचाने और हरियाली रोपने का काम तो किया ही जाना चाहिए।
संवारना जानती है धरा
पृथ्वी अपनी पीड़ाओं का इलाज करना जानती है। कुदरत अपने घाव खुद भर लेती है। लेकिन कभी ना खत्म होने वाले इंसानी स्वार्थ के बार-बार किए जा रहे प्रहार धरती का सीना छलनी करने वाले हैं। हवा-पानी से लेकर पहाड़ और जीव-जंतुओं से लेकर जंगलों तक, अपने सुख के लिए हम प्रकृति के हर पहलू को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जबकि इस धरती की गोद से रिसते नेह की नमी पर उनका भी हक है। मारिओ स्टिंगर के मुताबिक 'ये सिर्फ हमारी दुनिया नहीं है।' सचमुच सबकी साझी ही है यह धरती। पर हम तो हवा, जमीन और पानी हर जगह मनमर्जी चला रहे हैं। बावजूद इसके पृथ्वी खुद को संवारती रहती है। मानो बच्चों की गलतियां माफ कर धरती मां सांस लेने को हवा और जीने को अन्न-जल दे रही हो। ऐसे में सरकारें और समाज बस इतनी कोशिश करें कि पर्यावरण का कोई बिगाड़ ना हो। सरोकार भरी यह सोच धरती की सुंदरता बचाने को काफी है। हम गंदगी ना फैलाएं तो नदियां खुद को साफ रखना जानती हैं। इंसानी गतिविधियां धुएं का गुबार ना छोड़ें तो हवा अपनी स्वच्छता बनाए रखना जानती है। सच तो यह है कि खुद को ही नहीं, अपने बच्चों को बचाने का काम भी कुदरत बखूबी जानती है।
सेहत से जुड़ा अहम पक्ष
धरती के रंग छीनने का मतलब खुद अपनी जिंदगी को बेरंग करने जैसा है। हम याद रखें, जिस धरा के आंचल में हमें सब कुछ मिलता है, उसकी सेहत से ही हमारी सेहत भी जुड़ी है। यही वजह है, इस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस-2022 की थीम भी 'अवर प्लेनेट, अवर हेल्थ' रखी गई थी। ये इंसानों और हमारे ग्रह यानी कि पृथ्वी को स्वस्थ रखने का अहम संदेश लिए है। यूं भी इंसान की सेहत का हर पहलू प्रकृति से जुड़ा है। पेड़-पौधों बिना कुदरत का सूना आंगन, तेज रफ्तार तरक्की के नाम पर अशुद्ध होता हवा-पानी और हमारे सहचर जीव-जंतुओं की मौजूदगी के बिना हमारा मन हो या शरीर, दोनों ही स्वस्थ नहीं रह सकते। कहते भी हैं 'धरा नहीं होगी तो सब धरा रह जाएगा', क्योंकि अच्छी सेहत के बिना इंसान के लिए भी कोई सुविधा, कोई तरक्की मायने नहीं रखती।
सार्थक कोशिशों का इंवेस्टमेंट
वर्ल्ड अर्थ-डे की जन-जागरूकता लाने वाली थीम के तहत सालभर एक्ट, इनोवेट और इंप्लीमेंट की स्ट्रेटेजी पर काम किया जाएगा। नदियों, समुद्र तटों, तालाबों, अपने आस-पड़ोस और पार्कों से कचरे और प्लास्टिक को हटाने की मुहिम चलाई जाएगी। फास्ट फैशन यानी पल-पल बदलते परिधानों के स्टाइल की जगह सस्टेनेबल फैशन के ट्रेंड को बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि कपड़े बनाने में निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो। साथ ही स्टूडेंट्स, लीडर्स और आम नागरिकों की एक जागरूक पीढ़ी भी तैयार की जाएगी, जो पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को लेकर पब्लिक अंडरस्टैंडिंग को बढ़ाने का काम करेगी। निस्संदेह, धरती को बचाने से जुड़ा ऐसा हर प्रयास आम लोगों की भागीदारी के बिना पूरा नहीं हो सकता। इसीलिए हम सब अपने आंगन को बचाने के लिए सार्थक कोशिशों का इंवेस्टमेंट जरूर करें और कल को सुरक्षित बनाएं।
लेखक- डॉ. मोनिका शर्मा
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