लोकसभा, विधानसभा और फिर लोकसभा में मिली हार के बाद पिता के नक्शेकदम पर अखिलेश यादव

लोकसभा, विधानसभा और फिर लोकसभा में मिली हार के बाद पिता के नक्शेकदम पर अखिलेश यादव
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2012 के विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्ता हासिल करने वाली सपा का उसके बाद बुरा दौर शुरू हो गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के हिस्से महज 5 सीटें आई, 2017 में प्रदेश की सत्ता भी चली गई और अब बसपा से गठबंधन करने के बावजूद करारी शिकस्त झेलनी पड़ी।

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद लगभग सभी दल इस समय अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करके हार की समीक्षा कर रहे हैं। सपा के अखिलेश यादव भी उत्तर प्रदेश में पार्टी की हार के बाद अपनी पार्टी में बड़े बदलाव की रुखरेखा तैयार कर ली है।

2012 के विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्ता हासिल करने वाली सपा का उसके बाद बुरा दौर शुरू हो गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के हिस्से महज 5 सीटें आई, 2017 में प्रदेश की सत्ता भी चली गई और अब बसपा से गठबंधन करने के बावजूद करारी शिकस्त झेलनी पड़ी।

अखिलेश यादव और उनकी पार्टी का अब पूरा फोकस 2022 का विधानसभा चुनाव है। उसके लिए अभी से तैयारी शुरू होती दिखाई दे रही है। अखिलेश यादव भी अब अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए संगठन से जुड़े जमीनी स्तर के नेताओं से सम्पर्क साध रहे हैं।

अनुमान लगाया जा रहा कि सपा का नया रूप मुलायम सिंह के दौर की तरह होगा। जहां मुस्लिम नेताओं के तौर पर आजम खान थे, कुर्मी वर्ग में बेनी प्रसाद वर्मा थे तो ब्राह्मण चेहरे के रूप में जानेश्वर मिश्र और राजपूत नेता के रूप में मोहन सिंह हुआ करते थे।

अखिलेश का युग शुरू होते ही पार्टी की इस पुरानी परंपरा को बन्द कर दिया गया। मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव दूसरी पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में सपा के ही सामने खड़े हो गए। शिवपाल कभी मुलायम सिंह के दाहिने हाथ और पार्टी के कर्ताधर्ता हुआ करते थे।

सपा के हार के बाद पार्टी में ही आवाज उठने लगी कि पार्टी ने जिनको बड़े पदों पर बिठाया है उनका जमीनी जुड़ाव है ही नहीं। और इसीकारण पार्टी को चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी अब उन नेताओं को ज्यादा तरजीह देगी जिनका अपने क्षेत्र में जमीनी जुड़ाव है।

बता दें कि सपा और बसपा के बीच हुए गठबंधन में सपा को भले फायदा नहीं हुआ पर दूसरे सहयोगी बसपा को पिछले चुनाव के मुकाबले वोट प्रतिशत कम होने के बावजूद 10 सीटें जीतने में सफल रही, पिछले चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी।

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