लोकसभा चुनाव 7वां चरण : इस बार क्या रंग दिखाएंगे 'बागी बलिया' के तेवर

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के क्षेत्र के तौर पर पहचान रखने वाले 'बागी बलिया' में इस दफा भाजपा और महागठबंधन के बीच कड़ी टक्कर होती दिख रही है। स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद मंगल पाण्डेय की धरती बलिया का मिजाज भी हमेशा से बागी रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में 'मोदी लहर' पर सवार भाजपा ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की थी। मगर मतदाताओं की खामोशी के बीच, इस बार यहां भाजपा और सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। बलिया में रविवार को सातवें चरण का मतदान होना है।
भाजपा ने इस बार बलिया से अपने मौजूदा सांसद भरत सिंह की बजाय दल के किसान मोर्चा के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह मस्त को मैदान में उतारा है। वहीं, महागठबंधन ने सनातन पांडेय को उम्मीदवार बनाया है। पहली बार कांग्रेस का कोई उम्मीदवार यहां मैदान में नहीं है। वैसे तो, मैदान में कुल 10 उम्मीदवार हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और महागठबंधन के बीच ही नजर आ रहा है। मिर्जापुर और भदोही से तीन बार सांसद रहे भाजपा उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह मस्त वर्ष 2007 में बलिया से भाजपा के टिकट पर ताल ठोक चुके हैं, लेकिन कामयाबी नहीं मिली थी।
महागठबंधन के उम्मीदवार सनातन पांडेय भी वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जिले के रसड़ा विधानसभा क्षेत्र से नाकाम कोशिश कर चुके हैं। भाजपा मोदी लहर के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में है। वहीं, महागठबंधन यादव, दलित, मुसलमान और ब्राह्मण के सामाजिक समीकरण के सहारे मैदान में है। राजनैतिक प्रेक्षकों की माने तो इस सीट पर भाजपा और महागठबंधन के उम्मीदवार के मध्य कांटे की टक्कर होने के आसार हैं। हालांकि दोनों दलों के रणनीतिकार अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।
सपा नेता मनोज यादव दलित, मुस्लिम, यादव और ब्राह्मण का एकतरफा झुकाव होने और भाजपा के सहयोगी दल सुभासपा के अलग चुनाव लड़ने का हवाला देकर गठबंधन की विशाल जीत का दावा कर रहे हैं। वहीं, भाजपा नेता विनय सिंह आशान्वित हैं कि भाजपा उम्मीदवार की प्रचंड जीत निश्चित है। वह कहते हैं कि सपा ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को टिकट से वंचित कर यह सीट भाजपा की झोली में डाल दी है। वह कहते हैं कि भाजपा को गैर यादव, अन्य पिछड़े वर्गों और सवर्णों का जोरदार समर्थन मिल रहा है।
बलिया की सियासत पर नजर रखने वाले स्थानीय पत्रकार सुधीर ओझा कहते हैं कि दोनों दल मजबूत लड़ाई लड़ रहे हैं तथा परिणाम किसी तरफ भी जा सकता है। राजा बलि की धरती रहे बलिया की लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सीट के रूप में जानी जाती रही है, हालांकि यह सीट 1977 के चुनाव के पूर्व तक कांग्रेस का अभेद्य गढ़ रही है। आजादी के बाद पहले आम चुनाव के समय से बलिया के तेवर बगावती ही हैं। वर्ष 1952 के लोकसभा चुनाव में मुरली मनोहर कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े।
कांग्रेस ने पंडित मदन मोहन मालवीय के बेटे गोविंद मालवीय को मैदान में उतारा, लेकिन मतदाताओं ने 'बागी' मुरली मनोहर को संसद पहुंचाया। उसके बाद 1957 में कांग्रेस के राधा मोहन सिंह, 1962 में कांग्रेस के मुरली मनोहर और 1967 तथा 1971 में कांग्रेस के चंद्रिका प्रसाद ने जीत हासिल की थी। युवा तुर्क के रूप में देश में सियासी पहचान बनाने वाले चंद्रशेखर वर्ष 1977 में बलिया से जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे।
इसके बाद उन्होंने वर्ष 1980 के मध्यावधि चुनाव में भी जीत हासिल की, लेकिन वर्ष 1984 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर में चंद्रशेखर कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी के हाथों चुनाव हार गए। हालांकि इसके बाद वह यहां से लगातार छह बार चुनाव जीते। बलिया से आठ बार सांसद रहे चंद्रशेखर का निधन जुलाई, 2007 में हो जाने के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे नीरज शेखर ने सपा के टिकट पर जीत हासिल की।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी नीरज को जीत मिली, मगर लोकसभा के पिछले चुनाव में नीरज को भाजपा के भरत सिंह ने हरा दिया। कुल 17 लाख 92 हजार 420 मतदाताओं वाले बलिया संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र फेफना, बलिया नगर, बैरिया और गाजीपुर जिले के जहूराबाद और मुहम्मदाबाद आते हैं। यह सभी पांचों सीट सामान्य वर्ग के लिए है तथा 4 सीट पर भाजपा तथा एक सीट पर भाजपा की सहयोगी दल सुभासपा का कब्जा है।
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