इस नवाब ने बचाई अयोध्या की ये राम धरोहर हनुमान गढ़ी

मुगल शासकों ने मुगल और अंग्रेजी शासनकाल के दौरान हिन्दुओं के कई धार्मिक स्थलों पर अवैध रूप से कब्जा करके उस जगह मस्जिदों का निर्माण करवा दिया था। जिसके चलते समय-समय पर सांप्रदायिक दंगे हुए, लेकिन इन दंगो का कोई परिणाम नहीं निकला। जिसका ज्वलंत उदाहरण है राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद। जो दशकों से यूं ही चला आ रहा है।
लेकिन कुछ मुग़ल शासक हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं की परवाह करते थे और उन्हें अपने धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने और धार्मिक अनुष्ठान करने की पूर्ण अनुमति देते थे।धर्मनिरपेक्षता को बढ़ाने और समर्थन देने की अदभुत मिसाल 1853 में नवाब वाज़िद अली शाह ने अपने एक साहसिक निर्णय से दी थी।
नवाबों के वंशज जाफर मीर अब्दुल्ला बताते हैं कि 1853 में संडीला के एक शख्स गुलाम हैदर हुसैन ने कई कट्टरपंथियों को अपने साथ मिला कर अयोध्या के मंदिर हनुमान गढ़ी पर कब्जे का ऐलान कर दिया था। इस खबर के चलते पूरी अवध नगरी में तनाव और डर का माहौल बन गया था।
जैसे ही इसकी सूचना अवध के नवाब 'वाज़िद अली शाह' को मिली, तो नवाब ने तुरंत गुलाम हैदर हुसैन को शांति प्रस्ताव भेजा और उन्हें बेहद सहज तरीके से समझाया कि वो अपना ऐलान वापिस ले लें और हनुमान गढ़ी पर कब्ज़े की ज़िद छोड़ दें। गुलाम हुसैन ने नवाब की बात मानकर अपने कदम पीछे खींच लिए।
हनुमान गढ़ी का ये विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। कुछ समय बाद ही अमेठी के मौलवी अमिर अली ने कुछ कट्टरपंथियों के साथ मिल कर दोबारा कब्ज़े का ऐलान कर दिया। इस खबर को सुन अवध में हिंसक घटनाएं शुरू हो गई। इस मसले पर बढ़ते तनावपूर्ण हालात को देखते हुए अवध के नवाब वाज़िद अली शाह ने एक कमेटी का गठन किया और 21 मौलवियों को अमिर अली को समझाने भेजा।
लेकिन वह नहीं माना,यहां तक कि उसके साथियों ने भी उसे अपना इरादा बदलने के लिए कहा पर वो नहीं समझा और अयोध्या की ओर कूच कर दिया। इस कूच के जवाब में नवाब की फ़ौज ने रुदौली के पास मौलवी अमिर अली और उसके साथियों पर हमला कर उन्हें मार गिराया।
इस घटना से साफ जाहिर होता है कि अवध के नवाब असहिष्णुता के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे। वे जानते थे हनुमान गढ़ी और सीता रसोई को तोड़कर मस्जिद बनाना जायज नहीं है।
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