राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद एमएचआरडी ने मणिपुर विश्वविद्यालय के कुलपति को जारी किया नोटिस

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने इसके लिए जरुरी प्रक्रिया का आगाज करते हुए बीते मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मंजूरी लेकर कुलपति को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है।;

Update: 2019-09-26 07:05 GMT

पहले छात्रों के उग्र विरोध-प्रदर्शन और बाद में वित्तीय और प्रशासनिक गड़बड़ियों के आरोपों के चलते मणिपुर विश्वविद्यालय के कुलपति आद्या प्रसाद पांडे की कुर्सी जा सकती है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने इसके लिए जरुरी प्रक्रिया का आगाज करते हुए बीते मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मंजूरी लेकर कुलपति को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है, जिसमें उन्हें मंत्रालय को अपना जवाब भेजने के लिए 21 दिन का समय दिया गया है।

इस साल के मध्य में नई सरकार के गठन के बाद यह दूसरा ऐसा मामला है, जिसमें किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। इससे पहले त्रिपुरा विश्वविद्यालय के कुलपति विजय कुमार दारूड़कर घुसखोरी के आरोपों के चलते अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं। इसके पूर्व में विश्वभारती, गढ़वाल और पांडिंचेरी विश्वविद्यालय के कुलपतियों को मंत्रालय की कार्रवाई के बाद पद से हटाया जा चुका है।


दो साल से कोहराम

मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि अक्टूबर 2016 में पांड़े मणिपुर विश्वविद्यालय में बतौर कुलपति नियुक्त किए गए थे। लेकिन इसके करीब दो साल बाद 2018 में पहले उनके खिलाफ छात्र जबरदस्त ढ़ंग से आक्रोशित हुए। जिसकी वजह से जून 2018 से लेकर अगस्त 2018 के बीच में विश्वविद्यालय में पढ़ाई नहीं हुई और उसके बाद कुलपति के खिलाफ वित्तीय और प्रशासनिक गड़बड़ी के कुछ गंभीर मामले निकलकर सामने आ गए। अंत में मंत्रालय ने अगस्त 2018 में कुलपति के खिलाफ जांच बिठाकर सितंबर में उन्हें निलंबित कर दिया। जांच कमेटी ने करीब सालभर के बाद अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपी। जिसपर कार्रवाई करने को लेकर राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद एमएचआरडी ने यह कारण बताओ नोटिस जारी किया है।


ये हैं मुख्य आरोप

कुलपति पर लगाए गए तमाम आरोपों में छात्रों की सबसे ज्यादा पीड़ा इस बात को लेकर थी कि वह अपने कक्ष में उन्हें बिना कड़ी जांच-पड़ताल के दाखिल नहीं होने देते थे। विश्वविद्यालय में कुलपति ने स्मार्ट क्लास लगाने के लिए लखनऊ के एक संस्थान को जिम्मेदारी देकर करीब 45 लाख रुपए अतिरिक्त खर्च किए। अक्टूबर 2016 से लेकर अगस्त 2018 तक करीब दो साल में 180 दिन वह विश्वविद्यालय में अनुपस्थित रहे। इसके अलावा एनुअल कोर्ट मीटिंग, एग्जीक्युटिव काउंसिल की बैठक से लेकर 2014 के बाद से दीक्षांत समारोह का आयोजन नहीं कराया। रजिस्ट्रार, कंट्रोलर ऑफ एग्जामिनेशन और लाइब्रेरियन जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां नहीं की गई, एलएलएम, एमए (फाइन आर्टस), एमएड जैसे नए कोर्स शुरु नहीं किए, सेंटर ऑफ म्यांमार स्टडीज एंड ह्युमन राइट्स नामक एक शोध की अवधि 1 साल से बढ़ाकर 2 साल करना मुख्य हैं।

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App 

Tags:    

Similar News