महापौर की कुर्सी हथियाने के लिए आप-भाजपा में लड़ाई, संवैधानिक संकट हुआ खड़ा: अनिल भारद्वाज

महापौर के चुनाव को लेकर इस समय दिल्ली में राजनीतिक पारा पूरे उफान पर है। कांग्रेस भी लगातार भाजपा व आप पर हमलावर रूख अपनाए हुए है।;

Update: 2023-02-08 00:48 GMT

नई दिल्ली। महापौर के चुनाव को लेकर इस समय दिल्ली में राजनीतिक पारा पूरे उफान पर है। कांग्रेस भी लगातार भाजपा व आप पर हमलावर रूख अपनाए हुए है। मंगलवार को प्रदेश कांग्रेस कम्युनिकेशन विभाग के चेयरमैन अनिल भारद्वाज ने महापौर चुनाव को लेकर दोनों दलों पर हमला बोलते हुए कहा है कि महापौर की कुर्सी हथियाने के लिए आप-भाजपा में लड़ाई हो रही है। उन्होंने प्रेसवार्ता के दौरान कहा कि महापौर चुनाव में आप व भाजपा ने लोकतांत्रिक मर्यादाओं की हत्या कर दी है। अनिल ने कहा कि महापौर चुनाव नहीं होने से संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न होने जा रही है। क्योंकि शपथ के 30 दिनों के अंदर पार्षदों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा महापौर को जमा करवाना होता है।

ऐसे में अगर 24 फरवरी से पूर्व महापौर का चुनाव नही होता है तो जाहिर है कि पार्षद अपनी संपति का ब्यौरा जमा नहीं करवा सकेगे। ऐसे में शपथ ग्रहण कर चुके सभी पार्षद स्वतः ही अयोग्य हो जाएगे। उन्होंने कहा कि अगर संशोधित डीएमसी एक्ट के तहत संवैधानिक तरीके से एल्डरमैन को मेयर चुनाव में वोटिंग का अधिकार है तो ऐसे में आम आदमी पार्टी आखिर क्यों इसका विरोध कर रही है। अगर अधिकार नहीं है तो आप पार्टी ने 26 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर के समय एल्डरमैन के वोटिंग अधिकार के विरोध में अपनी बात सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं रखी।

उन्होंने सवाल उठाया कि आखिरकार क्यों आप पार्टी ने बिना किसी कारण 4 दिन पहले ही कोर्ट से अपनी याचिका वापस ली। उन्होंने कहा कि आप- भाजपा दोनों, एक दूसरे पर पार्षदों की खरीद फरोख्त का आरोप लगा रहे है। इससे सिद्ध होता है कि दोनों दल पैसे के दम पर खरीद फरोख्त में लिप्त हैं इसलिए इनके पार्षद भी बिकने को तैयार हैं। इसका सबूत टिकट बेचने में आप पार्टी के लोगों का रंगे हाथों पकड़ना जाना भी है। भारद्वाज ने कहा कि निगम चुनावों से पूर्व जहां भाजपा और आम आदमी पार्टी ने गंदगी हटाने, कूड़े के पहाड़ों को एक महीने में हटाने का वायदा किया था, उसकी शुरुआत करना तो दूर की बात, दोनों दल कुर्सी की लड़ाई में उलझे पड़े हैं। सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि तीन प्रयासों में भी महापौर का चुनाव नहीं होना लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उलंघन है जिससे निगम में संवैधानिक संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसा संकट निगम के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ है।

Tags:    

Similar News