दिल्ली बनेगी झीलों की नगरी, द्वारका में 7 एकड़ की झील का हुआ निर्माण
इस प्रोजेक्ट के तहत रोहिणी, तिमारपुर आदि की झीलें भी जल्द तैयार हो जाएंगी। यह झील डीजेबी के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के परिसर में ही है, इसलिए इस झील में आम लोगों की एंट्री नहीं है। न ही इस झील का इस्तेमाल रिक्रिएशन प्लेस के तौर पर लोग कर सकते हैं। इस झील को भूजल स्तर बढ़ाने के मकसद से तैयार किया गया है।;
दिल्ली कुछ ही दिनों में झीलों की नगरी (Lake City) बनने वाली है। जिसको लेकर निर्माण कार्य जारी है। दिल्ली में 155 नए झीलों का निर्माण कार्य या दोबारा से पुननिर्माण किया जा रहा है। इसी क्रम में द्वारका (Dwarka) में एक और झील बनकर तैयार हो गई है। हालांकि अभी यह पानी से पूरी तरह भरी नहीं है। सेक्टर-16 में बनी यह झील सात एकड़ एरिया में फैली हुई है। दिल्ली जल बोर्ड (DJB) के अनुसार, पप्पन कलां सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से ट्रीट हो रहे पानी से इस झील को भरा जा रहा है। अब रोज 5 मिलियन ट्रीटेट पानी से बढ़ाकर इसकी मात्रा 10 मिलियन ट्रीटेड पानी कर दी गई है। डीजेबी के अनुसार, भविष्य में इन जगहों पर भूजल स्तर पर्याप्त स्तर पर पहुंचने के बाद बोरवेल से उसे निकाला जा सकता है। इन जगहों पर ट्यूबवेल लगाए जा सकते हैं।
दिल्ली जल बोर्ड उदयपुर की तर्ज पर निमार्ण कर रहा 'झीलों का शहर'
दिल्ली जल बोर्ड राजधानी को राजस्थान के उदयपुर की तर्ज पर 'झीलों का शहर' बनाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। इसके तहत पूरी दिल्ली की कई झीलों को रिवाइव करने की प्लानिंग की गई है। नई झील भी इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है। 28 हजार स्क्वायर मीटर में फैली यह नई झील करीब 2.5 करोड़ के बजट से तैयार की गई है। महज सात महीने में यह झील तैयार हो गई। डीजेबी के अनुसार, ट्रीटेट पानी को इस झील में डालने से पहले उसे दो प्राकृतिक तरीकों से फिल्टर किया जाता है।
झील में पानी की गुणवत्ता काफी अच्छी
झील में पानी की गुणवत्ता काफी अच्छी है और इस पानी में बीओडी और टोटल ससपेंडेड सॉलिड का रेश्यो काफी अच्छा है। इस प्रोजेक्ट के तहत रोहिणी, तिमारपुर आदि की झीलें भी जल्द तैयार हो जाएंगी। यह झील डीजेबी के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के परिसर में ही है, इसलिए इस झील में आम लोगों की एंट्री नहीं है। न ही इस झील का इस्तेमाल रिक्रिएशन प्लेस के तौर पर लोग कर सकते हैं। इस झील को भूजल स्तर बढ़ाने के मकसद से तैयार किया गया है। इस तरह की झील उन एरिया में तैयार की जा रही हैं, जहां भूजल स्तर 12 से 15 मीटर नीचे चला गया है।