हटके ख़बर : भीषण गर्मी के बावजूद कोरोना के कहर से खून के आंसू पीने को मजबूर हैं मटका विक्रेता

कोरोना के कहर से दुनिया में हर कोई परेशान है। इतना ही नहीं इसके कहर से छोटे-बड़े सभी कारोबार चौपट हो गए हैं। कोरोना का कहर प्रधानमंत्री के लोकल से वोकल अभियान को भी पलीता लगा रहा है। इसके कहर से तो मटके बेचने वाले तक अछूते नहीं हैं।;

Update: 2020-07-04 06:25 GMT

नई दिल्ली (केशव शर्मा): कोरोना के कहर से दुनिया में हर कोई परेशान है। इतना ही नहीं इसके कहर से छोटे-बड़े सभी कारोबार चौपट हो गए हैं। कोरोना का कहर प्रधानमंत्री के लोकल से वोकल अभियान को भी पलीता लगा रहा है। इसके कहर से तो मटके बेचने वाले तक अछूते नहीं हैं। 

लॉकडाउन के बाद जहां लोग दिल्ली से अपने-अपने प्रदेशों के लिए पलायन कर गए हैं। वहीं दिल्ली के कई क्षेत्रों में अब लोग कम ही दिखाई देने लगे है। जिसका प्रभाव यह है कि दिल्ली में गरीबों का फ्रीज कहे जाने वाला मटका अब मटका बेचने वालों के लिए खुद खून के आंसू पीला रही है। जबकि देश के अधिकांश प्रदेशों के साथ समस्त उत्तर भारत में इस समय भीषण गर्मी पड़ रही है। इस सबके बावजूद मटका के खरीदने वाले लोग मटका विक्रेताओं के पास नहीं पहुंच रहे हैं। 

मटका विक्रेता जहां इस सीजन में अपने पूरे साल भर की गुजर वसर के लिए पैसे कमा लेते थे, वहीं अब उन्हें अपनी मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है। इन लोगों की भूखे रहने तक की नौबत आ गई है। 

इस संदर्भ में मोती नगर मेट्रो स्टेशन के पास 20 साल से लगातार मटका बेच रहे राजपाल सिंह ने बताया कि उनके जीवन में ऐसा समय कभी नहीं आया। राजपाल ने बताया कि पहले गर्मी के सीजन में मटकों की काफी डिमांड रहती थी लेकिन अब कई-कई दिन तक हमारे पास कोई ग्राहक नहीं आता। कोरोना के डर से लोग खरीदना तो दूर, मटका छूना तक पसंद नहीं कर रहे हैं।

वहीं बसईदारापुर में लगभग 30 वर्ष से मटके बेच रहीं राममूर्ति ने बताया कि मेरा सारा जीवन यहीं मटके बेचते हुए निकल गया। खाने के लिए गेहूं-चावल तो राशन की दुकान से मिल जाता है, लेकिन इस समय अन्य जरुरतों के लिए पैसे का जुगाड़ नहीं हो पाता। बेचने के लिए जो मटके मंगाए थे सारे के सारे वैसे ही रखे हैं जैसे आए थे।

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