गीता चतुर्वेदी का लेख : ‘मोदी की गारंटी’ की जीत
भाजपा की तीन राज्यों में जीत के पीछे भले ही उसके सामूहिक नेतृत्व की मेहनत का नतीजा हो, लेकिन मध्य प्रदेश की जीत के सेहरे के हकदार एक हद तक शिवराज भी हैं। रही बात छत्तीसगढ़ की जीत की, तो निश्चित तौर पर इसके लिए पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व कहीं ज्यादा जिम्मेदार है।;
भाजपा की तीन राज्यों में जीत के पीछे भले ही उसके सामूहिक नेतृत्व की मेहनत का नतीजा हो, लेकिन मध्य प्रदेश की जीत के सेहरे के हकदार एक हद तक शिवराज भी हैं। रही बात छत्तीसगढ़ की जीत की, तो निश्चित तौर पर इसके लिए पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व कहीं ज्यादा जिम्मेदार है। राजस्थान की राजनीति की चूंकि तीस सालों से रवायत है कि एक बार कांग्रेस तो अगली बार भाजपा, इसलिए वहां की जीत को इस चश्मे से भी देखा जाएगा, लेकिन मध्य प्रदेश की जीत को अलग तरह से भी देखना होगा। फिलहाल जनता को सलाम किया जाना चाहिए, जिसने अपने तरीके से लोकतंत्र पर भरोसा जताया है।
संसदीय लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया में चाहे जीत हो या हार, सैद्धांतिक रूप से भले ही व्यक्ति केंद्रित नहीं हो, लेकिन व्यावहारिक रूप से वह कहीं न कहीं व्यक्ति केंद्रित होती ही है। भाजपा की तीन राज्यों में जीत के पीछे भले ही उसके सामूहिक नेतृत्व की मेहनत का नतीजा हो, लेकिन मध्य प्रदेश की जीत के सेहरे के हकदार एक हद तक शिवराज भी हैं। रही बात छत्तीसगढ़ की जीत की, तो निश्चित तौर पर इसके लिए पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व कहीं ज्यादा जिम्मेदार है। राजस्थान की राजनीति की चूंकि तीस सालों से रवायत है कि एक बार कांग्रेस तो अगली बार भाजपा, इसलिए वहां की जीत को इस चश्मे से भी देखा जाएगा, लेकिन मध्य प्रदेश की जीत को अलग तरह से भी देखना होगा।
बीते दस जून को मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में जब शिवराज सिंह चौहान ने 23 साल से ज्यादा उम्र वाली महिलाओं की मदद के लिए लाड़ली बहना योजना शुरू की। उसके ठीक अगले ही दिन कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी की उसी जबलपुर में रैली थी। तब प्रियंका की रैली को लेकर जो उत्साह नजर आ रहा था, वैसा उत्साह लाड़ली बहना योजना को लेकर नहीं नजर आया। तब लाड़ली बहना योजना के लाॅन्चिंग के मौके पर हुई रैली में आई महिलाओं में भी दिल से शिवराज सरकार को लेकर उत्साह नजर नहीं आ रहा था। यहां तक कि वहां उपस्थित पत्रकार भी कुछ उदासीन नजर आ रहे थे, लेकिन जैसे ही यह योजना लागू हुई, महिलाओं के खाते में प्रति माह एक हजार रुपये का ट्रांजेक्शन होने लगा, शिवराज और भाजपा को लेकर स्थितियां बदलनी शुरू हुईं। मुफ्तिया रेवड़ी के साइड इफेक्ट को समझते हुए भी शिवराज ने इस योजना पर शिद्दत से काम जारी रखा। सितंबर महीने से इस योजना के तहत मिलने वाली रकम को हजार रुपये प्रति महीने से बढ़ाकर 1250 कर दिया। इसका असर चुनाव नतीजों पर दिख रहा है। भाजपा पिछली बार के 109 सीटों से कहीं ज्यादा आंकड़ा पार करके मध्य प्रदेश की राजनीति में नया इतिहास रच चुकी है।
इस नए इतिहास के रचयिता के रूप में कहीं न कहीं शिवराज की लाड़ली बहना योजना को देखना ही पड़ेगा। यह पहला मौका नहीं है, जब शिवराज ने ऐसी कोई योजना चलाई। साल 2008 के आम चुनावों के ठीक पहले उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना शुरू की, जिसके तहत पैदा होने वाली लड़कियों के पैदा होने से लेकर उनकी पढ़ाई-लिखाई, साइकिल और शादी के खर्च तो सरकार ने उठाए ही, दहेज में 51 हजार रुपये दिए गए। इसका असर उस चुनाव में बीजेपी को जीत के रूप में दिखा। साल 2013 के विधानसभा चुनावों के पहले शिवराज ने तीर्थ दर्शन योजना चलाई। इसके तहत राज्य के बुजुर्गों को रेलगाड़ियों के जरिये तीर्थयात्रा कराई गई। इसका असर 2013 के विधानसभा चुनावों में दिखा। यहां याद कर लेना चाहिए कि ये योजनाएं उनके विश्वस्त और लेखक के रूप में विख्यात प्रशासनिक अधिकारी मनोज श्रीवास्तव के दिमाग की उपज थी। इन योजनाओं को बाद में तमाम राज्य सरकारों ने अपनाया। दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने जहां लाड़ली लक्ष्मी योजना को अपनाया तो केजरीवाल सरकार हर साल बुजुर्गों को तीर्थयात्रा करा रही है। लाड़ली लक्ष्मी योजना के बारे में शिवराज कह चुके हैं कि उन्हें इसका सपना आया और इसे वे लागू कर रहे हैं।
वैसे 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को कांग्रेस से 48 हजार 27 वोट ज्यादा मिले थे, लेकिन उसकी सीटें कांग्रेस से पांच कम रह गई थीं। इन संदर्भों में देखें तो तब की हार भी व्यावहारिक रूप से हार भले ही हो, सैद्धांतिक रूप से हार नहीं थी। इस लिहाज से देखें तो शिवराज भारतीय राजनीति के बड़े चेहरे के रूप में उभरते हैं। शिवराज के बारे में यह बात फैलाई गई थी कि उनका चेहरा देखकर मध्य प्रदेश के लोग उब गए हैं, लेकिन नतीजे कुछ और ही बता रहे हैं। राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है। करीब 52 फीसदी वोटर महिलाएं हैं। इसी तरह राज्य में प्रति सीट करीब पौने दस हजार नए वोटर बने हैं। कह सकते हैं कि कांग्रेस की गारंटियां इन वोटरों को आकर्षित नहीं कर पाईं और शिवराज कहीं ज्यादा आगे रहे। कांग्रेस कुछ ज्यादा उत्साह में रही और अति उत्साह उसे ले डूबा।
मध्य प्रदेश की ही कोख से निकले राज्य छत्तीसगढ़ के बारे में किसी भी एक्जिट पोल ने यह उम्मीद नहीं जताई थी कि वहां कांग्रेस की जीत होगी, लेकिन वहां भी भारतीय जनता पार्टी ने नया इतिहास रच दिया। और तो और, छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता भी मध्य प्रदेश की तरह ज्यादा उत्साह में थे, जबकि भाजपा में तो उत्साह दिख भी नहीं रहा था। चार साल तक तो यहां का स्थानीय भाजपा नेतृत्व लगातार हताश और निरूत्साहित नजर आया। मोदी-शाह की जोड़ी और संघ विचार परिवार के संगठनों ने मिलकर बाजी पलट अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में लगातार दौरे किए। ओम माथुर ने हर सीट पर काम किया और नतीजा सामने है। छत्तीसगढ़ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस का एटीएम कहा था। अब कांग्रेस का यह एटीएम उससे छिन चुका है। इसमें किंचित योगदान अमित जोगी की अगुवाई वाली छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का भी है, जिसने कांग्रेस के किले में बीजेपी को सेंध लगाने में मदद दी। छतीसगढ़ की जीत निश्चित तौर पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व, उसकी रणनीति और संगठन की है।
राजस्थान में भाजपा रवायत के मुताबिक सत्ता छीनने में कामयाब भले ही हुई हो, लेकिन यह भी सच है कि भाजपा की आपसी खींचतान की वजह से यह जीत आसान नहीं दिख रही थी। हाल के दिनों में जिस तरह मीडिया के एक वर्ग ने अशोक गहलोत के बारे में हवा फैलाने में मदद दी थी, उससे राष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश गया कि गहलोत अजेय हैं। हालांकि गहलोत इतने मजबूत हो चुके थे कि वे अपने आलाकमान को ठेंगे पर रखने लगे थे। उन्होंने कांग्रेस आलाकमान की मर्जी के विपरीत जाकर ना तो मुख्यमंत्री पद छोड़ा, न अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा। इतना ही नहीं, आलाकमान की आंख की किरकिरी बने शांति धारीवाल को जबरदस्ती टिकट दिलाया। इससे राहुल गांधी नाराज भी रहे। वे राज्य में महज चार घंटे के लिए चुनाव प्रचार करने पहुंचे और तीन ही रैलियां कीं। भाजपा ने इस बीच वसुंधरा को आगे किया, सामूहिक भाव के साथ मैदान में उतरी और इतिहास बदलकर रख दिया।
विंध्य पर्वत के उत्तर में स्थित हिंदीभाषी तीन राज्यों में भाजपा की जीत से उसका उत्साह बढ़ेगा। उसका मनोबल भी बढ़ेगा, जिसके जरिये वह लोकसभा चुनावों में आगे आने के लिए पुरजोर ताकत झोंकेगी। कांग्रेस भले ही तेलंगाना जीत रही हो, लेकिन विपक्षी गठबंधन में उसकी स्वीकार्यता में दरार बढ़ेगी। फिलहाल जनता को सलाम किया जाना चाहिए, जिसने अपने तरीके से लोकतंत्र पर भरोसा जताया है।
गीता चतुर्वेदी (लेखिका राजनितिक विश्लेषक हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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