डॉ. एलएस यादव का लेख : समंदर में 'शेर' बन रहा भारत
आईएनएस विक्रमादित्य के बाद स्वदेशी आईएनएस विक्रांत के नौसेना बेड़े में शामिल होने से समंदर में भारत और मजबूत हुआ है। भारत ने स्वदेशी आईएनएस विक्रांत बना कर दुनिया में अपनी सैन्य शक्ति को और मजबूत कर लिया है। अब भारत अपनी नौसैन्य शक्ति में बादशाहत कायम करने के लिए आईएनएस विक्रांत से 45 फीसदी बड़ा युद्धपोत आईएनएस विशाल बनाने जा रहा है। भारत का यह तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर होगा। आईएनएस विशाल के 2030 तक बनकर तैयार होने की संभावना है, यह भी स्वदेशी होगा। विक्रांत विश्व क्षितिज पर भारत के बुलन्द होते हौसलों की हुंकार है। यह पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत ही नहीं बल्कि समंदर पर तैरता हुआ एक किला है।;
डॉ. एलएस यादव
समंदर में भारत महाशक्ति बनने की राह पर है। आईएनएस विक्रमादित्य के बाद स्वदेशी आईएनएस विक्रांत के नौसेना बेड़े में शामिल होने से समंदर में भारत और मजबूत हुआ है। अभी अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन आदि देश हैं, जिनके पास समंदर में निगहबानी व सुरक्षा के लिए उच्च स्तरीय युद्धपोत है। अब भारत भी इस श्रेणी में शुमार हो गया है। भारत ने स्वदेशी आईएनएस विक्रांत बना कर दुनिया में अपनी सैन्य शक्ति को और मजबूत कर लिया है। अभी सबसे अधिक 11 युद्धपोत अमेरिका के पास है। चीन के पास तीन युद्धपोत है, विक्रांत के आने से भारत के पास दो हो गए हैं। अब भारत अपनी नौसैन्य शक्ति में बादशाहत कायम करने के लिए आईएनएस विक्रांत से 45 फीसदी बड़ा युद्धपोत आईएनएस विशाल बनाने जा रहा है। भारत का यह तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर होगा। हिंद महासागर में चीन की नेवी के बढ़ते दखल से निपटने के लिए केवल विक्रमादित्य व विक्रांत से काम नहीं चलेगा, और भी युद्धपोत चाहिए। अच्छी बात है कि विक्रांत स्वदेशी बना है, इसलिए तीसरे विशाल बनाने में तकनीकी परेशानी नहीं होगी। आईएनएस विशाल के 65 हजार टन वजनी होने की उम्मीद है, विक्रमादित्य और विक्रांत का वजन 45 हजार टन के आसपास है। विशाल पर 55 फाइटर प्लेन तैनात हो सकेंगे, विक्रमादित्य पर 35 और विक्रांत पर 30 फाइटर प्लेन तैनात हो सकते हैं। विक्रमादित्य को रूसी प्लेटफॉर्म पर तैयार किया गया था। विक्रांत स्वदेशी है, इसे कोचीन शिपयार्ड ने बनाया है। आईएनएस विशाल के 2030 तक बनकर तैयार होने की संभावना है, यह भी स्वदेशी होगा, पर इसमें लेटेस्ट अमेरिकन तकनीक का इस्तेमाल हो सकता है। पर अभी बात नए आईएनएस विक्रांत की।
गत दो सितम्बर को स्वदेश निर्मित भारत के पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रान्त को देश सेवा के लिए समर्पित किया गया। इसे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने बनाया है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि केरल के समुद्री तट पर पूरा भारत एक नए भविष्य के सूर्योदय का साक्षी बन रहा है। यह विश्व क्षितिज पर भारत के बुलन्द होते हौसलों की हुंकार है। यह पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत ही नहीं बल्कि समंदर पर तैरता हुआ एक किला है। इसका डिजाइन और निर्माण सब कुछ भारत में ही किया गया है। इसमें जितनी बिजली पैदा होगी उससे 5000 घरों को रोशन किया जा सकता है। इसका फलाइंग डेक भी फुटबाल के दो मैदानों से भी बड़ा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के मुताबिक, 1971 की लड़ाई में अपनी शानदार भूमिका निभाने वाले आईएनएस विक्रांत का यह नया अवतार है। भारतीय नौसेना ने अपनी सभी शाखाओं को महिलाओं के लिए खोलने का निर्णय लिया है। इस तरह विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रान्त जब सामुद्रिक सुरक्षा के लिए उतरेगा तब भारतीय नौसेना की महिला सेनानी भी इस पर तैनात मिलेंगी। इस तरह समुद्र की अथाह शक्ति के साथ पूरी महिला नौसैन्य शक्ति नए भारत की बुलन्द पहचान बनेगी।
अंग्रेजों की गुलामी के प्रतीक ध्वज को हटाकर भारतीय नौसेना अपना नया ध्चज भी अपनाया है। अब छत्रपति शिवाजी से प्रेरित, नौसेना का नया ध्वज समुद्र व आसमान में लहराएगा। भारतीय नौसेना ने नया निशान भी अपनाया है। गुलामी के प्रतीक लाल क्रास को हटा दिया गया है। उपर बाईं तरफ तिरंगा बना हुआ है और बगल में नीले रंग के बैकग्राउंड पर गोल्डन कलर में अषोक चिन्ह बना हुआ है जिसके नीचे सत्यमेव जयते लिखा हुआ है। इस उपलब्धि के बाद भारतीय नौसेना दुनिया की शीर्ष तीन नौसेनाओं में से एक बन गई है। स्वदेशी विमानवाहक पोत का निर्माण आत्मनिर्भर भारत अभियान की एक विशेष मिसाल है। इसने नौसैन्य बल का एक नया समुद्री इतिहास बना दिया गया है।
स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रान्त के निर्माण की शुरूआत 28 फरवरी 2009 को कोच्चि के कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में की गई थी। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे 12 अगस्त 2013 को लॉन्च किया गया। इसके बाद दिसम्बर 2020 में इसका बेसिन ट्रायल किया गया, जिसमें यह पूरी तरह से खरा उतरा। सामुद्रिक परीक्षणों के लिए इसे 4 अगस्त 2021 को समुद्र की लहरों पर उतारा गया था, जो इसके परीक्षण का पहला चरण था। परीक्षण का दूसरा चरण अक्टूबर 2021 और तीसरा चरण 22 जनवरी 2022 को पूरा हुआ। इसका अंतिम और चौथा समुद्री परीक्षण मई 2022 में शुरू किया गया जो 10 जुलाई 2022 को पूरा हुआ। चौथे परीक्षण में समुद्र के करीब और दूरी पर रक्षा संबंधी उपकरणों के साथ इसकी रणनीतिक क्षमता को नौसेना द्वारा व्यापक रुप से जांचा-परखा गया। आईएनएस विक्रांत के नौसेना में शामिल होने बाद देश की रक्षा ताकत में अभूतपूर्व क्षमताएं जुड़ जाएंगी और समुद्री क्षेत्र में भारत के हितों को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी।
आईएनएस विक्रान्त भारत का पहला स्टेट-ऑफ-द-आर्ट विमानवाहक पोत है। इस युद्धपोत को बनानें में तकरीबन 23000 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसके कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम को टाटा पावर स्ट्रैटेजिक इंजीनियर डिवीजन नें रूस की वैपन एंड इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियरिंग और मार्स के साथ मिलकर बनाया है। इसे बनाने में कोचीन शिपयार्ड के साथ-साथ 550 भारतीय कंपनियों ने मदद की है। इसके अलावा इसके निर्माण में 100 एमएसएमई कंपनियां भी शामिल थीं। इस युद्धपोत के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग कंपनियों ने बनाया है। यह मेक इन इंडिया का एक बेहतरीन उदाहरण है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एक प्लान बनाकर हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को दिया, जिसके तहत एक ट्विन इंजन डेक बेस्ड हल्के फाइटर विकसित कर रहा है। तब तक के लिए इस पर मिग-29 श्रेणी के लड़ाकू विमानों को तैनात किया जाएगा।
विमानवाहक पोत विक्रांत की फ्लाइट डेक काफी बड़ी अर्थात 1.10 लाख वर्ग फुट एरिया वाली है जिस पर से बड़ी संख्या में लड़ाकू विमान आराम से टेक-ऑफ व लैंडिंग कर सकते हैं। इस पर एक बार में 36 से लेकर 40 की संख्या में लड़ाकू विमान तैनात किए जा सकते हैं। इस पर 26 मिग-29 के और 10 लड़ाकू विमानों में कामोव केए-31, वेस्टलैण्ड सी किंग या बहुउद्देश्यीय भूमिका वाले ध्रुव हेलीकॉप्टर तैनात किए जा सकते हैं। इस विमानवाहक पोत की स्ट्राइक फोर्स की रेंज 1500 किलोमीटर तक की है। इस पर जमीन से हवा में मार करने में सक्षम 64 बराक मिसाइलें लगी होंगी। यह काफी ताकत वाला विमानवाहक पोत है। यह 52 किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से समुद्र की लहरों को चीरता हुआ तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता रखता है। समुद्र में निकलने पर यह एक बार में 15000 किलोमीटर की यात्रा कर सकता है। इन खूबियों वाला यह पोत हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर भारतीय नौसेना की ताकत काफी बढ़ा देगा।
( लेखक डॉ. एलएस यादव, सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक रहे हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )