प्रभात कुमार रॉय का लेख : वैश्विक संकटों का हल संभव

भारत की पहल पर वैश्विक भौगोलिक पटल पर दक्षिण के एक सौ पच्चीस राष्ट्रों का वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के नाम के साथ एक साझा संगठन विगत वर्ष अस्तित्व में आया। सर्वविदित है कि ग्लोबल साउथ के इन राष्ट्रों को विश्व के समक्ष मौजूद प्रबल चुनौतियों का अब एकजुट होकर मुकाबला करना है। भारत की मेजबानी में वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के द्वितीय शिखर सम्मेलन का आयोजित हुआ। वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ शिखर सम्मेलन मंे नरेंद्र मोदी की तक़रीर यह उम्मीद प्रस्तुत करती है कि निरंतर गति से तेज होते जाते इन वैश्विक संकटों का समुचित निदान मुमकिन है। संगठन की कोशिशों से नई विश्व व्यवस्था की बुनियाद रखी जा सकती है।;

Update: 2023-11-24 08:29 GMT

दुनिया के पटल पर दक्षिण में विद्यमान विकासशील राष्ट्र सदियों से साम्राज्यवादी आधिपत्य के कारणवश शोषित, उत्पीड़ित और गरीब रहे । भारत की पहल पर वैश्विक भौगोलिक पटल पर दक्षिण के एक सौ पच्चीस राष्ट्रों का वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के नाम के साथ एक साझा संगठन विगत वर्ष अस्तित्व में आया। सर्वविदित है कि ग्लोबल साउथ के इन राष्ट्रों को विश्व के समक्ष मौजूद प्रबल चुनौतियों का अब एकजुट होकर मुकाबला करना है। प्रस्तुत चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए भारत द्वारा 12-13 जनवरी 2023 को वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के प्रथम शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया था। शुक्रवार 17 नवंबर को भारत की मेजबानी में वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के द्वितीय शिखर सम्मेलन का आयोजित हुआ। वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ शिखर सम्मेलन का आगाज करते हुए नरेंद्र मोदी की तक़रीर यह उम्मीद प्रस्तुत करती है कि निरंतर गति से तेज होते जाते इन वैश्विक संकटों का समुचित निदान मुमकिन है। वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ की सहयोग पूर्ण कोशिशों से एक नई विश्व व्यवस्था की बुनियाद रखी जा सकती है। नरेंद्र मोदी ने फरमाया कि भौगोलिक तौर पर दक्षिण की दुनिया सदैव विद्यमान रही, किंतु वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के संगठन से दक्षिण दुनिया के विकासशील राष्ट्रों की आवाज विश्व पटल पर बुलंद हुई है। इस बुलंद हुई आवाज में दक्षिण दुनिया के देशों की एकजुटता प्रकट हुई और उनके मक़सद की एकता भी प्रकट हुई है। द्वितीय शिखर सम्मेलन से भारत का यह यकीन और पुख्ता हुआ है कि मुखतलिफ नजरियों और प्राथमिकताओं को साझा करने की खातिर एकजुट हुआ जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सेंटर ऑफ एक्सीलेंस संस्थान स्थापित करने की पहल अंजाम दी गई, जिसका अनावरण इस शिखर सम्मेलन में किया गया। डेवलपमेंट एंड नॉलेज शेयरिंग इनिशिएटिव संस्थान स्थापित करने की पहल भी की गई है। इस शिखर सम्मेलन में वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के राष्ट्रों के साथ भारत की अध्यक्षता में संपन्न हुए जी-20 सम्मेलन की उपलब्धियों को भी साझा किया गया।

उल्लेखनीय है कि में वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ फोरम में विश्व के करीब 125 राष्ट्र शामिल हैं। विगत शिखर सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन को ग्लोबल साऊथ फोरम का 21वां सदस्य बनाया गया। भारत की अध्यक्षता में अफ्रीकन यूनियन को जी-20 का सदस्य बनाए जाने से अफ्रीका में चीन के निरंतर बढ़ते हुए प्रभाव से कामयाबी के साथ निपटा जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि अफ्रीकन यूनियन में अफ्रीका महाद्वीप के 55 देश शामिल हैं। वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ का मक़सद वस्तुतः वैश्विक दक्षिण के देशों को एकजुट करना है, ताकि ये देश अपनी विकट चुनौतियों से मिलकर बाकायदा निपट सके। अफ्रीकन देशों के साथ ही एशिया प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रों ने भी वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के प्रयासों की प्रशंसा की है। एशिया प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रों के वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ राष्ट्रों के साथ निकट ताल्लुकात स्थापित हो सकेंगे। एशिया प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर में चीन के विकट विस्तारवाद को एकजुट होकर कड़ी चुनौती पेश की जा सकेगी। विश्वव्यापी संकटों से जूझने के लिए गहन विमर्श किया गया, जिसमें अनेक प्रकार की महामारियां, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक आतंकवाद, यूक्रेन-रूस जंग, इजराइल-हमास जंग, विश्व पटल पर खाद्य सामग्री और ईंधन का निरंतर बढ़ता हुआ संकट है। विश्व पटल पर विशेषकर गरीब और विकासशील देशों पर ये संकटपूर्ण चुनौतियों कहीं अधिक विनाशकारी बनकर कहर ढाती रही है। यकीनन दुनिया आर्थिक विकास पर आधारित जटिल मुद्दों पर प्रायः विभाजित बनी रही है। एक तरफ दुनिया के विराट पटल पर ग्लोबल नॉर्थ के राष्ट्र हैं, जो वस्तुतः अत्यंत विकसित और परिष्कृत औद्योगिक अर्थव्यवस्था द्वारा अनुप्राणित हैं। दूसरी तरफ ग्लोबल साउथ के अल्प विकसित राष्ट्र हैं, जो विकासशील हैं। ग्लोबल साउथ के ये सभी राष्ट्र मुख्यतः लातिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया के राष्ट्र हैं। एशिया में जापान और चीन अपवाद स्वरूप ऐसे राष्ट्र हैं जो ग्लोबल नॉर्थ के देशों की तरह से ही विकसित राष्ट्र हैं।

भारत द्वारा ग्लोबल साउथ के विकासशील राष्ट्रों को एक संगठन के तौर पर एकजुट करने की कोशिश वस्तुतः विश्व पटल पर एक अनूठी पहल है। इससे मानव केंद्रित विकास के लिए शानदार जमीन तैयार हो जाएगी। ग्लोबल साउथ के एकजुट हो जाने से नव-साम्राज्यवादी देशों की फितरत और चीन के विस्तारवाद की कड़ी चुनौतियों का कामयाबी के साथ सामना करना संभव हो जाएगा। वैश्विक दक्षिण राष्ट्रों द्वारा भारत के वैचारिक नज़रिये को व्यापक तौर पर बाकायदा स्वीकार किया गया है। वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ शिखर सम्मेलन में कुल मिलाकर 125 देशों ने शिरकत की, जिनमें लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के 29 देश, अफ्रीका के 47 देश, यूरोप के 7 देश, एशिया के 31 देश और ओशिनिया के 11 देश शामिल हुए। सम्मेलन में बांग्लादेश, कंबोडिया, गुयाना, मोजाम्बिक, मंगोलिया, पापुआ न्यू गिनी, सेनेगल, थाईलैंड, उज्बेकिस्तान और वियतनाम के नेताअों ने हिस्सा लिया। कुल दस में से आठ मंत्री-स्तरीय विषयगत सत्र हुए, जिनमें वित्त, व्यापार, पर्यावरण, ऊर्जा, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दे शामिल रहे।

द्वितीय शिखर सम्मेलन में विचार-विमर्श शानदार रहा और प्राथमिकताएं स्पष्ट तौर पर सामने आई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि यह एक नई न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था का मक़सद हासिल करने की दिशा में सार्थक कोशिश है। एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य की वसुधैव कुटुंबकम की भारतीय अवधारणा के तहत वस्तुतः विश्व पटल पर भारत निरंतर आगे बढ़ रहा है। वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ शिखर सम्मेलन का ठोस परिणाम होगा कि ग्लोबल साऊथ को अंतरराष्ट्रीय मसअलों पर प्रभावशाली और निर्णायक भूमिका निभाने का अवसर हासिल हो जाएगा।

भारत कदापि नहीं चाहता है कि आधुनिक तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वैश्विक दूरियों को और विस्तारित कर दें। कोल्ड वॉर के नए दौर में जबकि दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी है। यूक्रेन-रूस युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ कि इजराइल बनाम हमास जंगी मोर्चा और खुल गया है। ऐसे विकट दौर में भारत ने अमन शांति के अग्रदूत का किरदार निभाया है। जी-20 और वॉयस ऑफ ग्लोबल साऊथ के विराट वैश्विक पटल से भारत ने अनेक दफा दोहराया है कि आज का दौर युद्धों का नहीं है, वरन वैश्विक तौर पर शांतिपूर्ण विकास का दौर है। भारत ने ऐतिहासिक तौर पर गुट निरपेक्ष आंदोलन के अग्रणी नेता के तौर विश्वयुद्ध के कगार पर पहुंच गए स्वेज नहर संकट और क्यूबा संकट का शांतिपूर्ण निदान करने में अहम किरदार निभाया था। नए दौर में गुट निरपेक्ष आंदोलन की नैतिक शक्ति तो विद्यमान नहीं है, किंतु भारत की प्रबल नैतिक शक्ति अस्तित्व में है, जो विश्व शांति के लिए अत्यंत सक्रिय भूमिका में है।

 (लेखक - प्रभात कुमार रॉय विदेश मामलों के जानकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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