शंभू भद्रा का विश्लेषण : वैश्विक एजेंडे पर आगे बढ़ें हम

बहुध्रुवीय विश्व में दुनिया ग्लोबल नॉर्थ व ग्लोबल साउथ में बंटी हुई है। 'ग्लोबल नॉर्थ' से तात्पर्य मोटे तौर पर उत्तर अमेरिका व यूरोप महादेश के देशों से है, जबकि 'ग्लोबल साउथ' के अन्तर्गत एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश शामिल हैं।;

Update: 2023-01-15 09:27 GMT

भारत की अर्थव्यवस्था जैसे-जैसे मजबूत हुई है, वैश्विक जियो पॉलिटिकल और जियो इकोनॉमिकल क्षेत्र में देश की भूमिका भी बढ़ी है। आज, दुनिया का रोडमैप तैयार करने के वैश्विक नियमों को सक्रिय रूप से प्रभावित करने में भारत की भूमिका बढ़ गई है। भारत का मॉडल इस मामले में अद्वितीय है और ग्लोबल साउथ के देशों का मार्गदर्शन करने में वर्तमान में सबसे बेहतर और सुसंगत है। ग्लोबल साउथ, भारत की वर्तमान जी-20 अध्यक्षता का एक अहम बिन्दु है। जिसके अंतर्गत भारत ग्लोबल साउथ के मुद्दों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का लगातार प्रयास कर रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 77वें सत्र में भारत के दृष्टिकोण को जबरदस्त तर्कों से वैश्विक पटल पर रखा जिसका शीर्षक ‘ए वाटरशेड मोमेंट: ट्रांसफॉर्मेटिव सॉल्यूशंस टू इंटरलॉकिंग चैलेंजेस था,उन्होंने इस बात को चिन्हित किया कि “समकालीन वैश्विक राजनीति की संरचनात्मक वास्तविकताओं ने बहुपक्षीय व्यवस्था के किसी भी गंभीर सुधार को बेहद कठिन कार्य बना दिया है। विभिन्न शक्तियों के बीच की कटुता तेज हो रही है और इस शक्ति प्रतियोगिता के शोर में सबसे गरीब, सबसे कमजोर राष्ट्रों की आवाज तेजी से खो रही है। इसलिए, नई दिल्ली की प्रतिक्रिया ग्लोबल साउथ के लिए अपनी प्रतिबद्धता के साथ-साथ दुनिया भर में काफी सद्भावना के साथ एक शक्ति के रूप में भारत के आगमन की मान्यता के रूप में सामने आई है।

दुनिया के सभी अल्पविकसित और विकासशील देशों की आवाज के रूप में भारत ग्लोबल साउथ सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। ग्लोबल साउथ समिट में आर्थिक विकास, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा और ट्रेड के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई है, यूक्रेन संकट, ऊर्जा व खाद्य संकट तथा जलवायु परिवर्तन जैसे अहम मुद्दों पर भी ग्लोबल साउथ समिट में विमर्श हुआ है। भले ही बड़ी आबादी ग्लोबल साउथ के देशों में रहती हो, लेकिन दुनिया का एजेंडा आसमान रूप से अमेरिका व यूरोप वाले ग्लोबल नॉर्थ निर्धारित करता रहा है। इस ग्लोबल एजेंडे में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े देशों की आवाज आज तक नहीं पहुंच पाई है। ग्लोबल साउथ की बुलंद आवाज बन कर भारत इस काम को बखूबी कर सकता है। चीन की दिलचस्पी कम है, दूसरा, ग्लोबल साउथ के अधिकांश देशों का भारत पर भरोसा अधिक है, इसलिए भारत के पास एतिहासहिक अवसर है। इस ग्लोबल साउथ सम्मेलन के जरिए भारत ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि वो सिर्फ अपने बारे में नहीं बल्कि सबके बारे के बारे में सोच रहा है। हालिया वर्षों में भारत एक बड़ा वैश्विक खिलाड़ी बनकर उभरा है। कोविड के दौरान भारत ने दुनियाभर के देशों को वैक्सीन दी, जो भारत के वर्तमान जी-20 की थीम “एक पृथ्वी,एक परिवार और एक भविष्य” से सुसंगत है।

भारत ही क्यों

15 अगस्त 1947 से भारत की यात्रा विकास की यात्रा रही है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, यह पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य स्थल है और वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) का सशक्त केंद्र है। भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (2014 से मनाया जाता है) और अंतर्राष्ट्रीय अनाज वर्ष (भारत की जी-20 की अध्यक्षता के समय पर) को अंगीकार किया है। भारत की हमेशा यह संस्कृति रही है कि वह वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत पर दुनिया को एक परिवार मानता है। हालिया वर्षों में दुनियाभर में शांति,कल्याण और अल्पविकसित एवं विकासशील देशों के विकास की आवाज सबसे अधिक भारत से ही आई है। इसलिए भारत अधिक मुफीद है।

अवसर : ग्लोबल ग्रोथ दर वैश्विक मंदी के संकेत दे रही है। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अस्थिरता की यह स्थिति कब तक रहेगी। ऐसे में ग्लोबल साउथ देशों को साथ आकर वैश्विक, राजनीतिक और वित्तीय प्रशासन की व्यवस्था को नये सिरे से तैयार करना चाहिए जो असमानता को दूर करे एवं अवसरों को बढ़ाए। प्राकृतिक, आर्थिक व मानवीय संसाधन में वैश्विक दक्षिण के देश मजबूत हैं, बस इनमें आपसी विश्वास का अभाव है। भारत फार्मेसी, स्वास्थ्य, टीके, सॉफ्टवेयर, टेक्नोक्रेट, रक्षा व सुरक्षा, प्रौद्योगिकी शिक्षा, अल्टरनेटिव एनर्जी, स्पेस, टेलीकॉम, डिजिटल प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्र में ग्लोबल साउथ क्षेत्र में अहम योगदान दे सकता है।

(शंभू भद्रा वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार)

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