2020 : अमेजन की आग से लेकर कोरोना संकट तक यादगार सफर का साल
मुस्कान बिखरी होंठों पर, दिल में जागे एहसास हैं। नया साल नई रोशनी देगा, इस बात पर पूरा विश्वास है। इन्हीं पंक्तियों के साथ आगे पढ़िए लेखिका व कवयित्री अंकिता जैन ‘अवनी' के अनुभव-;
2020 जा रहा है और नया साल 2021 आ रहा है। हर बार बहुत सारी उम्मीदों के साथ हम सब नवबर्ष का स्वागत करते हैं, पर इस बार बात कुछ अलग है। 2020 के कोरोना काल और लॉकडाऊन के कहर ने हम सबके जीवन को बहुत प्रभावित किया है।
मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, बार-बार हाथ धोने की हिदायतें और कोरोना संक्रमण का डर। पूरे साल हमारे साथ चला।
अगर मैं बात करूं जनवरी 2020 की, तो सबसे पहले अमेजन के जंगलों में लगी आग ने भयभीत किया। फिर चीन में कोरोना ने दस्तक दी और आरंभ हुआ कोरोना काल का।
कोरोना उर्फ कोविड-19 ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया। कोरोना महामारी से यूं तो पूरी दुनिया प्रभावित हुई पर सबसे ज्यादा प्रभावित देश रहे-अमेरिका, ब्राजील, रुस, ब्रिटेन, स्पेन, इटली और भारत। भारत का स्थान सातवां है।
कोरोना के कारण सभी देशों ने लॉकडाऊन का कदम अपनाया। लोग महीनों तक अपने-अपने घरों में बंद हो गये और जो अपने घरों से दूर थे, वे घर पहुंचने की जद्दोजहद में जुट गए।
लॉकडाऊन के चलते सार्वजनिक वाहन बंद थे, नतीजतन मीलों का सफर लोगों ने पैदल तय किया, जिसमें मजदूर वर्ग प्रमुख था।
इस दौरान केंद्र सरकार के आदेश से जरुरत के सामान जैसे फल-सब्जी,राशन और मेडिकल सुविधाओं को जारी रखा गया।
गरीबी रेखा के अंतर्गत आने वाले लोगों को खाने के पैकेट नगरपालिका द्वारा प्रतिदिन निर्धारित समय पर दिए गए। बहुत सारे लोगों ने दान देकर तथा कुछ संस्थाओं ने पैदल यात्रा कर रहे मजदूरों को खाना उपलब्ध करवाकर मदद की।
इसी दौरान भारतीय अभिनेता सोनू सूद ने भी बहुत सारे मजदूर भाईयों को उनके घर पहुंचाया। महीनों पुलिस कर्मियों ने, हमारे डॉक्टर्स, नर्सेस ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपनी ड्यूटी निभाई।
कोरोना संक्रमण के चलते बहुत सारे लोगों की जानें गईं, जिनमें आम नागरिकों के साथ-साथ कुछ पुलिसकर्मी, डॉक्टर्स भी थे। हमारे जवान इस दौरान भी पूरी निष्ठा से सीमा पर तैनात रहे।
एक ओर जहां कोरोना के डर ने कहर मचाया, वहीं दूसरी ओर लोगों को जीवन का असली अर्थ भी बताया।
जो लोग सालों से घर नहीं आये थे, वे भी परिवार संग समय बिता रहे थे। मजबूरी ही सही, पर हर कोई इस बात को समझ गया था कि मुश्किल समय में केवल अपने ही साथ खड़े होते हैं।
एक मित्र बताती हैं कि लॉकडाऊन के दौरान दफ्तर का कामकाज छूट गया और पूरा समय घर पर परिवार संग बिताया, जो एक यादगार वक्त रहा। रोज कुछ नये पकवानों का लुफ्त उठाना, बातें करना और सभी के साथ हंसी-ठिठोली में परिवार और उसके साथ का आनंद लिया।
एक मित्र ने बताया कि लॉकडाऊन के दौरान वह अपनी प्रेमिका से नहीं मिल सके, जिसका उन्हें खेद है, पर इस दूरी ने उन्हें प्रेम का सही अर्थ भी बताया।
कुछ लोगों की नौकरियां छूट गई और कुछ लोगों ने नये-नये बिजनेस आइडियाज को खोजा। कोरोना और लॉकडाऊन के चलते लोगों में हताशा और निराशा भी पैदा हुई, जिसके कारण कुछ लोगों ने आत्महत्याएं भी की। कहीं-कहीं पूरे के पूरे परिवार ने आत्महत्या की।
कोरोना काल के दौरान बच्चों की शिक्षा भी बहुत प्रभावित हुई, जिसके कारण बच्चों में भी नकारात्मक सोच बहुत हद तक बढ़ी।
पर धीरे-धीरे ही सही सबकी जिंदगियां बदल रही थी, जो साल हमें नकारात्मक और हताशा भरा साल दिख रहा था, असल में वह केवल वैसा नहीं था। सिक्के के एक पहलू में कोरोना का कहर था, तो दूसरे पहलू में जीवन का असली सार छिपा था।
इंसानियत, परिवार का साथ, हर परिस्थिति में कर्तव्य पालन करते जांबाज और सबसे महत्वपूर्ण स्वयं के भीतर झांकने का सुखद अवसर, इस साल यह सब मिला। 2020 ने अगर कुछ लिया है तो निसंदेह कुछ दिया भी है।
अब मैं बात करूं अपने अनुभव की, तो इस साल मैं सबसे ज्यादा स्वयं से जुड़ी। खुद को जानना, समझना और अपने भीतर छिपी संभावनाओं को खोजना मैंने 2020 में सीखा।
अंत में यही कहूंगी कि 'अलविदा 2020' जो इस सीखा उसे याद रख आने वाले साल 2021 का तहे दिल से स्वागत करते हैं। ईश्वर हर आंख का आंसू पोंछे और हर चेहरे पर मुस्कान बिखेरे।
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
- अंकिता जैन 'अवनी', लेखिका/कवयित्री, अशोकनगर मप्र