ऋतुपर्ण दवे का लेख : लाल किले से मोदी का विजनरी संदेश

Update: 2023-08-18 07:58 GMT

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़ी बेबाकी से 2014 से 2022 तक के सफर पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम ऐसे संधिकाल में हैं जब आगे के हजार साल की दिशा तय करनी है। देश के युवाओं का कई बार जिक्र करते हुए यह भी कहा कि दुनिया में भारत अकेला ऐसा देश है जहां पर 30 वर्ष के युवा जनसंख्या में सबसे ज्यादा हैं जो हमारी ताकत हैं। ये कोटि-कोटि भुजाएं उन क्षमताओं से भरी हैं जो अपने मस्तिष्क से देश को दुनिया में अलग स्थान देने को तत्पर हैं। विश्व इन प्रतिभाओं को देखकर चकित है। तकनीक के दौर में इनके टेलेंट से हम दुनिया में नई भूमिका में होंगे।

लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस बार का उद्बोधन काफी अलग था। शुरुआत में ही हर बार से अलग ‘परिवारजनों’ शब्द बोलकर प्रधानमंत्री ने इतना संकेत तो दे दिया था कि वो न केवल अलग बोलेंगे, बल्कि ऐसा बोलेंगे जिसके राजनीतिक मायने बहुत गहरे होंगे। वही हुआ। अपनी सरकार की उपलब्धियों का खाका खींचते हुए बड़ी बेबाकी से 2014 से 2022 तक के सफर पर प्रकाश डाला। मणिपुर का जिक्र कर यह भी बताया कि वो भी उतने चिंतित हैं जितने दूसरे। गुलामी के एक हजार वर्षों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हम ऐसे संधिकाल में हैं जब आगे के हजार साल की दिशा तय करनी है। देश के युवाओं का कई बार जिक्र करते हुए यह भी कहा कि दुनिया में भारत अकेला ऐसा देश है जहां पर 30 वर्ष के युवा जनसंख्या में सबसे ज्यादा हैं जो हमारी ताकत हैं।

ये कोटि-कोटि भुजाएं उन क्षमताओं से भरी हैं जो अपने मस्तिष्क से देश को दुनिया में अलग स्थान देने को तत्पर हैं। विश्व इन प्रतिभाओं को देखकर चकित है। तकनीक के दौर में इनके टेलेंट से हम दुनिया में नई भूमिका में होंगे। डिजिटल इंडिया की क्षमता न केवल महानगरों बल्कि दूर-दराज यहां तक कि छोटे कस्बों तक भी कमाल के साथ उपयोग हमारी भावी क्षमताओं का संकेत है। प्रधानमंत्री को सुनने भारत के सीमावर्ती इलाकों के 600 गांवों के प्रधान भी आए थे। प्रधानमंत्री ने इनका जिक्र करते हुए कहा कि जो कभी सीमावर्ती गांव होते थे आज वो पहले गांव बन चुके हैं। निश्चित रूप से ये बड़ा बदलाव इच्छा शक्ति से संभव हो सका है।

प्रधानमंत्री ने नए मंत्रालयों के गठित किए जाने पर भी अपनी बात रखी और बताया कि इससे किस तरह के और कैसे-कैसे परिवर्तन और आएंगे। घर-घर पेयजल, पर्यवारण में सुधार के साथ मत्स्य पालन, पशुपालन, डेयरी उद्योग के लिए भी मंत्रालय गठित करना, समाज के अलग-अलग हिस्सों के लिए सहकारिता मंत्रालय के गठन की जरूरत बताई। भारत की वैश्विक अर्थव्यवस्था दुनिया में पांचवें क्रम पर है। जब उनकी सरकार 2014 में सत्ता आई थी तब यह दसवें क्रम पर थी। हरित ऊर्जा, सौर ऊर्जा, वंदेभारत ट्रेन, बुलेट ट्रेन, बेहतर सड़कों, इलेक्िट्रक बसों, इंटरनेट, क्वांटम कंप्यूटर, यूरिया व जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन की भी बात कहते हुए बड़े आत्मविश्वास कहा कि जिसका हम शिलान्यास करते हैं उसका उद्घाटन भी करते हैं। बड़ा और दूर का सोचना हमारी कार्यशैली है। जिस तरह से 200 करोड़ वैक्सीनेशन का पूरा करने का सामर्थ्य दुनिया के लिए उदाहरण है। 75 हजार अमृत सरोवर की कल्पना साकार होने वाली है। निश्चित रूप से जलशक्ति, जनशक्ति से पर्यावरण की दिशा में भी भारत बहुत आगे जा चुका है।

अगले महीने एक नई योजना विश्वकर्मा योजना का एेलान भी किया। इस दिन 13-15 हजार करोड़ रुपये से नई ताकत देकर नई योजना के जरिए पारंपरिक कौशल में लगे लोगों को मदद पहुंचाई जाएगी। प्रधानमंत्री उद्बोधन में नई संसद का जिक्र करना नहीं भूले। उन्होंने कहा पुरानी संसद में कम जगह की चर्चा तो पिछले 25 सालों से हमेशा होती थी, लेकिन नई संसद को पूरा कर दिखाने का सामर्थ्य मोदी ने ही दिखाया। उन्होंने कहा नया भारत न रुकता है, न थकता है न हांफता है, न हारता है, इसीलिए सीमाएं सुरक्षित हुईं। सेना में हुए बदलाव से ही सुरक्षा की अनुभूति हो रही है। आतंकी और नक्सली हमलों में जबरदस्त कमी का बड़ा परिवर्तन दिखा। अपने सपने का घर हर कोई बनाना चाहता है। पैसों की दिक्कत के कारण सपना पूरा नहीं हो पाता है मजबूर लोगों को किराए के घर में रहना पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए सरकार की भावी योजना आ रही है। जिसमें ब्याज पर लाखों रुपये की राहत मिलेगी।

भारतीय महिलाओं की विशेष चर्चा करते हुए कहा कि पूरी दुनिया भारत की महिलाओं का सामर्थ्य देख दंग है। अब कृषि के क्षेत्र में ड्रोन संचालन में महिला स्व-सहायता समूहों की बड़ी भूमिका होगी जिससे एग्रीटेक क्षेत्र में नई क्रान्ति होगी। भारत द्वारा दिए गए नारे वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड तथा वन फैमिली, वन अर्थ,वन फ्यूचर का खास जिक्र किया। एकीकृत वैश्विक बिजली ग्रिड बनाने के लिए यूनाइटेड किंगडम के सहयोग से ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव-वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड यानी जीजीआई-ओएसओडब्ल्यूओजी परियोजना की स्थापना की है। पापुआ न्यू गिनी में हाल में तीसरे भारत-प्रशांत द्वीप सहयोग यानी एफआईपीआईसी शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता करते हुए उन्होंने वन फैमिली, वन फ्यूचर को मूल मंत्र बताकर कहा था कि पूरी दुनिया एक परिवार की तरह है। 2023 में 90 मिनट, 2022 में उनका भाषण 84 मिनट 4 सेकेंड का रहा। 2021 में 88 मिनट,2020 में 86मिनट, 2019में 92 मिनट, 2018 का 82 मिनट, 2017 में 57 मिनट, 2016 में 94 मिनट, 2015 में 86 मिनट तथा 2014 में 65 मिनट का भाषण दिया था।

सबसे छोटा भाषण 2017 में दिया था जबकि सबसे बड़ा भाषण 2016 में दिया। एक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में लगातार 9 बार भाषण देकर प्रधानमंत्री ने कुल 32 घंटे 46 मिनट 4 सेकेंड तक लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित किया। ‘मेरे शब्द लिखकर रख लीजिए’ का अपने भाषण में दो बार उपयोग किया। मेरे शब्द लिखकर रख लीजिए, इस कालखंड में हम जो करेंगे, जो कदम उठाएंगे, त्याग करेंगे, तपस्या करेंगे उससे आने वाले एक हजार साल का देश का स्वर्णिम इतिहास उससे अंकुरित होने वाला है। दूसरी बार कहा इन दिनों जो मैं शिलान्यास कर रहा हूं, आप लिखकर रख लीजिए, उनका उद्घाटन भी आप सबने मेरे नसीब में छोड़ा हुआ है। मोदी का लालकिले की प्राचीर से यह दसवां उद्बोधन था, लेकिन इसे विपक्ष निश्चित रूप से 2024 के आम चुनावों से जोड़ेगा। हालांकि इसके लिए प्रधानमंत्री ने स्वयं अपनी रणनीति व आक्रामक शैली के तहत भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण के खिलाफ पूरे सामर्थ्य से लड़ने की बात के साथ ही 2024 में भी लालकिले से फिर संबोधन की बात कहकर विपक्ष पर ऐसा तगड़ा प्रहार किया है जिस पर देश में एक अलग बहस तय है।

इतना तो साफ दिख रहा है कि कहीं न कहीं प्रधानमंत्री का इस बार का भाषण 2024 की तैयारियों का संकेत तो था। उनका आत्मविश्वास और कहना कि 2014 में सरकार बनने के बाद 2019 में दोबारा और मजबूत सरकार बनी उसके बाद रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म से कैसे देश बदला, के मायने बहुत गहरे हैं। जिस तरह उन्होंने ब्यूरोक्रेट्स को इसका श्रेय देते हुए कहा कि मेरे लाखों हाथ-पैर देश के कोने-कोने में सरकार की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं कहकर प्रधानमंत्री की ब्यूरोक्रेट्स की तारीफ से जरूर विपक्ष पर एक और नया प्रहार हुआ। हो सकता है कि इस पर भी नई बहस हो, लेकिन इसमें जनता को भी ट्रांसफॉर्म का श्रेय ब्यूरोक्रेट्स को देकर विश्वास जताना क्या बताता है कहने की जरूरत नहीं।

ऋतुपर्ण दवे (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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