सुशील राजेश का लेख : संसद में सवाल के बदले नकदी
यह राष्ट्रीय सुरक्षा और गोपनीयता भंग का मामला प्रतीत होता है। आरोप हैं कि सांसद के तौर पर महुआ मोइत्रा की ई-मेल आईडी और उसके पासवर्ड का इस्तेमाल दुबई में बैठे उद्योगपति दर्शन हीरानंदानी करते रहे हैं। वह ही अडाणी समूह पर सवाल बनाते और उन्हें लोकसभा को महुआ के नाम से भेजते रहे हैं। यह गोपनीयता और संसदीय संवेदनशीलता का घोर उल्लंघन है। इस कथित सांठगांठ का महत्वपूर्ण आयाम यह है कि उद्योगपति ने सांसद महुआ को 2 करोड़ रुपए नकदी भी दी थी। उनकी घरेलू और विदेशी यात्राओं के खर्च भी उठाए थे और बेशकीमती तोहफे भी दिया करते थे। सांसद के नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास की मरम्मत और उसका नवीकरण भी उद्योगपति ने करवाया था।;
2004-09 के कालखंड में जब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे, तब 11 सांसद आरोपित हुए थे कि वे नकदी कबूल कर संसद में सवाल पूछते थे। प्रथमद्रष्ट्या सांसद भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए गए, नतीजतन स्पीकर ने 10 सांसदों की सदस्यता खारिज कर दी। एक सांसद राज्यसभा का था, जिसे सभापति ने बर्खास्त कर दिया। आरोपित सांसदों में आधा दर्जन सांसद भाजपा के थे, जबकि 3 सांसद बसपा और एक-एक सांसद कांग्रेस तथा राजद के थे। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने भ्रष्टाचार तो माना था, लेकिन सांसदी बर्खास्त करने को ‘अत्यंत कड़ी’ सजा करार दिया था। केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी और डाॅ. मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। वह मीडिया का एक स्टिंग ऑपरेशन था, जिसमें छिपे कैमरे से भ्रष्टाचार रिकाॅर्ड किया गया था। उसे 12 दिसंबर, 2005 को टीवी पर प्रसारित किया गया। वह मामला सर्वोच्च अदालत तक भी पहुंचा, लेकिन उसने स्पीकर के संवैधानिक अधिकार और निर्णय को चुनौती देने वाली याचिकाएं स्वीकार नहीं कीं, लिहाजा सांसदी भी बहाल नहीं हो सकी। उन सांसदों में से अधिकतर सांसद नया चुनाव जीत कर दोबारा संसद नहीं पहुंच पाए। स्पीकर का वह निर्णय एक उदाहरण बन गया। वैसा ही मामला एक बार फिर स्पीकर ओम बिरला तक पहुंचा है, जिसकी जांच आचार समिति कर रही है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के गंभीर आरोप हैं कि तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा सदन में अडाणी औद्योगिक समूह पर प्रायोजित सवाल पूछती रही हैं और बदले में नकद तथा अन्य सुविधाएं हासिल करती रही हैं।
2 करोड़ रुपये नकदी
दरअसल यह राष्ट्रीय सुरक्षा और गोपनीयता भंग का मामला प्रतीत होता है। आरोप हैं कि सांसद के तौर पर महुआ मोइत्रा की ई-मेल आईडी और उसके पासवर्ड का इस्तेमाल दुबई में बैठे उद्योगपति दर्शन हीरानंदानी करते रहे हैं। वह ही अडाणी समूह पर सवाल बनाते और उन्हें लोकसभा को महुआ के नाम से भेजते रहे हैं। यह गोपनीयता और संसदीय संवेदनशीलता का घोर उल्लंघन है। इस कथित सांठगांठ का महत्वपूर्ण आयाम यह है कि उद्योगपति ने सांसद महुआ को 2 करोड़ रुपए नकद दिए थे। उनकी घरेलू और विदेशी यात्राओं के खर्च भी उठाए थे और बेशकीमती तोहफे भी दिया करते थे। सांसद के नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास की मरम्मत और उसका नवीकरण भी उद्योगपति ने कराया था, जबकि सरकारी आवासों के ऐसे काम भारत सरकार की एजेंसियां ही करती हैं। निजी तौर पर मरम्मत आदि नहीं कराई जा सकती। उद्योगपति हीरानंदानी ने यह भी खुलासा किया है कि सांसद महुआ बेहद महत्वाकांक्षी हैं। उन्होंने अडाणी समूह को निशाना बनाया, लेकिन वह प्रधानमंत्री मोदी की छवि और प्रतिष्ठा ‘दाग़दार’ करना चाहती थीं। अडाणी से जुड़े कई महत्वपूर्ण दस्तावेज सांसद ने विपक्ष के अन्य नेताओं से भी साझा किए, ताकि 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर प्रधानमंत्री के खिलाफ एक संगठित अभियान चलाया जा सके। भाजपा सांसद दुबे ने यह शिकायत लोकपाल में भी दर्ज कराई है।
साजिश का भी मामला
संभावना है कि लोकसभा सचिवालय और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने भी प्राथमिक जांच की होगी कि आरोपित सांसद का ‘लाॅग इन’ कहां से किया गया? वह देश के भीतर या विदेश में किस शहर, किस स्थान से इस्तेमाल किया गया। संचार की अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी इनका आसानी से खुलासा कर सकती है। वैसे मैं तृणमूल कांग्रेस की सांसद पर चस्पा किए गए आरोपों और उद्योगपति के साथ उनकी सांठगांठ, भ्रष्ट मिलीभगत की पुष्टि नहीं कर सकता, क्योंकि अभी जांच जारी है। मेरे सामने दस्तावेज और हलफनामे भी नहीं हैं, लेकिन मामला 2005 से भी गंभीर है और संसद की गोपनीयता से जुड़ा है। आरोपों के संदर्भ में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और वकील जय अनंत से आचार समिति सवाल-जवाब कर चुकी है। जय अनंत, सांसद महुआ के पार्टनर भी रहे हैं। दरअसल यह देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ आपराधिक साजिश का भी मामला है और संसदीय गोपनीयता भंग करने का कथित अपराध भी सामने आया है, लिहाजा मैं विश्लेषण कर रहा हूं। आरोपित सांसद ने सभी लोकसभा सांसदों के ‘लाॅग इन’ की जांच कराने की मांग की है। यह कुतर्क के अलावा कुछ और नहीं है, क्योंकि एक आरोपित व्यक्ति अन्य लोगों पर भी आरोप नहीं लगा सकता। उसे अपना पक्ष स्पष्ट करना है। अलबत्ता सांसद महुआ मोइत्रा का कहना है कि तमाम आरोप फर्जी, झूठे, मनगढ़ंत और मानहानिपरक हैं।
संरक्षण मिले
बहरहाल आचार समिति ने सांसद महुआ को 31 अक्तूबर को सवाल-जवाब के लिए तलब किया था, लेकिन सांसद ने 5 नवम्बर के बाद उपस्थित होने के लिए समय मांगा है। महुआ की दलील है कि वह अपने चुनाव-क्षेत्र में, पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों’ और आरोपों की गंभीरता के मद्देनजर सांसद महुआ मोइत्रा ने समिति से आग्रह किया है कि उन्हें उद्योगपति दर्शन हीरानंदानी के साथ ‘जिरह’ करने की अनुमति दी जाए, ताकि सच बिल्कुल सामने आ सके। भाजपा सांसद दुबे ने इसका विरोध किया है। उनकी दलील है कि सांसद के खिलाफ गवाह और साक्ष्यों के प्रतीक उद्योगपति को संरक्षण दिया जाना चाहिए। कौल एंड शकधर की किताब ‘पार्लियामेंट रूल्स एंड प्राॅसीजर’ के पृष्ठ 246 पर स्पष्ट उल्लेख है कि गवाह को किस तरह का संरक्षण देना जरूरी है। बहरहाल गौरतलब यह है कि इस मुद्दे पर न तो बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने अपनी सांसद के बचाव में कोई बयान दिया और न ही ‘इंडिया’ गठबंधन ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। हालांकि अडाणी को लेकर अलग-अलग बयान आते रहे हैं। साफ है कि महुआ का यह मुद्दा विपक्ष का सरोकार नहीं बन पाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जांच में कुछ ठोस सामने आया, तो सांसद को बर्खास्त किया जा सकता है और सरकारी नियम भंग करने के मद्देनजर जेल भी भेजा जा सकता है। ममता उन्हें पार्टी से निलंबित कर सकती हैं।
यूपीए सरकार के दौरान का ही एक और घोटाला मुझे याद आ रहा है। दोपहर के भोजन के बाद लोकसभा की कार्यवाही शुरू हुई थी। हम पत्रकार दीर्घा में बैठे कवरेज में व्यस्त थे। तभी भाजपा सांसद फगन सिंह कुलस्ते विपक्ष के नेता वाली मेज के करीब आए और एक बैग खोल कर रुपयों के बंडल सार्वजनिक कर दिए। कुछ बंडल बाहर भी बिखर गए थे। एकदम सदन में सन्नाटा पसर गया और फिर खूब हंगामा हुआ। भारत सरकार ने अमरीका के साथ ‘असैन्य परमाणु करार’ किया था, जिसका विरोध करते हुए वामपंथी दलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, नतीजन सरकार अल्पमत में आ गई थी। उन्हीं दिनों ‘वोट के बदले नोट’ घोटाला सामने आ रहा था। सरकार भाजपा सांसद कुलस्ते को वोट के लिए नोट क्यों देगी, यह सवाल आज तक अनुत्तरित है। तब मुलायम सिंह यादव के समर्थन से मनमोहन सरकार बची थी। उस घपले और भ्रष्टाचार को लेकर केस बनाए गए, अमर सिंह समेत कइयों के नाम उछले, लेकिन किसी निष्कर्ष तक मामला नहीं जा पाया।
सरकार बचाई
इसी तरह 1991-96 के दौर में झामुमो सांसदों को नकदी घूस देकर प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की अल्पमत सरकार बचाई गई थी। वह मामला भी अदालत तक पहुंचा था, लेकिन अदालत संसद के भीतर की कार्यवाही और बयानों पर कोई संज्ञान नहीं ले सकती, इसी दलील के तहत मामले रफा-दफा किए जाते रहे हैं। अब सांसद महुआ मोइत्रा का मामला दिलचस्प मुकाम पर पहुंच गया है।
(लेखक- सुशील राजेश वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने निजी विचार हैं)