सुशील राजेश का लेख : देश के गुनहगारों को सजा जरूरी
यासीन ने कश्मीर में आतंकवाद की एक भरी-पूरी जमात पैदा की, घाटी में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन में अहम भूमिका अदा की और गोली छोड़ कर भी आतंकवाद नहीं छोड़ा, ऐसे कई और जघन्य अपराध होंगे, जिनकी सजा सुनाना अब भी शेष है। यासीन को गिरफ्तार किया गया, लेकिन केस को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। जेल में यासीन ने गांधी और नेल्सन मंडेला पर किताबें पढ़ीं। 1994 में जब उसने हिंसा छोड़ने का ऐलान किया, तो उस दौर में सियासी तौर पर उसे इतना कद्दावर मान लिया गया मानो वह ही कश्मीरी मुद्दों पर एकमात्र ‘वार्ताकार’ हो!;
सुशील राजेश
जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के सरगना यासीन मलिक को टेरर फंडिंग के दोषी पाए जाने पर उम्रकैद की सजा दी गई है। आजीवन कारावास को लेकर सर्वोच्च अदालत की स्थापना के मुताबिक, उसे जिंदगी की आखिरी सांस तक जेल में ही रहना होगा। हालांकि संविधान ने हमारे राजनीतिक नेतृत्व को 'माफी' के कुछ विशेषाधिकार भी दिए हैं। बहरहाल अदालत ने आंशिक इंसाफ जरूर दिया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकी को फांसी की सजा देने की मांग की थी, लेकिन न्यायाधीश ने उसे खारिज कर दिया। अलबत्ता उम्रकैद भी कठोर दंड है। वह दूसरा कश्मीरी आतंकवादी है, जिसे ताउम्र जेल में रहना पड़ेगा। इससे पहले 'दुख्तरान-ए-मिल्लत' की मुखिया आशिया अंद्राबी के पति कासिम फक्तू ने कश्मीर के ही मानवाधिकार कार्यकर्ता हृदयनाथ वांचू की हत्या कर दी थी, लिहाजा अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। दोनों पति-पत्नी तब से जेल में ही हैं। यासीन मलिक को अभी टेरर फंडिंग और उससे जुड़े 10 मामलों में सजा दी गई है। अब भी उस पर करीब 50 आपराधिक मामले अदालतों के विचाराधीन हैं।
कश्मीर में जघन्य अपराध
यासीन मलिक और उसके आतंकियों ने कश्मीर को खून के आंसू रुलाए हैं। न जाने कितने घरों के चिराग बुझ चुके हैं, वायुसेना के स्क्वाॅर्डन लीडर रवि खन्ना समेत चार जांबाजों को गोलियों से भून कर 'शहीद' कर दिया था, कश्मीर में आतंकवाद की एक भरी-पूरी जमात पैदा की, घाटी में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन में अहम भूमिका अदा की और गोली छोड़ कर भी आतंकवाद नहीं छोड़ा, ऐसे कई और जघन्य अपराध होंगे, जिनकी सजा सुनाना अब भी शेष है। इन जघन्य अपराधों के संदर्भ में व्याख्याएं की गईं कि यासीन मलिक ने भारत सरकार द्वारा आयोजित हिंसा के पलटवार में वायुसेना के अफसरों की हत्या की थी। यासीन को गिरफ्तार किया गया, लेकिन केस को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया कि वह तार्किक निष्कर्ष तक पहुंच सके। जेल में यासीन ने महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला पर किताबें पढ़ीं। 1994 में जब उसने हिंसा छोड़ने का ऐलान किया, तो उस दौर में सियासी तौर पर उसे इतना कद्दावर मान लिया गया मानो वह ही कश्मीरी मुद्दों पर एकमात्र 'वार्ताकार' हो! वह ही कश्मीर की तमाम समस्याओं का समाधान हो! लेकिन यह कभी भी साबित नहीं हो सका कि यासीन बड़े जनाधार वाला नेता था।
सबसे बड़ी विडंबना
सबसे हास्यास्पद हैरानी यह है कि घोषित तौर पर आतंकवाद छोड़ने के बाद यासीन मलिक खुद को 'गांधीवादी' करार देता रहा। देश के एक बौद्धिक, वैचारिक और सामाजिक तबके ने भी आतंकी की 'गांधीगीरी' पर मुहर लगाई। राजधानी दिल्ली में विमर्श के आयोजन किए जाते थे, जिनमें यासीन सरीखे अलगाववादी नेताओं को 'मुख्य अतिथि' के सम्मान से नवाजा जाता था। सरकार की विशेष उड़ान से उन्हें दिल्ली लिवाया जाता था। वे पंचतारा होटलों में ठहराए जाते थे। अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवगौड़ा, आईके गुजराल और डा. मनमोहन सिंह तक प्रधानमंत्रियों ने यासीन के साथ मुलाकातें कीं। हमारे राजनीतिक नेतृत्व की विवशता रही होगी अथवा वे कश्मीर में कोई प्रयोग करना चाहते थे या यासीन को कश्मीर का सियासी चेहरा मानने लगे थे, लेकिन हैरानी भरा सवाल सामने आता है कि क्या प्रधानमंत्रियों को यासीन और अलगाववादी नेताओं की पाकपरस्त आतंकी गतिविधियों और साजिशों की जानकारी नहीं होती थी? यहां दिवंगत और पूर्व प्रधानमंत्रियों पर कोई दाग़दार सवाल चस्पा नहीं किया जा रहा पर, अलगाववाद और आतंकवाद के बीच बेहद महीन-सी लकीर होती है। अलगाववाद ही आतंकवाद की पहली जमात है। यासीन के पासपोर्ट भी बने। वह यूएस, पाकिस्तान समेत कई देशों में घूमता रहा है, जहां से उसे पैसा मिलता रहा है। यह आरोप अदालत में साबित किया गया है। अदालत ने बेहद संगीन 10 अपराधों में यह सजा मुकर्रर की है। एक और आतंकी रहा है-शब्बीर शाह। उसे 'नेल्सन मंडेला' होने का मुग़ालता था। शब्बीर समेत बिट्टा कराटे, मसर्रत आलम, यूसुफ शाह, आफताब अहमद शाह, अल्ताफ अहमद, नईम खान, मुहम्मद अकबर खांडे आदि आतंकियों पर आरोप तय हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर आतंकी जेलों में ही हैं।
टेरर फंडिंग
यासीन पाकिस्तान में 'लश्कर-ए-तैयबा' के सरगना आतंकी हाफिज सईद और 'हिजबुल मुजाहिद्दीन' के मुखिया आतंकी सैयद सलाहुद्दीन सरीखों से मुलाकातें करता रहा। उनके जरिए पैसा हासिल करता रहा, ताकि कश्मीर में आतंकवाद की जड़ों का विस्तार किया जा सके। उसने ऐसा किया भी। कश्मीर में पत्थरबाजों की एक नस्ल पैदा कर दी, जो आज भी सक्रिय है और यासीन को सजा देने के विरोध में श्रीनगर में पत्थरबाजी की है। 2016-17 में कश्मीर में जो स्कूल जलाए गए, उनमें भी यासीन की आतंकी जमात के हाथ रहे हैं। मैंने कश्मीर में प्रवास के दौरान यह भी महसूस किया कि कश्मीरी सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन हथियारों का प्रशिक्षण पाने पाकिस्तान जाते थे। वे आतंकी गतिविधियों के मुखबिर भी थे। दशकों तक कश्मीर में यह जारी रहा, लेकिन किसी भी सरकार के स्तर पर कार्रवाई नहीं की। अब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कुछ कठोर कार्रवाइयां की हैं और उन मुखबिरों को सरकारी नौकरी से बर्खास्त किया है। आतंकियों के साथ-साथ अलगाववादियों को भी जेलों में बंद किया जा रहा है। उपराज्यपाल ने एक उच्चस्तरीय स्क्रीनिंग कमेटी बनाई है, जो भारत-विरोधी मुखबिरों को पहचान रही है और उन्हें सरकारी नौकरियों से बर्खास्त किया जा रहा है। एक सियासी तबके में इस कार्रवाई को लेकर भी असंतोष और गुस्सा है, लेकिन यह साफ़ है कि कश्मीर से आतंकवाद हर हाल में खत्म किया जाना है। अब जांच एनआईए के सुपुर्द है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की सीधी निगाह रहती है, नतीजतन बड़े आतंकी जेलों में कैद किए जा सके हैं।
पाक से रिश्ते
कश्मीरी आतंकियों के पाकिस्तान के साथ क्या रिश्ते रहे हैं, वह यासीन के केस से ही स्पष्ट है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री, नेता, पत्रकार और क्रिकेटर तिलमिलाते रहे कि यासीन को सजा क्यों दी जा रही है? पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी ने तो संयुक्त राष्ट्र तक में गुहार की कि वह संज्ञान ले, क्योंकि यासीन बेगुनाह है। भारत में पाकिस्तान के राजदूत रहे अब्दुल बासित ने अपनी हुकूमत को सलाह दी है कि इस मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले जाए। वहां की संसद के साझा सत्र में 'यासीन मलिक' के साहबी कसीदे पढ़े गए और उसके पक्ष में प्रस्ताव भी पारित किया गया। पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी समेत कुछ सांसदों ने हमारी संसद पर आतंकी हमला कराने वाले 'मास्टरमाइंड' आतंकी अफ़ज़ल गुरु को भी याद किया।
बहरहाल यासीन और अन्य कश्मीरी आतंकियों को जेल में बंद करने या फांसी पर लटका देने के बावजूद कश्मीर में अमन-चैन बहाल नहीं होगा। बचा-खुचा आतंकवाद आज भी है और वह जारी रहेगा। आतंकियों ने अपनी रणनीति और हथियार बदलकर हमले करने शुरू कर दिए हैं। कश्मीर में अतिवादी सियासत के हालात बढ़ेंगे, क्योंकि 'गुपकार गठबंधन' समेत कोई भी सियासी संगठन कश्मीर में नागरिक और मानवाधिकार सुनिश्चित करने के पक्ष में नहीं है। कश्मीर को लेकर न्यायपालिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। कश्मीर में निकट भविष्य में चुनाव भी होंगे और उसकी अपनी विधानसभा बहाल होगी, लेकिन कश्मीर सिर्फ यासीन सरीखे आतंकवादियों तक सीमित समस्या नहीं है। कश्मीर कई दृष्टियों से विभाजित है। करीब 32 साल के आतंकवाद में 41,000 से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं। सिलसिला आज भी जारी है।
सख्ती बरतनी होगी
आज यासीन मलिक जेल में है, लेकिन कश्मीर में आतंकवाद के नाम पर आज भी भर्तियां की जा रही हैं। नौजवानों को आज भी बरगलाया जा रहा है। बेशक सीमापार से घुसपैठ में कमी हुई है, लेकिन आज भी आतंकी लगातार 'टारगेट किलिंग' कर रहे हैं। नतीजतन सेना-अर्द्धसैन्य बलों को आपरेशन लगातार करने पड़ रहे हैं। आतंकवाद के मौजूदा दौर में कश्मीरी पंडित और मुसलमान दोनों ही मारे जा रहे हैं। कश्मीर में नई उम्मीदें तो हैं, लेकिन सरकार को इसी तरह की सख्ती बरतनी होगी।