शिक्षा व्यवस्था की जानलेवा लापरवाही
हाल ही में तेलंगाना बोर्ड द्वारा 12वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम जारी किए गए। अफ़सोस कि नतीजे आने के सप्ताह भर बाद भी छात्रों की आत्महत्या के मामले नहीं रुक रहे हैं| मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक परीक्षा में फेल होने के कारण पिछले एक सप्ताह में तेलंगाना में कई विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली है। अब तक आत्महत्या के 18 मामले सामने आ चुके हैं। पिछले चार साल में इंटर के नतीजे आने के बाद बच्चों की आत्महत्या के ये सबसे ज्यादा मामले हैं।;
हाल ही में तेलंगाना बोर्ड द्वारा 12वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम जारी किए गए। अफ़सोस कि नतीजे आने के सप्ताह भर बाद भी छात्रों की आत्महत्या के मामले नहीं रुक रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक परीक्षा में फेल होने के कारण पिछले एक सप्ताह में तेलंगाना में कई विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली है। अब तक आत्महत्या के 18 मामले सामने आ चुके हैं। पिछले चार साल में इंटर के नतीजे आने के बाद बच्चों की आत्महत्या के ये सबसे ज्यादा मामले हैं।
पिछले साल भी 2018 में 6 छात्रों ने नतीजे आने के बाद ख़ुदकुशी कर ली थी। अफ़सोसनाक यह है कि अधिकारियों की लापरवाही के चलते कई घरों के चिराग बुझ गए हैं। बिना सही तरीके से जांचे बिना नतीजे जारी करने के कारण विद्यार्थी अवसाद में जा रहे हैं और आत्महत्या का रास्ता अपना रहे हैं। कई छात्रों का कहना है कि उन्होंने परीक्षा दी थी लेकिन नतीजों में उन्हें अनुपस्थित दिखा दिया गया है।
कुछ छात्रों की शिकायत है कि ग्यारहवीं में तो उनके बहुत अच्छे अंक थे लेकिन बारहवीं में उन्हीं विषयों में नाममात्र के अंक मिले हैं। कुछ अंकसूचियां ऐसी हैं, जिनमें विद्यार्थी को अनुत्तीर्ण बताया गया है। लेकिन अंक पास होने की जरूरत से कहीं ज्यादा मिले हैं। बच्चों की आशंकाएं बेवजह भी नहीं हैं।तेलंगाना के मनचेरियल इलाक़े की एक छात्रा को एक विषय में शून्य अंक मिले, जबकि बीते साल यही छात्रा जिले में अव्वल आई थी।
इस छात्रा की कॉपी दोबारा जांची गई तो उसके सौ में से 99 अंक मिले हैं। ऐसे वाकयों को देखते हुए सरकार ने जांच के लिए 3 सदस्यीय समिति का गठन किया है। मंत्रालय ने भी माना है कि मूल्यांकन में चूक हुई है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकारियों की लापरवाही छात्रों का भविष्य तो बिगाड़ ही रही है, जानलेवा भी साबित हो रही है।
देश में हर साल परीक्षा परिणामों के समय देश एक कोने-कोने से बच्चों की आत्महत्या की ख़बरें आती हैं। कभी मन-मुताबिक़ अंक न मिलने पर तो कभी अभिभावकों की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने के बोझ तले दबे बच्चे ऐसा कदम उठा लेते हैं, लेकिन परीक्षा परिणाम बनाने में हुई लापरवाही के चलते इतने बच्चों का जीवन से हार जाना बेहद तकलीफदेह है। गौरतलब है कि तेलंगाना राज्य में इस साल तक़रीबन 9.74 लाख विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी, जिनमें से 3.50 लाख विद्यार्थी उत्तीर्ण नहीं हो पाए हैं।
राज्य सरकार ने इस साल परीक्षा के नामांकन और परिणामों के लिए एक निजी फर्म ग्लोबरेना टेक्नलॉजीज़ से अनुबंध किया था। बताया जा रहा है सॉफ्टवेयर में तकनीकी खामियां होने के कारण परीक्षा परिणामों में गड़बड़ी हुई है। बच्चों और अभिभावकों के मुताबिक़ फर्म ने हज़ारों बच्चों को फेल किया है। कई बच्चों को परीक्षा देने के बाद अनुपस्थित दिखाया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि परीक्षा परिणामों की यही अनियमितता बच्चों का जीवन लील गई। कितने ही विद्यार्थियों की जिंदगी तकनीकी खामी की भेंट चढ़ गई।
चिंतनीय है प्रशासन की घोर लापरवाही के ऐसे मामले तकरीबन हर राज्य में होते हैं। हर साल होते हैं। देखने में आया कि उत्तरपुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करवाने पर विद्यार्थियों के अंक बढ़ ही जाते हैं। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि आखिर यह कोताही होती ही क्यों है? जबकि ऐसा होना हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चों का भरोसा कम करने वाली बात है। विचारणीय है कि बच्चों का भविष्य संवारने वाली व्यवस्था की निष्पक्ष और न्यायोचित जवाबदेही के बिना परीक्षाओं या परिणामों के मायने ही क्या हैं?
दरअसल, ऐसी गलतियां हमारी शिक्षा व्यवस्था की असंवेदनशीलता और लचरता की बानगी हैं। इतना ही नहीं अंकों के खेल और अव्वल आने की रेस तक सिमटी हमारी शिक्षा व्यवस्था का बुनियादी उद्देश्य भी स्पष्ट नहीं है इसीलिए परीक्षा परिणामों में थोड़ी सी ऊंच-नीच होते ही बच्चे ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठा लेते हैं। असल में स्कूली शिक्षा प्रणाली का ध्येय तो यह होना चाहिए कि बच्चों का संपूर्ण विकास हो सके। अपने मनपसंद पाठ्यक्रम में आसानी से प्रवेश मिल सके।
जीवन से जुड़ी कठिनाइयों का सामना करने और नैतिक रूप से दृढ़ बनने की सीख मिल सके। मेहनत और उचित मार्गदर्शन के बल पर उनका व्यक्तित्व निखारा-संवारा जा सके। नई पीढ़ी विपरीत परिस्थितियों में धैर्य के साथ अपनी योग्यता और क्षमता पर भरोसा कर सके, लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी कमज़ोरी यही है कि यह न तो विद्यार्थियों को रोजगार या व्यवसाय के बेहतर अवसर उपलब्ध करवाती है और ना ही उन्हें नैतिक दृढ़ता देती है।
मात्र अव्वल आने की दौड़ में परीक्षा परिणामों की जरा सी अनियमितता से वे खुद को असफल समझने लगते हैं। अभिभावक भी ऐसे हालात में संबल नहीं बनते बल्कि बच्चों से ही सवाल करते हैं। अकादमिक योग्यता के मापदंड ही बच्चों को जीवन के रण में सफल-असफल बनाते हैं। ऐसे में परीक्षा परिणामों में हुई गड़बड़ी के कारण अपना परिणाम देखकर कई बच्चों ने खुद को जिंदगी में ही असफल मान लिया।
यह कटु सच है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था बरसों से अनगिनत विसंगतियों से जूझ रही है। नतीजतन, कोई भी नया विचार, नीति या तकनीकी बदलाव पहले से मौजूद अव्यवस्था के भार तले ही दबकर रह जाते हैं। तकनीकी खामी के चलते रिजल्ट बनाने में हुई गलतियां भी कहीं न कहीं नए बदलाव को गंभीरता और जवाबदेही से न अपनाने का ही नतीजा है। हमारे शैक्षणिक ढांचे में तो परीक्षाएं ही अपने आप में तनावपूर्ण होती हैं।
शिक्षण संस्थानों से लेकर सामाजिक परिवेश तक, बच्चों पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव बना रहता है, लेकिन तेलंगाना में जिन बच्चों के परीक्षा परिणाम अच्छे थे वे भी सिस्टम की लापरवाही के चलते जिंदगी से हार गए। अफ़सोस कि परीक्षा परिणामों के समय हमारे घरों में भी बच्चों को केवल उम्मीद भरी नज़र से ही देखा जाता है। सफलता या असफलता की स्वीकार्यता को लेकर उन्हें मानसिक रूप से तैयार नहीं किया जाता।
न ही घर के बड़े सदस्य इसके लिए तैयार होते हैं। बच्चों को यह दिलासा भी नहीं दिया जाता कि अंक चाहे जैसे आएं हम तुम्हारे साथ हैं। यही वजह है कि बच्चे रिजल्ट आने के समय तनाव और अवसाद में घिर जाते हैं। यही तनाव कई बार आत्महत्या जैसा कदम उठाने की वजह बन जाता है। चिंतनीय है कि हमारे देश में 15 से 29 वर्ष के लोगों की आत्महत्या का दर सबसे अधिक है। ऐसे में जरूरी है अभिभावक सजग और सहयोगी बनें। साथ ही हमारी शिक्षा व्यवस्था भी बच्चों के अनमोल जीवन को यूं अपनी लापरवाही की भेंट न चढ़ाएं।
लेखक : डॉ. मोनिका शर्मा
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