नरेंद्र सिंह तोमर का लेख : महिला सशक्तिकरण की मिसाल
ओडिशा के मयूरभंज जिले की जनजातियों में भी सबसे पिछड़ी संथाली जनजाति के एक अत्यंत गरीब परिवार में जन्म लेने वाली द्रौपदी मुर्मू यदि आज भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन हुई है तो इसके पीछे उनका कठिन संघर्ष, कर्मठता, राष्ट्र के प्रति समर्पण और असाधारण प्रतिभा ही है। कठिनतम परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना करते हुए राष्ट्र प्रथम का संकल्प लेकर सदैव आगे बढ़ने वाली द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना भारत की मातृशक्ति के लिए भी अित सम्मान और गौरव का क्षण है। साथ ही महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल भी। उनका राष्ट्रपति पद पर सुशोभित होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।;
नरेंद्र सिंह तोमर
आज जब हम भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों पर गर्व करने का भी अवसर है। पिछले दिनों एक ऐसा सुअवसर आया जो भारत के इतिहास में सदैव स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा। द्रौपदी मुर्म का भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन होना सच में एक ऐसा अवसर है जो हमें हमारी लोकतांत्रिक विशालता, समृद्धि और समरसता के लिए गौरवान्वित अनुभव कराता है।
ओडिशा के मयूरभंज जिले के सुदूर गांव बैदापोसी में जनजातियों में भी सबसे पिछड़ी जनजाति संथाली के एक अत्यंत गरीब परिवार में जन्म लेने वाली मुर्मू यदि आज भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन हुई है तो इसके पीछे उनका कठिन संघर्ष, कर्मठता, राष्ट्र के प्रति समर्पण और असाधारण प्रतिभा ही है। जनजातीय वर्ग के लिए उनके द्वारा किया गया कार्य, उनका राज्यपाल के रूप में अनुभव एवं समाज सेवा में उनका योगदान राष्ट्रपति पद पर उनके दायित्व में सहयोगी होगा। यह घटना भारत के हर नागरिक के लिए गर्व का क्षण तो है ही लेकिन देश की आबादी का 8.6 प्रतिशत वह जनजाति वर्ग जो सुदूर वनांचलों में प्रकृति के साथ अपनी पारंपरिक अस्मिता को संरक्षित करते हुए संघर्षों से जीवन यापन करता है, उसके लिए तो एतिहासिक गाथा है। सात दशक की लंबी प्रतीक्षा के बाद आखिरकार जनजाति वर्ग को भी भारत के सर्वोच्च पद को वरण करने का अपना अधिकार पूर्ण हो गया। यह हमारी लोकतांत्रिक समृद्धि ही है कि भारत के पिछले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अनुसूचित जाति वर्ग से थे और वर्तमान जनजाति वर्ग से, सच में यह बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संकल्प के पूर्ण होने का ही अवसर है।
कठिनतम परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना करते हुए राष्ट्र प्रथम का संकल्प लेकर सदैव आगे बढ़ने वाली द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना भारत की मातृशक्ति के लिए भी अित सम्मान और गौरव का क्षण है। उनका राष्ट्रपति पद पर सुशोभित होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति वर्ग ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनका आजादी की लड़ाई में अतुलनीय योगदान रहा है। हमारे प्राकृतिक संसाधनों के भंडार हमारे वनांचलों के तो वे सच्चे प्रहरी हैं। जनजाति वर्ग के कल्याण, उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने और उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान की दिशा में पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में और उसके बाद विगत 8 वर्षों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जितने प्रयास हुए हैं उतने अतीत में कभी नहीं किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समग्र विकास का ध्येय लेकर चलते हैं और उसी के आधार पर समाज के सभी वर्गों का समान विकास और समान अवसर मुहैया करवाए गए हैं। जनजाति वर्ग के कल्याण की दिशा में भी इसी ध्येय को सामने रखकर सरकार के द्वारा उठाए गए कदमों के परिणाम आज दृष्टिगोचर हो रहे हैं। तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ही पहली बार अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए पृथक रूप से एक मंत्रालय का गठन किया गया। पृथक मंत्रालय बनने से जनजाति वर्ग के कल्याण की दिशा में योजनाओं के क्रियान्वयन में क्रांतिकारी परिवर्तन नजर आया। वाजपेयी की ही सरकार मंे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन भी हुआ जो इस वर्ग के हित संरक्षण एवं कल्याण के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है।
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में जनजातीय बाहुल राज्यों विशेषकरण झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और पूर्वोत्तर के राज्यों में समग्र विकास के लिए गंभीरता के प्रयास किया गया है। कभी विकास की मुख्यधारा से कटे हुए पूर्वोत्तर के राज्य आज देश की प्रगति में कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं। इन राज्यों में शिक्षा और स्वास्थ्य की दिशा में किए गए कार्य उल्लेखनीय है। यूं भी एक स्थापित सत्य है कि किसी भी वर्ग का यदि उत्थान करना है तो उसे शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर पर मजबूत और सशक्त बनाना जरूरी है। सरकार इस पर काम कर रही है। केंद्र सरकार द्वारा संचालित जनजातीय उप-योजना बजट में वर्ष 2021-22 में चार गुना वृद्धि करके इसे 86 हजार करोड़ रुपये किया गया है। इस धनराशि से जनजातीय वर्ग के लिए जल जीवन मिशन के अंतर्गत 1.28 करोड़ घरों में नल से पेयजल पहुंचाने, 1.45 करोड़ शौचालय बनवाने, 82 लाख आयुष्मान कार्ड बनवाने एवं प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 38 लाख घर बनवाने जैसे अनेक कार्य किए गए हैं। सुदूर वनांचलों में रहने वाले जनजातीय परिवारों के बच्चों को उत्तम शिक्षा प्रदान करने के लिए एकलव्य आदर्श विद्यालयों का न केवल बजट बढ़ाया गया है, बल्कि छात्रवृत्ति की राशि एवं स्कूलों में सुविधाओं में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। वनांचलों में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में जनजाति वर्ग को खासी विषमता का सामना करना पड़ता था। विगत 8 वर्षों में इस दिशा में किए गए प्रयासों के परिणाम स्वरूप आज जनजातीय वर्ग के मातृ एवं शिशु मृत्युदर में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों (एनएफएचएस) के अनुसार, शिशु मृत्यु दर 62.1 (2005-06) से घटकर 41.6 (2019-21) हो गई है, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 95.7 (2005-06) से घटकर 50.3 (2019-21) हो गई है, संस्थागत प्रसव 17.7 प्रतिशत (2005-06) से बढ़कर 82.3 प्रतिशत (2019-21) हो गया है और बच्चों का टीकाकरण 31.3 प्रतिशत (2005-06) से बढ़कर 76.8 प्रतिशत (2019-21) हो गया है। जनजातीय वर्ग की साक्षरता का प्रतिशत अब लगभग 71 प्रतिशत है, जिसमें आठ वर्षों में देखा जाए तो बेहतर सुधार आया है।
हाल ही में दिल्ली में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान का शुभारंभ किया गया है। यह संस्थान देश भर में विविधता में एक एकता की प्रतीक हमारी जनजातियों को एक सूत्र में पिरोने और उनके समग्र विकास की दिशा में कार्य करेगा। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ जंग में अपने प्राण न्योछावर करने वाले भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती 15 नवंबर को अब देशभर में जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इसके साथ ही देश भर में 200 करोड़ रुपये के बजट से जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों की स्थापना की जा रही है। द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद पर आसीन होने के साथ ही एक ओर जहां जनजातिय वर्ग का गौरव बढ़ा है तो वहीं राष्ट्रपति पद की गरिमा और हमारी लोकतांत्रिक आस्था में वृद्धि हुई है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय के अंत्योदय के संकल्प को सिद्ध करते हुए एक भारत-श्रेष्ठ भारत की नीव भी रखी है।
(लेखक नरेंद्र सिंह तोमर केंद्रीय कृषि मंत्री हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)