आस्था : देश को जोड़ता जंगमबाड़ी मठ
जंगमबाड़ी मठ काशी का सबसे प्राचीनतम मठ है। इसका इतिहास तीन हजार वर्ष से अधिक पुराना बताया जाता है। लेकिन इस मठ की स्थापना का उल्लेख छठी शताब्दी में मिलता है। प्राचीन भारतीय संस्कृत भाषा और साहित्य के संवर्धन में इसका बड़ा योगदान है। जंगम का अर्थ है, शिव को जानने वाला और बाड़ी का अर्थ रहने का स्थान। जिस स्थान पर शिव को जानने वाले रहते हैं उसे जंगमबाड़ी कहा गया है। इस मठ के सभी पीठाधिपति शैव सम्प्रदाय के ज्ञाता रहे हैं।;
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वाराणसी के जंगमबाड़ी मठ में जाने के बाद से यह पूरे देश में चर्चा का केन्द्र हो गया है। हालांकि यह काशी का सबसे प्राचीनतम मठ है। इसका इतिहास तीन हजार वर्ष से अधिक पुराना बताया जाता है, लेकिन इस मठ की स्थापना का उल्लेख छठी शताब्दी में मिलता है। प्राचीन भारतीय संस्कृत भाषा और साहित्य के संवर्धन में इसका बड़ा योगदान है। इस मठ में एक शोध संस्थान है जिसने सौ से अधिक ग्रंथों का प्रकाशन किया है। इस मठ द्वारा गुरुकुल की स्थापना 100 वर्ष पहले की गई थी। इस साल गुरुकुल के शताब्दी महोत्सव पर मठ ने 15 जनवरी से 21 फरवरी तक वीरशैव महाकुंभ का आयोजन किया है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जंगमबाड़ी मठ द्वारा प्रकाशित श्री सिद्धांत शिखामणि ग्रंथ का शिवार्पण और मोबाइल एप का उद्घाटन किया।
छठी शताब्दी में स्थापित काशी का यह एक ऐसा मठ है जिसका ध्वंस औंरगजेब भी नहीं कर सका था। जब वह काशी आया, मंदिरों के ध्वंस'-अभियान में जंगमबाड़ी मठ भी पहुंचा, किंतु प्रवेश करते ही उसे लगा कोई भीमकाय, काली देव छाया उसकी ओर लाल-लाल नेत्रों से निहार रही है जो उसे निगल जाएगी। साम्राज्य और सैन्यबल से सुसज्जित सम्राट औरंगजेब कांप उठा और तत्काल बाहर आया और मठ ध्वंस का विचार त्याग उसने भी भूमि दान की। असली हस्ताक्षरयुक्त पत्र अब तक मठ में सुरक्षित है जिसमें यह सब लिखा हुआ है। इस मठ में हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब तथा मुहम्मद शाह द्वारा समय-समय पर मठ को दिए गए दानपत्र भी अपने मौलिक रूप में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रखे हुए हैं। हिन्दू राजाओं का मठ को दान देना तो स्वाभाविक था ही, पर इन मुगल बादशाहों द्वारा मठ को दिए गए दान उनके प्रति आजकल प्रचारित हिंदू विरोधी भावनाओं का स्पष्ट खंडन करते हैं। ये दानपत्र बनावटी नहीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में वर्षो इनकी छान-बीन की जा चुकी है और सर यदुनाथ सरकार जैसे मुगलकाल विशेषज्ञ इतिहासकार को भी इनकी सत्यता मानने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बनारस गजटियर में पृष्ठ 123 पर भी इन फरमानों का स्पष्ट उल्लेख है। इन फरमानों में इस मठ को दिए गए भूमिदान का उल्लेख है। हुमायूं बादशाह ने मिर्जापुर जिले के चुनार नामक खान में जंगमबाड़ी मठ के साधुओं के सहायतार्थ 3 सौ बीघा जमीन दान की थी। उनके बाद के सभी मुगल बादशाहों ने इस फरमान को स्वीकार करते हुए नये फरमान भी दिए जो अब तक मठ में हैं। इस मठ के अन्तर्गत नेपाल के भातगांव नामक स्थान में भी एक जंगमबाड़ी मठ है, जिसे नेपाल नरेश जयरूद्र मल्लदेव ने विक्रमी संवत्ा 692 की ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को भूमिदान दिया था। नेपाल नरेश का यह दानपत्र भातगांव में आज भी एक पत्थर पर खुदा हुआ सुरक्षित है। 14 सौ वर्ष पूर्व सन्ा 574 का एक दानपत्र आज भी मठ में सुरक्षित है, जिस पर काशी के तत्कालीन शासक जयनन्द देव का यह दानपत्र अंकित है, जिसके अनुसार उन्होंने इस मठ को जंगमपुर को वह भूमि दान की थी, जिसमें अब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित है। कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर प्रारम्भ में जंगमबाड़ी मठ के ही अधीन था। विश्वनाथ मंदिर की पूजा के लिए रखे गए पुजारियों तथा कुछ नागरिकों की सहायता से यह मंदिर मठ के अधिकार से निकल गया और तब से अब तक अलग और स्वतंत्र है।
जंगमबाड़ी मठ को ज्ञान सिंहासन अथवा ज्ञान पीठ भी कहा जाता है, लेकिन यह जंगमबाड़ी मठ के नाम से ही अधिक लोकप्रिय है। जंगम का अर्थ है: शिव को जानने वाला और बाड़ी का अर्थ रहने का स्थान। जिस स्थान पर शिव को जानने वाले रहते हैं उसे जंगमबाड़ी कहा गया है। इस मठ के सभी पीठाधिपति शैव सम्प्रदाय के ज्ञाता रहे हैं। शैव मतावलम्बियों के कई सम्प्रदाय हैं और यह मठ वीर शैव या लिंगायत सम्प्रदाय का है। इस सम्प्रदाय के लोग केवल शिव लिंग की आराधना करते हैं। ये जाति-भेद में भी विश्वास नहीं जंगमबाड़ी का वर्तमान मठ लगभग 50 हजार वर्गफुट में फैला है। इसके मुख्य द्वार के बाद धर्मरत्न कल्याणी महाद्वार है। मठ के इस द्वार के बाद शिव मंदिर है। इस मठ का सम्पूर्ण परिसर शिवलिंगों से भरा हुआ है।
कैलाश मंडप जो मठ के संस्थापक जगतगुरु विश्वाराध्य की मूल पीठ है। जगतगुरु का दरबार हाल, हरिश्वर मंदिर, जन मंदिर पुस्तकालय, श्री जगतगुरु विश्वेश्वर नित्य आनंद क्षेत्र, श्री जगतगुरु विश्वाराध्य गुरुकुल, भक्त निवास, गणेश हाल, स्टाफ क्वार्टर और शोभा मंडप आदि मठ में यथोचित स्थान पर बने हैं। जंगमबाड़ीमठ और उसकी सारी व्यवस्था मठ के प्रमुख पीठाधिपति श्री 1008 जगतगुरु डा. चंद्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी की देख-रेख में होती है। वर्तमान महास्वामी 1989 से मठ की पीठाधिपति हैं। वह इस मठ के 86वें पीठाधिपति हैं। उनका जन्म कर्नाटक के बागलकोट जिले में तोगुनासी नामक स्थान पर 15 अगस्त 1949 को हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से हुई है। आगम पर उन्होंने विशेष अनुसंधान और अध्ययन किया है। अपने धार्मिक एवं आध्यात्मिक कार्यों की व्यस्तता के बावजूद सामाजिक विकास के कार्यों का भी सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं। उनका यह मत है कि योग और अध्यात्म के द्वारा जाति और भाषा की दूरियों को खत्म किया जा सकता है और 1989 से उन्होंने लगभग पूरे देश और अन्य देशों का भी दौरा किया है। हांगकांग, बैंकांक और रूस जाकर उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रचार-प्रसार किया है। दो सौ से अधिक रूसी योग शिक्षकों को उन्होंने शाकाहारी बनाकर आध्यात्मिक दीक्षा दी है।
मठ के पीठाधिपति डा. चंद्रशेखर शिवाचार्य के अनुसार जंगमबाड़ी मठ मेडिकल और इंजीनियरिंग के गरीब एवं बुद्धिमान छात्रों को उनकी पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति भी देता है। इस समय 150 छात्र इस योजना का लाभ उठा रहे हैं। अन्नदान छत्र योजना के अन्तर्गत काशी आने वाले श्रद्धालुओं को मठ में तीन दिन ठहरने और भोजन की मुफ्त सुविधा दी जाती है। पुस्तक प्रकाशन योजना के अंतर्गत मठ की दो इकाइयां हैं-एक शिव भारती भवन दूसरी शिवभारती शोध प्रतिष्ठान। श्री जगतगुरु विश्वाराध्य जनकल्याण प्रतिष्ठान ट्रस्ट द्वारा सामाजिक योजनाओं का संचालन किया जाता है। इसके अंतर्गत वाराणसी में शिवभारती शोध प्रतिष्ठान, बलुआ (चंदौली) में जंगमबाबा बाल विद्यालय, सांगवी (पूना) में विश्वेश्वर बाल विद्यालय, कर्नाटक में संस्कृत आगम, योग पाठशाला, बंगलौर में वीर शैव अनुसंधान संस्थान, नागपुर में महिला कुटीर उद्योग और सोलापुर वधू वर सूचना केन्द्र का संचालन किया जाता है। इस प्रतिष्ठान की शाखाएं गुलबर्गा, धारवाड़ और औरंगाबाद में भी स्थापित की गई हैं।
(वरिष्ठ लेखक निरंकार सिंह की कलम से)