सतीश सिंह का लेख : ग्रोथ को गति वाले बजट की आस

बढती महंगाई, वैश्विक स्तर पर भू-राजनैतिक तनाव बने रहने के कारण सरकार के लिए जरूरी है कि वह विकास को गति देने वाले संतुलित बजट पेश करे अर्थात कल्याणकारी कार्यों पर खर्च करे, लेकिन फ्री में वस्तुएं बाँटने से परहेज करे और विकासत्मक कार्यों को बढ़ावा दे। लिहाजा, एक फरवरी को पेश की जाने वाली बजट में सरकार बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए सड़क निर्माण व मरम्मत, रेल कनेक्टविटी में मजबूती, रोजगार के अवसरों को बेहतर करने के लिए कारोबारी माहौल को और भी बेहतर करने की पहल और ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य अवसंचना को मजबूत करने की घोषणा कर सकती है।;

Update: 2023-01-24 08:41 GMT

एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मता सीतारमण अपने कार्यकाल का 5वां आम बजट पेश करेंगी। यह वर्ष 2024 के आम चुनाव से पहले मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होगा। चूंकि, अगले साल आम चुनाव होना है, इसलिए, आमजन, बुजुर्ग, कारोबारी और कोरपोरेट्स सभी बजट में राहत की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि चुनाव होने के बावजूद सरकार लोकलुभावन बजट पेश करने से परहेज करेगी, क्योंकि अभी भी विपक्ष कमजोर है और शायद सभी विपक्षी दल एक साथ मिलकर भी भाजपा को आम चुनाव में शिकस्त दे नहीं पाएंगे। भाजपा को यह वस्तुस्थिति मालूम है, इसलिए, वह सिर्फ चुनाव जीतने के लिए लोकलुभावन बजट पेश नहीं करेगी। सरकार चाहेगी कि ऐसा बजट पेश किया जाये, जिससे विकास गति में तेजी बरक़रार रहे और आमजन को भी कोई परेशानी नहीं हो। किसानों की अपेक्षा है कि खेती को किसानों के अनुकूल बनाया जाये, ताकि उनका आर्थिक जीवन आसान बन सके और उनकी अगली पीढ़ी खेती-किसानी करने के लिए प्रेरित हो। महंगाई के लगातार उच्च स्तर पर बने रहने के कारण आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। इसलिए,वे चाहते हैं कि सरकार महंगाई को कम करने वाले उपायों की घोषणा बजट में करे। वैसे, खुदरा महंगाई दिसंबर महीने में कम होकर 1 साल के निचले स्तर 5.72 प्रतिशत पर पहुँच गई है। विगत वर्षों में इंसान की औसत आयु में इजाफा हुआ है, जिससे उनकी जीवनशैली बदल गई है। सम्मानजनक जीवन जीने के लिए वे चाहते हैं कि वृद्धावस्था पेंशन में वृद्धि की जाये, आयकर में राहत दी जाये, बुजुर्गों द्वारा इस्तेमाल करने वाले उत्पादोंजैसे, डायपर, दवाएं, व्हीलचेयर और वॉकर जैसी स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों पर माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में राहत दी जाये। मेडिक्लेम नीतियों को सकारात्मक बनाया जाये और चिकित्सा परामर्श शुल्क में भी कमी लाये जाये। बुजुर्ग यह भी चाहते हैं कि बैंक, डाकघर, अन्य निवेश योजनाओं पर ब्याज दर में वृद्धि की जाये। मध्यम वर्ग चाहती है कि आयकर और रोजमर्रा की वस्तुओं पर से जीएसटी दर में कटौती की जाये। वहीं, कारोबारी और कोरपोरेट्स कारोबार में लालफीताशाही से निजात और कर में छूट पाना चाहते हैं। ऐसे में इस सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या सरकार सभी की अपेक्षाओं को पूरा करने में समर्थ है? सभी की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए खजाना भरा हुआ होना चाहिए।

कुछ महीने से जीएसटी संग्रह में लगातार वृद्धि हो रही है। सितंबर महीने में जीएसटी 1.48 लाख करोड़ रुपए रहा, जबकि अक्तूबर महीने में यह 1.50 लाख करोड़ के स्तर को पार कर गया था। नवंबर महीने में भी जीएसटी संग्रह 1.46 लाख करोड़ रुपए रहा, जबकि दिसंबर महीने में यह 1.50 लाख करोड़ रूपये रहा। यह लगातार दसवाँ महीना है, जब जीएसटी संग्रह 1.40 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है। सकल व्यक्तिगत आयकर संग्रह नवंबर महीने तक 8.77 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया, जबकि 10 नवंबरतक कॉरपोरेट सकल कर संग्रह 10.54 लाख करोड़ रुपये रहा था, जो पिछले साल की समान अवधि से 30.69 प्रतिशत अधिक है। एक अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में सरकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राजस्व संग्रह के बजटीय लक्ष्य को हासिल कर सकती है, लेकिन सरकार विनिवेश लक्ष्य को हासिल नहीं कर पायेगी, क्योंकि अब चालू वित्त वर्ष के समाप्त होने में महज 2 महीने बचे हैं और सरकार को मामले में कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली है। एक अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में सरकार राजकोषीय घाटा को 6.4 प्रतिशत के स्तर पर रखने के लक्ष्य को हासिल कर सकती है और अगले वित्त वर्ष में इसमें 0.50 प्रतिशत की कमी लाने में सफल हो सकती है, क्योंकि चालू वित्त वर्ष में राजस्व संग्रह में उल्लेखनीय तेजी आई है। बता दें कि राजकोषीय घाटा कुल आय और व्यय का अंतर होता है और जब सरकार आय से ज्यादा व्यय करती है तो घाटे को पाटने के लिए या उसमें कमी लाने के लिए उसे बाजार से कर्ज लेना पड़ता है।

चालू वित्त वर्ष में राजस्व संग्रह की स्थिति बेहतर है, लेकिन मौजूदा परिवेश में विश्व के अन्य देशों की तरह भारत भी महंगाई, आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती, भू-राजनैतिक तनाव और कोरोना महामारी के दुष्परिणाओं से जूझ रहा है। विश्व के अनेक देश मंदी के जाल में फँसने के कगार पर हैं। हालाँकि,उपलब्ध संकेतकों के अनुसार भारत मंदी के दुष्परिणाओं से बचा हुआ रहेगा, लेकिन मौजूदा स्थिति को बरक़रार रखने के लिए भारत को अपने विकासात्मक कार्यों को जारी रखना होगा।

राजकोषीय मजबूती को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को सावधानी से खर्च करते हुए विकास को सुनिश्चित करने और आम चुनाव में जीत हासिल करने के लिए पूंजीगत व्यय में वृद्धि, विनिर्माण गतिविधियों में तेजी, अन्य विकास कार्यों पर बल और कल्याणकारी कार्यों को मूर्त रूप देना होगा। अभी कुछ आर्थिक मुश्किलें सरकार के समक्ष जरूर हैं, लेकिन राजस्व संग्रह में तेजी बने रहने से सरकार पूंजीगत व्यय में इजाफा करने के साथ-साथ विकासात्मक और कल्याणकारी दोनों मोर्चों पर आगामी वित्त वर्ष में काम कर सकती है।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आम बजट के बाद करीब 35 से अधिक वस्तुओं की जीएसटी दर में सरकार वृद्धि कर सकती है। इस क्रम में प्राइवेट जेट, हेलीकॉप्टर, कई महंगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, प्लास्टिक के सामान, ज्वैलरी, हाई-ग्लॉस पेपर और विटामिन आदि जीएसटी दर में बढ़ोतरी की जा सकती है। सरकार वैसी वस्तुओं के आयात को भी कम करना चाहती है, जिससे आयात बिल में कमी आए और “मेक इन इंडिया” की संकल्पना को भी बल मिले। इस आलोक में कुछ वस्तुओं पर बजट में कस्टम ड्यूटी में इजाफा किया जा सकता है। ऐसा करने से दो फायदे होंगे, पहला, देश को चालू खाता का घाटा कम होगा और दूसरा, सरकार के “मेक इन इंडिया” पहल को मजबूती मिलेगी।

अर्थव्यवस्था के अनेक मानकों पर देश कोरोना काल से पहले वाली अवस्था में पहुंच चुका है, बावजूद इसके, बढती महंगाई, वैश्विक स्तर पर भू-राजनैतिक तनाव बने रहने के कारण सरकार के लिए जरूरी है कि वह संतुलित बजट पेश करे अर्थात कल्याणकारी कार्यों पर खर्च करे, लेकिन फ्री में वस्तुएं बांटने से परहेज करे और विकासत्मक कार्यों को बढ़ावा दे। लिहाजा, एक फरवरी को पेश की जाने वाली बजट में सरकार बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए सड़क निर्माण व मरम्मत, रेल कनेक्टविटी में मजबूती, रोजगार के अवसरों को बेहतर करने के लिए कारोबारी माहौल को और भी बेहतर करने की पहल और ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य अवसंचना को मजबूत करने की घोषणा कर सकती है। सरकार बजट में उर्वरक सब्सिडी में कटौती करने से बचेगी एवं खेती-किसानी को मुफीद और आसान बनाने वाले उपायों का ऐलान कर सकती है. मध्यम वर्ग और बुजुर्गों को राहत देने की घोषणा भी वित्त मंत्री कर सकती हैं। रक्षा खर्च में बढ़ोतरी करने से बच सकती हैं।   

(लेखक- सतीश सिंह, आर्थिक विषयों के जानकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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